-महीनों बाद तमिलनाडु की सीमा को अहिंसा यात्रा ने किया अतिक्रान्त
-कर्नाटक से पूर्व आंध्रप्रदेश की सीमा में आचार्यश्री का पुनरागमन
-खड़ी चढ़ाई के बावजूद महातपस्वी ने लगभग बारह किलोमीटर का किया विहार
-लिंगापुरम से आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को मानव जीवन का सदुपयोग करने की दी पावन प्रेरणा
लिंगापुरम, चित्तूर (आंध्रप्रदेश): मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए तथा जन-जन के मानस में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की ज्योति जगाने को अपनी अहिंसा यात्रा के साथ निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार 03 जून 2019 को तमिलनाडु की सीमा को अतिक्रान्त कर आंध्रप्रदेश की सीमा में मंगल प्रवेश किया। इसके लिए आचार्यश्री इस सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित पहाड़ों की खड़ी घाटियों और घने जंगल को पार कर जमीन से हजारों फिट की ऊंचाई पर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के लिंगापुरम गांव में पधारे। आचार्यश्री के ज्योतिचरण का स्पर्श पाकर आंध्रप्रदेश की धरती धन्यता की अनुभूति कर रही थी।
लम्बे समय तक तमिलनाडु की धरा को अपने ज्योतिचरण से ज्योतित करने के बाद सोमवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ आंध्रप्रदेश की सीमा की ओर गति कर रहे थे। कल हुई बरसात के बाद यह पूरा पहाड़ी प्रदेश हरितिमा से भर उठा था। एक राज्य की प्रकृति महातपस्वी को विदाई दे रही थी तो दूसरे प्रदेश की प्रकृति उनके अभिवादन में बिछी जा रही थी। कुछ किलोमीटर के विहार के बाद ही पहाड़ की खड़ी चढ़ाई सामने आ गई। हिमालय की घाटियों, असम और मेघालय की घाटियों को सहज ही पार करने वाले महातपस्वी के लिए यह घाटी कोई मायने नहीं रखती थी, किन्तु इस घाटी की चढ़ाई कुछ विशेष ही थी। एकदम से खड़ी चढ़ाई और मार्ग में अचानक से घुमाव और मार्ग के एक ओर निरंतर खाई की अवस्थिति इसे दुर्गम बना रही थी। इस पहाड़ी के साथ जंगल भी आरम्भ हो गया था। मार्ग के किनारे बन्दरों के झुण्ड अपने बच्चों के साथ अठखेलियां कर रहे थे। उनकी उछल-कूद लोगों को डरा भी देती थी। खड़ी चढ़ाई के बावजूद भी आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के लिंगापुरम गांव स्थित जेड.पी. हाईस्कूल परिसर में पधारे।
हाईस्कल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि चैरासी लाख जीव योनियों में मानव जीवन सबसे दुर्लभ होता है। लम्बे काल तक आत्मा को मानव जीवन प्राप्त नहीं होता। कर्मों के बन्धन और उनके विपाक के बाद अनेकानेक योनियों में भ्रमण के बाद तो मानव जीवन प्राप्त होता है। इसलिए आदमी को अति दुर्लभ इस मानव जीवन का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने लोगों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि यदि मानव जीवन को वृक्ष मान लिया जाए तो इस वृक्ष पर छह फल लगने चाहिए। छह फल जिनेन्द्र के प्रति श्रद्धा-भक्ति, गुरु पर्युपासना, सत्वानुकंपा, सुपात्रदान, गुणानुराग और आगमवाणी का श्रवण होते हैं। अगर यह छह फल मानव जीवन रूपी वृक्ष में लगें तो मानव जीवन सफल, सुफल और सार्थक हो सकता है। मंगल प्रवचन के पश्चात लिंगापुरम के चेयरमेन श्री रामचन्द्र नायडू ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।