नई दिल्लीे :सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने पिछले दिनों केंद्र सरकार की आपत्तियों पर 13 वकीलों को विभिन्न हाईकोटों में जज बनाने के लिए की गई अपनी सिफारिशों को रद्द कर दिया। इनमें से अधितकर सिफारिशें ऐसी थी, जिन्हें कोलेजियम ने दोहराया था पर तीसरी बार सरकार की आपतियों पर कोलेजियम ने इन वकीलों की उम्मीदवारी को निरस्त कर दिया।
इन उम्मीदवारों में इलाहाबाद से दो, गुजरात से तीन, छत्तीसगढ़ से एक, कर्नाटक से तीन, कोलकाता से तीन व बंबई हाईकोर्ट से एक वकील शामिल हैं। कोलेजियम की यह दुर्लभ कार्यवाही है, जिसमें सरकार की आपत्तियों को स्वीकार कर जजों की उम्मीदवारी को निरस्त किया गया है। नियमानुसार कोलजियम यदि अपनी सिफारिशों को दोहराता है तो सरकार उन्हें मानने को बाध्य है। पर, सरकार ने सिफारिशों को दोबारा लौटाने के समर्थन में कोलेजियम को इन उम्मीदवारों के खिलाफ और इनपुट दिए, जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई व जस्टिस मदन बी लोकुर के कोलेजियम उन्हें रद्द करने पर मजबूर हो गया।
सरकार के सूत्रों के अनुसार, इससे साफ जाहिर है कि कोलेजियम के पास वकील की पृष्ठभूमि की जांच करने के लिए पुख्ता व्यवस्था नहीं है। इसकी वजह हाईकोर्टों में नियुक्ति सचिवालय का नहीं होना है। वहीं हाईकोर्ट कोलेजियम जब किसी वकील को जज बनाने को अपनी सिफारिशें करता है तो उसे वकील के न्यायिक इतिहास की जानकारी ही होती है अन्य जानकारियां जैसे खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट आदि केंद्र सरकार जुटाती है।
क्या है प्रक्रिया
हाईकोर्ट का कोलेजियम जज बनाने के लिए वकीलों और जिला जजों की सिफारिश करता है। ये सिफारिश सीधे केंद्र सरकार यानी कानून मंत्रालय के पास आती हैं। कानून मंत्रालय इन्हें आईबी को रेफर करता है। इसके बाद मंत्रालय इन पर अपनी अख्याएं जैसे उम्र सीमा आईटी रिटर्न, न्यायिक प्रतिभा और अपनी आपत्तियां यदि कोई हो तो, आदि संलग्न करता है। मंत्रालय इसे सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को भेजता है। कोलेजियम इस पर अंतिम फैसला करता है। यदि वह सिफारिश को स्वीकारता है, तो इन्हें नियुक्ति वारंट जारी करने को सरकार को भेज देता है। सरकार को आपत्ति नहीं होती है तो सिफरिश राष्ट्रपति को भेज दी जाती है। नहीं तो उन्हें पुनर्विचार को कोलेजियम को वापस भेज दिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 13 वकीलों की उम्मीदवारी रद्द की
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