नई दिल्ली:लश्कर, जैश ए मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर अलकायदा अंसार गजावत उल हिंद, आईएस- जम्मू कश्मीर जैसे दुर्दांत आतंकी संगठनों की भर्ती विंग सुरक्षा बलों के हौसलों के सामने कश्मीर घाटी में घुटने टेकने को मजबूर हो रही है। पिछले चार सालों की तुलना में इस साल मई तक सबसे कम स्थानीय आतंकियों की भर्ती हुई है।
भर्ती के ताजा आंकड़ों का हवाला देकर पिछले दिनों हुई नीति आयोग की बैठक में सुरक्षाबलों के अभियान के साथ घाटी में विकास की गति तेज करने की वकालत की गई। राज्य प्रशासन का कहना है कि दक्षिण कश्मीर में भी कई इलाकों में आतंकी गुटों का आधार सिमट रहा है।
मई में 35 हुए थे भर्ती
इस साल मई तक लगभग 35 युवाओं ने घाटी में आतंकी गुटों का दामन थामा। जबकि 2018 में करीब 200 स्थानीय आतंकियों की भर्ती हुई थी। वर्ष 2016 में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद स्थानीय भर्तियों में उछाल सा आ गया था। हर साल दो सौ से 250 के करीब युवा आतंकी गुटों में भर्ती हो रहे थे। सूत्रों ने कहा, मुठभेड़ में सभी प्रमुख गुटों के सरगनाओं को मारे जाने से भी इनकी रीढ़ कमजोर हुई है। उनके नए आकाओं पर पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई ज्यादा भरोसा नहीं कर पा रही है।
हीरो बनने का क्रेज कम
सुरक्षा बल से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि पिछले कुछ सालों में घाटी में लश्कर, हिजबुल व जैश के प्रमुख सरगनाओं को मारे जाने से आतंकियों की भर्ती पर असर पड़ा है। आतंकियों के ग्लैमर वाले चेहरों को काम तमाम होने से नए युवाओं में आकर्षण और सोशल मीडिया पर हीरो बनने का क्रेज भी कम हुआ है।
बड़ी संख्या में मारे गए स्थानीय आतंकवादी
सुरक्षाबलों के हाथों बड़ी संख्या में स्थानीय आतंकी मारे गए हैं। इस साल मारे गए आतंकियों में करीब 75 फीसदी और पिछले साल मारे गए आतंकियों में करीब 60 फीसदी स्थानीय आतंकी थे।
पाक प्रशिक्षित दहशतगर्दों का खतरा बरकरार
सुधार के बावजूद अभी भी सुरक्षा बलों के को पूरी तरह अलर्ट रहने को कहा गया है। क्योंकि पाकिस्तान का दखल बना हुआ है। पाक प्रशिक्षित आतंकियों के जरिए घाटी में सुरक्षा बलों को निशाना बनाने का प्रयास हो रहा है।