-कोलार पहुंची शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा
-राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 75 पर गतिमान ज्योतिचरण ने लगभग दस किलोमीटर का किया विहार
-अपने आराध्य की अभिवन्दना में जुटे कोलारवासी, दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
10.06.2019 कोनदराजानहल्ली, कोलार (कर्नाटक): जन-जन के मानस को अपनी अमृतवाणी से सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश प्रदान करने वाले, लोगों को सन्मार्ग दिखाने वाले, मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ सोमवार को कोलार के बाहरी भाग कोनदराजानहल्ली स्थित श्री नारायणी फंक्शन हाॅल परिसर में पधारे।
इसके पूर्व आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ सोमवार को प्रातः हुडुकुला स्थित गवर्नमेंट हाईस्कूल से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री जिस मार्ग से गतिमान थे उस मार्ग के दोनों ओर सब्जी व अन्य फल-फूल के पौधे अपनी हरितिमा से लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। कई बीघे में लगी सब्जियां किसानों के मेहनत को दर्शा रही थीं। रास्ते में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ किलोमीटर की दूरी तय करने के उपरान्त आचार्यश्री राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 75 पर पधारे। अब तक न जाने कितने राजमार्गों को अपने चरणरज से पावन बनाने वाले आचार्यश्री जब इस राजमार्ग पर गतिमान हुए तो मानों राजमार्ग ने भी अपने राज्य अतिथि का अभिनन्दन किया।
आचार्यश्री का आज का प्रवास हालांकि राजमार्ग के किनारे स्थित श्री नारायणी फंक्शन हाॅल में होना था, किन्तु भक्तों पर कृपा करते हुए आचार्यश्री लगभग ढाई किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय कर कोलार नगर में पधारे। अपने आराध्य को अपने नगर में पाकर कोलारवासी खुशी से झूम उठे। उनके प्रसन्न चेहरे उनकी प्रसन्नता को बयां कर रहे थे। लोगों को अपने दर्शन और आशीष से लाभान्वित करने के उपरान्त आचार्यश्री निर्धारित प्रवास स्थान में पधारे। इस प्रकार आचार्यश्री ने कुल लगभग तेरह किलोमीटर की यात्रा की।
श्री नारायणी फंक्शन हाॅल परिसर में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी में कुछ ऐसी दुर्बलताएं होती हैं, जिसके कारण वह मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकता और न ही वर्तमान जीवन की समस्याओं का पार पा सकता है। इन दुर्बलताओं में पहला है आदमी की चण्ड प्रकृति। तेज गुस्सा करने वाला आदमी न तो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है और न ही जीवन की समस्याओं से मुक्त हो सकता है। आदमी को अपने गुस्से को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। जो शांत होते हैं, वे साधु होते हैं। हालांकि कभी साधु को भी गुस्सा आ जाए, किन्तु साधु के लिए गुस्सा त्याज्य है। जिसमें अहंकार, चुगलखोरी, अनुशासनहीनता, अविनीतता, अविवेकी, उदण्ड प्रकृति का आदमी भी मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकता और जीवन की समस्याओं में ही उलझा रह सकता है। इसलिए आदमी को उन अवगुणों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। अवगुणों को दूर करने से जीवन की समस्याओं से भी पार पा सकता है और कभी मोक्ष का भी वरण कर सकता है।
मंगल प्रवचन के पश्चात आचार्यश्री ने समुपस्थित कोलारवासियों को अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी प्रदान की। बालक समकित बांठिया, श्री रंजीत नवलखा, बालिका नविता मुथा, सुश्री खुशी नवलखा, श्री अंकुश कुंकलु, श्रीमती प्रीति बांठिया ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नन्हीं बालिका धृति मुथा ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी। कोलार-महिला मण्डल व स्थानकवासी समाज, मूर्तिपूजक समाज की महिलाओं व कोलार से संबंधित बेटियों ने अपने-अपने गीतों के माध्यम से आचार्यश्री के चरणों की अभ्यर्थना की। श्री नारायणी फंक्शन हाॅल के आॅनर श्री गोविन्द राय ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।