-लगभग तरेह किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने मालूर को किया पावन
-मालूरवासियों ने अपने अधिशास्ता का किया भव्य स्वागत, उल्लसित भावनाओं का ज्वार चरम पर
-शरीर को भोजन देने का उठाते रहें लाभ: आचार्यश्री महाश्रमण
-हाजरी वाचन के दौरान आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को दी पावन प्रेरणा
16.06.2019 मालूर, बेंगलुरु (कर्नाटक): कर्नाटक की धरती पर पहली बार अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत, आचार्यश्री महाश्रमणजी जिन क्षेत्रों से भी गुजर रहे हैं, वहां का वातावरण अध्यात्ममय बनता जा रहा है। जिस प्रकार यहां का वातावरण दक्षिण के अन्य प्रदेशों के मुकाबले शीतलतायुक्त है और लोगों को राहत देने वाली है, उसी प्रकार आचार्यश्री के श्रीमुख से प्रस्फुटित होने वाली अमृतवाणी लोगों मानसिक शांति के साथ सन्मार्ग भी दिखा रही है। जन-जन को अपने संदेशों से भावित करते हुए आचार्यश्री निरंतर गतिमान हैं। रविवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जडीगेनहल्ली स्थित मोरारजी देसाई रेसिडेंसियल साइंस काॅलेज परिसर से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। आचार्यश्री के मंगल प्रस्थान से पूर्व ही आज मानों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा हुआ था। पूरे परिवार के साथ श्रद्धालु अपने आराध्य के श्रीचरणों में उपस्थित हो गए थे। आचार्यश्री के प्रस्थान करते हुए जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा और सैंकड़ों श्रद्धालुओं का कारवां अपने आराध्य के पदचिन्हों का अनुगमन करते हुए चल पड़ा।
आचार्यश्री लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर मालूर की सीमा के निकट पहुंचे तो मालूरवासियों ने अपने आराध्य का भक्तिभरा अभिनन्दन किया। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मंगल ध्वनि और भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री मालूर स्थित गवर्नमेंट पीयू काॅलेज परिसर में पहुंचा। उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ के आगे यह काॅलेज परिसर बौना साबित हो रहा था। काॅलेज परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में आज चतुर्विध धर्मसंघ उपस्थित था। आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में शरीर एक आवश्यक तत्त्व होता है। शरीर होता है तो जीवन होता है। उसके मूल में आत्मा होती है। आदमी शरीर के लिए कितना कुछ करता है। शरीर को चलाने के लिए निरंतर भोजन, पानी आदि की व्यवस्था देनी होती है। शरीर से लाभ उठाने के लिए शरीर को टिकाने की आवश्यकता होती है। शरीर है तो आदमी धर्मोद्योत कर सकता है। शरीर से आदमी सेवा कर सकता है। शरीर से आदमी परोपकार कर सकता है। शरीर है तो स्वाध्याय, ध्यान, तप आदि किया जा सकता है। आदमी ने समुपस्थित साधु-साध्वियों को शरीर का पूर्ण लाभ उठाने और सेवा, स्वाध्याय व तप कर जीवन का लाभ उठाने को उत्प्रेरित किया।
मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने बालमुनियों से प्रवचन से संबंधित प्रश्न पूछे और उन्हें पावन प्रेरणा दी। आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। सर्वप्रथम बालमुनि शुभमकुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया तत्पश्चात् समस्त साधु-साध्वियों ने लेखपत्र का उच्चरित किया। 11 जून को दिवंगत साध्वी लघिमाश्रीजी (सरदारशहर) की आयोजित स्मृति सभा में आचार्यश्री ने उनका संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी आत्मा के आध्यात्मिक विकास की मंगलकामना की तथा चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने भी उनके संदर्भ में उद्गार व्यक्त किए और उनकी आत्मा के आध्यात्मिक विकास की मंगलकामना की। आचार्यश्री का स्वागत-अभिनन्दन के क्रम में मालूर के वरिष्ठ श्रावक श्री जसवंतजी, श्री नौरतन गादिया, श्रीमती प्रियंका गादिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। गादिया परिवार की महिलाओं ने स्वागत गीत का संगान किया। बुरड़ परिवार द्वारा संवाद की प्रस्तुति दी। श्री रवि नाहटा ने गीत का संगान किया।