दिनेश कुमार/सुरभि सलोनी।।
लोकसभा चुनावों की घोषणा के बाद पूरे देश में मतदाताओं को अलग-अलग तरीके से अपने खेमे में करने के प्रयासों के साथ ही सत्ताधारी व विपक्षी दल खासकर भाजपा और कांग्रेस फिल्मी सितारों के जरिए अपनी चुनावी नैया पार करने की कोशिशों में जुट गए हैं। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, सुनील दत्त, गोविंदा, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, परेश रावल, नगमा, वैजयंती माला, दीपिका चिखलिया, अरविंद त्रिवेदी जैसे तमाम सितारे राजनीति का हिस्सा रह चुके हैं और आज भी हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, जयाप्रदा, जया बच्चन, राज बब्बर, स्मृति इरानी, परेश रावल, मनोज तिवारी जैसे फिल्मी लोग राजनीति का हिस्सा बने हुए हैं। राजनीति में सितारों का नया नाम भी जुड़ा है जिनमें उर्मिला मातोंडकर, शिल्पा शिंदे, अर्शी खान, रवि किशन, दिनेशलाल यादव निरहुआ, पवन सिंह बाकायदा कांग्रेस व भाजपा में शामिल होकर चुनावी ताल भी ठोक रहे हैं। सवाल यह है कि चुनावों बाद इन सितारों के सितारे गर्दिश में आते देर नहीं लगती। अगर देखें तो इस मामले में अमिताभ बच्चन और गोविंदा के अनुभव बड़े कड़वे नजर आते हैं। अमिताभ बच्चन का नाम बोफोर्स से जुड़ा तो उन्होंने राजनीति को बाय-बाय कहने में ही अपनी भलाई समझी जबकि गोविंदा का नाम अंडरवर्ल्ड से जुड़ा और उन्होंने भी राजनीति को अलविदा कहकर अपने अभिनय वाले काम में लग गए। हालांकि कहा जाता है कि गोविंदा को दोबारा टिकट ही नहीं मिला था।
वैसे आज भी राजनीति में पुराने लोगों की कमी नहीं है। फिल्मी सितारे संसद, विधान सभाओं से लेकर पार्टी के संगठनों में बने हुए हैं। इनमें से राज बब्बर ने पहले समाजवादी पार्टी और फिर कांग्रेस का हाथ थामा। वह तीन बार लोकसभा के लिए चुने गए और दो बार राज्यसभा सदस्य रहे। वर्तमान में वह उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष हैं। इस बार वह उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी से कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। इसी तरह 1984 में उत्तर पश्चिम मुंबई से दत्त ने चुनाव लड़ा और राम जेठमलानी को मात दी। उन्होंने जेठमलानी से दोगुने वोट हासिल किए थे। किसी भी अभिनेता ने इस संख्या की बराबरी नहीं की है। सुनील दत्त को राजनीति में सबसे सफल बॉलीवुड सितारे के रूप में देखा जा सकता है हालांकि अब वे हमारे बीच नहीं हैं। वर्तमान में उनकी बेटी प्रिया दत्त उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, जयाप्रदा फिर चुनाव मैदान में हैं और सांसद बनने की कोशिशों में जुट गए हैं। मनोज तिवारी समाजवादी पार्टी से होते हुए भाजपा में पहुंचे और मोदी लहर में सांसद बन गए। बाद में पार्टी ने उन्हें दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया। मनोज तिवारी ने अब भोजपुरी इंडस्ट्री के चमकते चेहरे रवि किशन, दिनेशलाल निरहुआ और पवन सिंह को भी पार्टी में शामिल करवा लिया और यह लोग चुनाव भी लड़ने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ सीट से दिनेश लाल निरहुआ जबकि रवि किशन ने जौनपुर से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। पवन सिंह का कोलकाता के हावड़ा संसदीय सीट से चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा है। जया बच्चन आज भी समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य हैं। परेश रावल भाजपा के सांसद हैं जबकि स्मृति इरानी अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर हार गई थीं, बावजूद इसके पार्टी ने उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया। उन्हें लेकर काफी विवाद भी हुए लेकिन आज भी वे सरकार में बनी हुई हैं। देखना यह होगा कि इनमें से कितने सितारे संसद पहुंच पाते हैं और जनता की बात सदन में रखते हैं। वैसे इक्का-दुक्का को छोड़ दें तो अधिकतर फिल्मी सितारे अपने ग्लैमर की बदौलत चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन जनता की आवाज बन पाने में नाकाम ही रहते हैं। हाल ही में एक चुनावी सभा के दौरान भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने कहा कि हमने अपने क्षेत्र के लोगों के लिए बहुत काम किया लेकिन याद नहीं कि कौन-कौन से काम किए। अब खुद सोचें कि जन सरोकारों को लेकर ये सितारे कितने संजीदा रहते हैं। इसी तरह गोविंदा ने राम नाईक के खिलाफ चुनाव लड़कर जीत तो अपने नाम कर लिया लेकिन उन्होंने जनता के सरोकार के लिए क्या किया यह किसी को याद नहीं है। जयाप्रदा भी कई बार सांसद रहीं लेकिन उनके विकास कार्यों की चर्चा करें तो बताना मुश्किल होगा कि उन्होंने क्षेत्र की जनता के लिए क्या किया।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सितारों को राजनीति में लाने की शुरुआत कांग्रेस ने की थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और तृणमूल कांग्रेस इसे नए स्तर पर ले गए। इस बार मिमी चक्रवर्ती (जादवपुर) और नुसरत जहां (बशीरहाट) भी उन अभिनेताओं की सूची में शामिल हो गई हैं, जो लोकसभा चुनाव लड़ेंगीं।
सवाल यह है कि जनता तो चुनावों में इन्हें सर आंखों पर बिठाती है लेकिन वे जनता के लिए कुछ करने के लिए हिचकिचाते क्यों हैं? जयललिता सरीखी नेता देहांत के बाद भी तमिलनाडु के लोगों के दिलों में बसती हैं, आज भी उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान अक्सर विवादों व भ्रष्ट्रचार के आरोपों में रहने वाली जयललिता के निधन पर लगभग पूरा तमिलनाडु रोया। लेकिन सवाल यह उठता है कि तमाम फिल्मी सितारे जो राजनीति में हैं वे कहीं इसलिए तो किनारे नहीं हो जाते कि जन सरोकारों को लेकर किसी भी विवाद से बचना चाहते हैं? फिर भी उम्मीद करते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद हमारे फिल्मी सितारे भी जन सरोकारों को लेकर उतने ही संजीदा रहेंगे जितना कोई अच्छा नेता रहता है। वे अपनी चमक फीकी नहीं करेंगे। जनता जिस शिद्दत से उन्हें जिताएगी, वे उसी शिद्दत से जनता के सुख-दुख के भागीदार बनेंगे।
राजनीति में फिल्मी सितारेः कुछ चमके तो कुछ की चमक फीकी पड़ गई..!
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