शोथः स्थूलस्तोददाहप्रापकी प्रागुक्ताभ्यां तुण्डिकेरी मता तु ! अर्थात कफ और रक्त से उत्पन्न होने वाले मोटे, जलन और पाकयुक्त शोथ को तुण्डिकेरी कहते हैं। गाल और तालुसँधि तथा हनुसन्धि के समीप दोनों पार्श्वों में एक एक ग्रंथियां होती हैं उन्हें टॉन्सिल कहते हैं। स्ट्रेप्टैटोकोक्की, स्टेफीलो कोक्सी और न्यूमोकोक्की का संक्रमण इसका प्रमुख कारण हैं। यह रोग अधिकांशतया हेमंत और बसंत ऋतू में होता हैं।
टॉन्सिलाइटिस या टॉन्सिल गले से जुड़ी बीमारी है जिसमें गले के दोनों ओर सूजन आ जाती है। शुरुआत में मुंह के अंदर गले के दोनों ओर दर्द महसूस होता है और बार-बार बुखार भी आता है। टॉन्सिल के कारण कई अन्य तरह की स्वास्थ्य समस्याएं भी घेर सकती हैं। टॉन्सिल में होने वाला इंफेक्शन आमतौर पर हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस के कारण फैलता है।
अगर खाना खाने से पहले हाथ नहीं धोते हैं तो आपको टॉन्सिल रोग हो सकता है क्योंकि टॉन्सिल का इंफेक्शन हानिकारक बैक्टीरिया के कारण फैलता है। ऐसे में हाथों में लगे बैक्टीरिया खाने के साथ जब आपके गले से गुजरते हैं तो टॉन्सिल के आसपास चिपक जाते हैं और इंफेक्शन का कारण बनते हैं। इसके अलावा खाने से पहले हाथ न धोने से पेट की कई समस्याएं होने का खतरा भी रहता है। इसलिए खाना खाने से पहले हमेशा साबुन से हाथ धोएं।
कई लोग खाने-पीने में जूठे का फर्क नहीं देखते हैं। उनका मानना है कि साथ में खाना खाने और एक ही थाली में खाने और एक ही गिलास में पानी पीने से प्यार बढ़ता है। हालांकि ऐसा कहते समय वे यह भूल जाते हैं कि हर व्यक्ति के सलाइवा में अलग-अलग बैक्टीरिया मौजूद होते हैं और कई बार दूसरे के मुंह के बैक्टीरिया आपके मुंह में जाने से इंफेक्शन हो सकता है। इससे टॉन्सिल की समस्या हो सकती है।
बहुत ज्यादा मिर्च-मसाले वाली चीजों को खाने से भी टॉन्सिलाइटिस की दिक्कत हो जाती है। इसके अलावा अगर बहुत ज्यादा गर्म या ठंडी चीज खाते हैं तो भी आपको टॉन्सिलाइटिस की समस्या हो सकती है। इसलिए खान-पान में सावधानी बरतें। खट्टी और ऑइली चीजों का सेवन बहुत ज्यादा न करें। हमारे यहाँ गरम चाय पीने के पहले ठंडा पानी पीने की आदत भी इस रोग को बढ़ने में योगदान देता हैं।
कम पानी पीने से भी टॉन्सिलाइटिस होने का खतरा होता है। दरअसल, खाना खाते वक्त भोजन के छोटे-छोटे कण मुंह में चिपके रह जाते हैं। खाना खाने के बाद पानी से कुल्ला करते हैं, तब मुंह के कण तो निकल जाते हैं, लेकिन गले और आहार नली में कण चिपके रह जाते हैं। इसलिए खाना खाने के 15 मिनट बाद पानी जरूर पिएं और रोजाना कम से कम 4-5 लीटर पानी पिएं।
कई लोग अपना टूथब्रश जल्दी नहीं बदलते हैं और खराब होने के बाद भी उसका इस्तेमाल जारी रखते हैं। इससे भी गले में टॉन्सिल की समस्या हो जाती है। दरअसल, आप ब्रश करने के बाद रोज टूथब्रश धोते हैं, लेकिन उन पर माइक्रोव्स चिपके रह जाते हैं। वक्त के साथ ये माइक्रोव्स आपको बीमार बनाने लगते हैं, इसलिए हर 2 महीने में अपना टूथब्रश जरूर बदलें।
स्वच्छता का विशेष ध्यान रखे।
महुआ की छल का कुल्ला करना लाभदायक होता हैं।
कत्था को बबूल की गोंद के साथ मिलकर शक़्कर को मुँह में रखकर चूसने से टॉन्सिल में बहुत लाभ होता हैं।
बबूल की छाल का काढ़ा का गरारा करना लाभदायक होता हैं।
कत्था का टुकड़ा और तिली का तेल में डुबोकरचूसने से गले में बहुत राहत मिलती हैं।
कुलंजन की जड़ का एक टुकड़ा मुँह रखकर चूसने से गले की सूजन और खराश में आराम लगता हैं। मीठी वचा को गर्म दूध में उबालकर पीने से सूजन में आराम और स्वर को साफ़ करता हैं।
कंठसुधा वटी,तेजोवत्यादी वटी बहुत गुणकारी हैं।
नमक का गर्म पानी में गरारा लाभकारी होता हैं।
टॉन्सिल (तुण्डिकेरी ) की चिकित्सा
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