नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर शीर्ष अदालत में जजों की संख्या बढ़ाने की मांग की है। उन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के रिटायर्ड जजों की एक तय समय के लिए नियुक्ति की जाए ताकि वर्षों से लंबित चले आ रहे मुकदमों का निपटारा हो सके। जस्टिस गोगोई ने हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल किए जाने का भी सुझाव दिया है।
जस्टिस गोगोई ने मोदी को तीन अलग-अलग पत्र लिखे
चीफ जस्टिस ने कहा है कि सेवानिवृत्त जजों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 128 और 224ए के तहत होनी चाहिए। संविधान के दोनों अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को किसी भी पूर्व जज की सेवाएं लेने का अधिकार देते हैं।
जस्टिस गोगोई ने तीन अलग-अलग पत्र लिखकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट में 58,669 मामले लंबित हैं। यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है क्योंकि नए मुकदमे दाखिल होते जा रहे हैं। जजों की संख्या कम होने की वजह से महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले लेने के लिए पर्याप्त संख्या में संविधान बेंचों का गठन नहीं हो पा रहा है।
जस्टिस गोगोई ने अपने पत्र में लिखा कहा कि 1988 में सुप्रीम काेर्ट में जजों की संख्या 18 से बढ़ाकर 26 की गई थी। दो दशक बाद 2009 में यह संख्या बढ़ाकर 31 की गई, जिसमें चीफ जस्टिस का पद भी शामिल है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि मुकदमों के निपटारे में तेजी लाई जा सके।
आपसे अनुरोध है कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ाने को शीर्ष प्राथमिकता देते हुए इस पर विचार करें। इससे सुप्रीम कोर्ट ज्यादा प्रभावी तरीके से काम कर सकेगा और जनता को समय पर न्याय देने का उद्देश्य हासिल हो सकेगा।
दूसरे पत्र में चीफ जस्टिस गोगोई ने मोदी से अनुरोध किया कि हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र 62 से बढ़ाकर 65 करने के लिए संविधान में संशोधन करें। इससे लंबित मुकदमों की संख्या में कमी आएगी और रिक्त पदों की संख्या भी घटेगी।
उन्होंने कहा कि बढ़ते लंबित मुकदमों को हम इसलिए भी कम नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हाईकोर्ट में जजों की कमी है। अभी देशभर की हाईकोर्ट में 37% यानी 399 पद खाली हैं। इन पदों को जल्द भरे जाने की जरूरत है। सभी साझेदारों की कोशिशों के बावजूद स्वीकृत पदों के बराबर जजों की नियुक्ति करना संभव नहीं हो पा रहा है।
जस्टिस गोगोई ने कहा है कि जज के पद तक पहुंचने के लिए लंबी प्रैक्टिस करनी पड़ती है और तब व्यक्ति सेवानिवृत्ति के करीब पहुंच जाता है। अगर सेवानिवृत्ति की उम्र 65 साल तक बढ़ाई जाए तो इसे रोका जा सकता है और जजों के व्यापक अनुभव और कानून की गहरी समझ का लंबे वक्त तक इस्तेमाल हो सकता है।