-अपने आराध्य को अपने नगर में पाकर होसूरवासी हुए निहाल
-भव्य स्वागत जुलूस के साथ शांतिदूत का किया अभिवन्दन
-साधनों से सुविधा और साधना से शांति की होती है प्राप्ति: आचार्यश्री महाश्रमण
-होसूरवासियों ने किया अभिनन्दन तो तमिलवासियों ने दी भावभीनी विदाई
19.06.2019 होसूर, कृष्णगिरि (तमिलनाडु): तमिलनाडु की यात्रा के अंतिम दिन बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ तमिलनाडु राज्य के कृष्णगिरि जिले में स्थित बागलूर से प्रातः की मंगल बेला में मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री का अगला पड़ाव होसूर था। होसूर इस अहिंसा यात्रा के साथ आचार्यश्री की तमिल यात्रा का अंतिम पड़ाव था। इसलिए आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में भारी संख्या में तमिलनाडुवासी उपस्थित थे। साथ ही होसूरवासी भी अपने आराध्य की अगवानी में पहले ही पहुंच गए थे। अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करते हुए अहिंसा यात्रा का कारवां आगे बढ़ा। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री होसूर नगर की सीमा के निकट पधारे तो हजारों श्रद्धालुओं का हुजूम अपने आराध्य के अभिनन्दन में पलकें बिछाए खड़ा था। आचार्यश्री के पधारते ही पूरा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा। महिलाएं, पुरुष और बच्चे पंक्तिबद्ध होकर अपने आराध्य का अपने नगर में अभिवादन कर रहे थे। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री आगे बढ़े तो बहिर्विहारी मुनि हेमराजजी व मुनि सुधाकरजी और साध्वी जिनरेखाजी के सिंघाड़े ने आचार्यप्रवर के दर्शन किए।
आचार्यश्री भव्य जुलूस के साथ नगर में स्थित तेरापंथ भवन में पधारे। तेरापंथ भवन के सामने की ओर बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने मंगल संबोध प्रदान किया। उसके उपरान्त मंचासीन हुए आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में शांति का बहुत महत्त्व होता है। सुविधा और शांति दोनों अलग-अलग हैं। साधनों से सुविधा और साधना से शांति की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार एक आदमी के पास कार है तो उसे आने-जाने की सुविधा हो जाती है। कमरे में एसी लगा हो तो गर्मी में सुविधा मिल जाती है, किन्तु शांति चाहिए तो आदमी को साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भय, चिंता, लोभ, गुस्सा कम पड़ें और तप, सेवा, साधना स्वाध्याय बढ़े तो भीतर में शांति की उत्पत्ति हो सकती है। मन में मैत्री और अहिंसा की भावना का विकास हो तो शांति प्रस्फुरित हो सकती है। आदमी को अपने जीवन में साधना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के पश्चात होसूर आगमन और तमिलनाडु की यात्रा के संदर्भ में संबोध प्रदान कर पावन आशीर्वाद भी प्रदान किया। साध्वी जिनरेखाजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा ठाणे के समस्त साध्वियों के साथ गीत का संगान कर पूज्यचरणों की अभिवन्दना की। तमिलनाडु क्षेत्र से संबंधित साध्वियों ने गीत का संगान किया। साध्वी तन्मयप्रभा व साध्वी ख्यातयशाजी तथा मुनि अनेकांतकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री के स्वागत के क्रम में होसूर तेरापंथी सभा के मंत्री श्री पवन सेठिया, सुश्री विभा रायसोनी, श्री विनय सेठिया, बालक श्रेयांश और तरुण तथा स्थानकवासी समाज के मंत्री श्री सुनील पटवा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल, कन्या मण्डल, मूर्तिपूजक महिला मण्डल, स्थानकवासी महिला मंडल व होसूर की बेटियों ने अपने-अपने गीतों के माध्यम से आचार्यश्री की अभिवन्दना की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।
तमिलनाडु में अहिंसा यात्रा की सम्पन्नता के संदर्भ में चेन्नई से समागत श्रद्धालुओं द्वारा भी समारोह का समायोजन हुआ। इसमें चेन्नई सभा के अध्यक्ष श्री विमल चिप्पड़, महासभा के ट्रस्टी श्री ज्ञानचंद आंचलिया, चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-चेन्नई के अध्यक्ष श्री धरमचंद लुंकड़, महामंत्री श्री रमेशचंद बोहरा, श्री गौतम समदड़िया, तेयुप अध्यक्ष-चेन्नई श्री प्रवीण सुराणा, टी.पी.एफ. अध्यक्ष श्री अनिल लुणावत, महिला मंडल की ओर से श्रीमती पुष्पा, अणुव्रत समिति के श्री मंगलचंद डूंगरवाल ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।
इस अवसर पर आचार्यश्री ने लोगों को प्रेरणा देते हुए कहा कि तमिलनाडु में लम्बा प्रवास रहा, चेन्नई का चतुर्मास अच्छा रहा। यह गुरुदेव तुलसी की विहार भूमि थी, उसमें हमारा भी आना हो गया। यहां के लोगों में खूब अच्छी भावना रहे, धर्म प्रभावना होती रहे। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को मंगलपाठ सुनाया और पावन आशीर्वाद प्रदान किया।