गांव में पाया जाने वाला सहजन अब टीबी से जंग लड़ेगा। जी हां यह सच है। टीबी के कारण कुपोषित हुए मरीजों को सहजन की पत्तियां नई ताकत देंगी। कारण कि इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन, कैल्शियम, फास्फोरस पाया जाता है। यही नहीं विटामिन सी की मात्रा इसमें संतरे से सात गुना अधिक होती है।
विश्व टीबी दिवस आज
-गोरखपुर में स्वास्थ्य विभाग और एनजीओ ने शुरू किया ट्रॉयल
-मध्य प्रदेश और दक्षिण अफ्रीका में सफल रहे सहजन पर प्रयोग
-गोरखपुर जिले के 12 टीबी मरीजों पर चल रहा है इसका ट्रॉयल
– घर पर ही सूखे पत्ते से चूरा तैयार कर सकेंगे टीबी मरीज
सूबे में पहली बार गोरखपुर के 12 टीबी मरीजों पर इसका ट्रॉयल शुरू हुआ है। दो एनजीओ की मदद से स्वास्थ्य विभाग ने यह प्रयोग शुरू किया है। सहजन का प्रयोग शहर एवं गांव में लोग सब्जियों में करते हैं। यह पौधा पूर्वी यूपी के हर गांव में मिलता है।
फल से अधिक फायदेमंद हैं पत्तियां
आमतौर पर सहजन में सबसे ज्यादा उपयोग लोग फल का करते हैं। इसका उपयोग सब्जियों में होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक फल से ज्यादा पौष्टिक पदार्थ सहजन की पत्तियों में मिला है। इसकी पत्तियों में संतरे से सात गुना विटामिन, दूध से चार गुना कैल्शियम, अंडे से 36 गुना मैग्निशियम, पालक से 24 गुना आयरन, केले से तीन गुना अधिक पोटैशियम मिलता है। इसके पत्ते में एंटी ऑक्सीडेंट के गुर भी मिले हैं।
देश में हुआ रिसर्च
सहजन का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है। इसके औषधीय गुणों को लेकर बंगलुरू के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी और हैदराबाद स्थित आर्डिनेंस फैक्ट्री के डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल इंजीनियरिंग के तीन विशेषज्ञों ने इस पर दो साल रिसर्च की। उनका शोध अंतर्राष्ट्रीय जर्नल साईंस डाईरेक्ट में प्रकाशित हुआ। इसके अलावा गुजरात के भावनगर स्थित आरके कालेज ऑफ फार्मेसी के प्रो. तेजस गनात्रा की अगुआई में पांच विशेषज्ञों की टीम ने शोध किया। यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मेसी में प्रकाशित हुआ। इस शोध के परिणाम चौंकाने वाले मिले। सहजन के पेड़ की फली, फूल, पत्ती, छाल तीन सौ से ज्यादा बीमारियों से बचाव करती है। इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होने लगता है। मध्य प्रदेश सरकार ने कुपोषण दूर करने में सहजन की पत्तियों का प्रयोग किया।
गोरखपुर में शुरू हुआ ट्रॉयल
सहजन की पत्तियों के पौष्टिक गुरों को देखते हुए टीबी मरीजों के पोषण में इसका उपयोग करने का फैसला किया। स्वयं सेवी संस्था सेवा मार्ग और अक्षय योजना ने इस प्रस्ताव को जिला टीबी फोरम में रखा। फोरम से हरी झंडी मिलने के बाद 12 मरीजों का कुपोषण खत्म करने के लिए ट्रॉयल के तौर पर उन्हें सहजन की पत्तियों का चूरा दिया जा रहा है।
घर पर तैयार करते हैं चूरा
सेवा मार्ग के निदेशक और न्यूट्रिशियन डॉ. हरिकृष्णा ने बताया कि टीबी मरीजों के इलाज में सबसे बड़ी बाधा कुपोषण होती है। सहजन के पत्ते में मौजूद पोषक तत्व कुपोषण को दूर करने में सहायक होंगे। इस पौधे की पत्तियों का उपयोग क्षय रोग(टीबी) के इलाज में हो सकता है। इसको देखते हुए टीबी मरीजों को प्रेरित किया जा रहा है। ज्यादातर मरीजों के घर के पास ही सहजन के पौधे हैं। वह पत्तियों को तोडकर घर लाते हैं। उन्हें उबले पानी से धुलकर, सुखाकर चूरा बना लेते हैं। यह ट्रॉयल एक महीने से चल रहा है। इसके परिणाम भी सकारात्मक मिले हैं।
जिले में हैं टीबी के करीब नौ हजार मरीज
सूबे में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज पूर्वांचल में हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में टीबी के करीब नौ हजार मरीज चिन्हित हैं। इनमें से साढ़े हजार मरीजों का इलाज सरकारी अस्पताल और ढाई हजार मरीजों का निजी चिकित्सकों के जरिए इलाज हो रहा है।
यह हैं छह साल में टीबी के मरीज
वर्ष सरकारी अस्पताल निजी अस्पताल
2014 4256 30
2015 4576 1392
2016 4988 2584
2017 5062 2393
2018 5651 2847
2019(अब तक) 1099 307