नई दिल्लीे:वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के वैज्ञानिकों की टीम देश में विकसित विमानों के जैव जेट ईंधन का परीक्षण शुरू करने की तैयारी में है। वायुसेना एवं एक निजी एयरलाइंस के विमानों में 50 फीसदी जैव ईंधन मिलाकर दिसंबर तक इस परीक्षण के शुरू किए जाने की संभावना है।
विमानों को जैव ईंधन से उड़ाने की दिशा में कदम बढ़ाकर भारत एक साथ तीन लक्ष्य हासिल करेगा। एक वैकल्पिक ईंधन के इस्तेमाल की दिशा में एक और कदम होगा। दूसरा, इससे विमानों द्वारा होने वाले प्रदूषण में कमी आएगी। तीसरे, जैव ईंधन बनाने की प्रक्रिया से किसानों की आय में भारी इजाफा होगा।
सीएसआईआर की देहरादून स्थित प्रयोगशाला भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने बायोजेट फ्यूल तैयार किया है। इस ईंधन का परीक्षण हाल में कनाडा के एक विमान के एपीयू में किया गया है। एपीयू ग्राउंड पावर यूनिट को कहते हैं। जब विमान खड़ा होता है तब उसकी ऊर्जा की जरूरतें इसी यूनिट से पूरी होती हैं। उस समय इंजन बंद रहता है। इस यूनिट में बायोजेट फ्यूल का प्रयोग सफल रहा है। इसलिए अब इस ईंधन से विमान उड़ाने की तैयारी की जा रही है।
आईआईपी के निदेशक अंजन रे ने सहयोगी अखबार ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि हमारी कोशिश है अगले चार-छह माह में हम इसका हवाई जहाज में परीक्षण शुरू कर देंगे। भारतीय वायुसेना के साथ-साथ एक निजी एयरलाइंस से बात चल रही है। अभी एटीएफ के साथ 50 फीसदी इसे मिलाकर विमान उड़ाए जाएंगे। दरअसल, 2011 में बने अंतरराष्ट्रीय नामकों के तहत 50 फीसदी तक ही बायोजेट फ्यूल मिलाने की इजाजत है।
कैसे बनता है बायोजेट फ्यूल
देश में जट्रोफा समेत करीब 400 किस्म की वनस्पतियों से अखाद्य तेल बनाया जा सकता है। इससे तीन किस्म के जैव ईंधन बनते हैं। एक जैव डीजल, दूसरा एथेनॉल तथा तीसरा अब जैव जेट ईंधन बनने जा रहा है। तीनों की रसायनिक संरचना अलग-अलग है। मोटे तौर पर जट्रोफा से निकलने वाले तीन हजार लीटर जैव डीजल से करीब 1500 लीटर जैव जेट ईंधन निकाला जा सकता है। लेकिन बाकी को उच्च श्रेणी के जैव डीजल में परिवर्तित कर दिया जाता है।
हिमालय से मिला पौधा
इस बीच पालमपुर में स्थित सीएसआईआर की प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी ने हिमालय से एक वनस्पति को खोजा है जिसमें तेल की मात्रा बहुत ज्यादा है। दूसरा यह तेल जेट फ्यूल बनाने के काफी अनुकूल है। यानी जेट फ्यूल बनाने के लिए इसे काफी कम प्रोसेस करना होगा। संस्थान के निदेशक संजय कुमार ने बताया कि आईआईपी देहरादून की मदद से इस पर आगे शोध किया जा रहा है।
25 देश उड़ा रहे विमान
विमानों में जैव ईंधन के इस्तेमाल में भारत पीछे रह गया है। 2009 से यह शुरू हो गया था। तब न्यूजीलैंड, जापान, अमेरिका और नीदरलैंड ने इसकी शुरूआत की थी। आज करीब 25 देश इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
उत्सर्जन में कमी
वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में विमानों की हिस्सेदारी अभी महज दो फीसदी की है। लेकिन यह तेजी से बढ़ रही है। नासा ने कहा है कि विमानों में 50 फीसदी जैव ईंधन मिलाने से उत्सर्जन में 60 फीसदी तक कमी आ जाएगी।
जैव ईंधन की कीमतें
अंजन रे का कहना है कि जिन देशों ने जैव ईंधन का इस्तेमाल शुरू कर दिया था वहां इसकी कीमतें कम होने लगी हैं। कई देशों में इसके दाम एटीएफ के बराबर आ गए हैं। यदि हमारे देश में इसका इस्तेमाल बढ़ता है तो किसानों को बड़ा फायद होगा। वह खेती के साथ-साथ जैव ईंधन वाली वनस्पतियां उगा आय बढ़ा सकेंगे।