नई दिल्ली: बोफोर्स सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत के मामले की फिर से जांच करने की मंजूरी लेने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) ने जो अर्जी दाखिल की थी, गुरुवार को उसने वह अर्जी वापस ले ली। हालांकि, सीबीआइ की तरफ से जारी बयान के मुताबिक केस की जांच जारी रहेगी। तीस हजारी अदालत में दायर अर्जी को वापस लेने की अपील करते हुए सीबीआइ ने कहा कि फिलहाल वह अर्जी वापस लेना चाहती है और आगे क्या करना है, उस पर बाद में निर्णय लिया जाएगा।
सीबीआइ की दलील के बाद अदालत ने कहा कि अर्जी वापस लेने का कारण सीबीआइ को बेहतर मालूम होगा। एजेंसी इसके लिए स्वतंत्र है। चूंकि एजेंसी इस मामले में याचिकाकर्ता है, लिहाजा अर्जी वापस लेने का भी उसे हक है।
सुनवाई के दौरान इस मामले में दूसरे याचिकाकर्ता अधिवक्ता अजय अग्रवाल ने भी अपनी अर्जी वापस लेने की अपील की। इस पर अदालत ने कहा कि अदालत का समय खराब करने के लिए उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है। इस पर अग्रवाल ने कहा कि इसे लेकर उनकी तरफ से अपना पक्ष रखा जाएगा। अजय अग्रवाल ने भी बोफोर्स घोटाले की फिर से जांच के लिए अर्जी दायर की थी।
जांच जारी रखेगी सीबीआइ
तीस हजारी कोर्ट से अर्जी वापस लेने के बाद सीबीआइ की तरफ से बयान जारी किया गया है कि इस केस की जांच जारी रहेगी। सीबीआइ प्रवक्ता के मुताबिक, मामले की दोबारा जांच के लिए अदालत से मंजूरी मांगी गई थी। आठ मई को अदालत ने कहा कि जांच दोबारा शुरू करने के लिए कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इसलिए अर्जी वापस ले ली। एजेंसी के पास कुछ नई जानकारियां हैं, जिनके आधार पर जांच जारी रहेगी।
यह है बोफोर्स घोटाला
1986 में भारत और स्वीडन की कंपनी के बीच एक सौदा हुआ था, जिसमें भारतीय सेना के लिए एबी बोफोर्स कंपनी से तोपें खरीदी गई थीं। इसके अगले साल सामने आया था कि कंपनी ने भारतीय राजनेताओं को रिश्वत देकर यह सौदा किया है। 1990 में सीबीआइ ने भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया था और 1999 में पहला आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया गया था। कई साल तक मामला अदालत में चलता रहा।
वर्ष 2005 में आरोपितों को दिल्ली हाई कोर्ट ने बरी कर दिया। फरवरी 2018 में सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। इसको सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि 13 साल की देरी के बाद अपील किस लिए दायर की गई? हालांकि एक अन्य अपील सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।