‘ब्लू जीन ब्लूज’ डिप्रेशन को हराती

‘ब्लू जीन ब्लूज’ फ़िल्म की कहानी उन युवाओं की है जो अपने गर्लफ्रैंड द्वारा छोड़े जाने पर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं यहां तक कि कुछ आत्महत्या भी कर लेते हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के सर्वे के मुताबिक डिप्रेशन एक सामान्य मानसिक बीमारी है जो भारत में अधिक देखने को मिलता है। 56 मिलियन भारतीय इस बीमारी से जूझ रहे हैं और लगभग 8 लाख लोग हर साल इस बीमारी के कारण आत्महत्या करते हैं। यदि समय रहते मनोचिकित्सक की देखरेख में मरीज का इलाज हो तो इससे छुटकारा मिल सकता है।
लेखक निर्देशक डॉ. नितिन महाजन की फ़िल्म ‘ ब्लू जीन ब्लूज ‘ इसी पर रिसर्च है जिसका मैसेज दिल को छू जाता है। तभी तो इस फ़िल्म ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार बटोरे हैं।
फ़िल्म का मुख्य पात्र कृष्णा (राज ठाकुर) एक शांत, शर्मिला  व संकोची किस्म का कॉलेज स्टूडेंट है। वह पढ़ाई में तेज़ है तभी एक सुंदर लड़की गरिमा (राधिका देशमुख) उससे पढ़ाई में मदद लेती है। कृष यानी कृष्णा लगातार करीब रहने के कारण गरिमा से प्यार करने लगता है।
गरिमा को क्रिष के कपड़े पहनने का तरीका पसंद नहीं आता। उसे फैशनेबल लड़के पसंद आते हैं और वह उससे दूर चली जाती है। यह बात कृष बर्दाश्त नही कर पाता और डिप्रेशन में चला जाता है। वह लोगों से मिलना जुलना , कॉलेज जाना , खाना पीना सब छोड़कर सिर्फ बिस्तर पर सोते रहना चाहता है। यह पता चलते ही उसकी दोस्त मधु (श्वेता बिष्ट) उसे समझाने की कोशिश करती है बाद में कृष की माँ को बुला लेती है जो दूसरी शादी कर चुकी होती है लेकिन कृष से सदैव स्नेह रखती है। कृष की माँ अपने मस्तमौला भाई को बुलाकर अपने बेटे के माहौल को बदलने के लिए उसके फार्महाउस भेज देती है।
फार्महाउस में मामा (डॉ. संजीव कुमार पाटिल) अपने दोस्तों की पार्टी में कृष को शामिल करता है और साइकलिंग के लिए रोज़ सुबह ले जाता है। कृष नया माहौल पाकर पुराने ग़म भूलने लगता है और साइकलिंग में रुचि लेना शुरू कर देता है। वह साइकिल चलाते पुणे से बंगलुरु अपनी दोस्त मधु से मिलने जाता है। उस साहसपूर्ण सफर में जीने की नई उमंग से कृष की ज़िंदगी बदल जाती है और वह दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है।
फ़िल्म का संगीत उसके अनुरूप ही तैयार किया गया है। एंटरटेनमेंट वाली दर्शकों को यह फ़िल्म निराश करेगी फिर भी ऐसी फिल्में बनाना फिल्मकार के लिए साहस का काम है। एक बार यह फ़िल्म युवावर्ग को जरूर देखनी चाहिए।
– गायत्री साहू

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