दिनेश कुमार/सुरभि सलोनी। लोकसभा चुनावों की घोषणा के बाद एक तरफ जहां सभी राजनीतिक पार्टियों में टिकट बंटवारे की माथापच्ची व घमासान चल रहा है, वहीं ऐसे मौके पर कांग्रेस आलाकमान ने कई सालों से मुंबई कांग्रेस की कमान संभाल रहे संजय निरूपम को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाकर मिलिंद देवड़ा को नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। मुंबई में यह परिवर्तन निरुपम के खिलाफ तमाम शिकायतों के बाद होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। जबकि मिलिंद के अध्यक्ष बनने को पार्टी में नये जोश के रूप में देखा जा रहा है। लोगों का मानना है कि श्री देवड़ा के अध्यक्ष बनने से जहां पार्टी का नाराज पारंपरिक व युवा मतदाता फिर से जुड़ेगा, वहीं राजस्थानी व गुजराती समाज का बड़ा तबका भी कांग्रेस की तरफ वापसी कर सकता है। यह वह तबका है जो कांग्रेसी होते हुए भी मुंबई कांग्रेस की पूर्ववर्ती नेतृत्व की उदासीनता के चलते पिछले सालों में भाजपा के साथ जाने को मजबूत हुआ था। सूत्रों के अनुसार, चुनावों के मुहाने पर भी निरूपम को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष था। लगातार शिकायतें भी मिल रही थीं, इसी के मद्देनजर पार्टी ने निरूपम को हटाकर मिलिंद देवड़ा को नया अध्यक्ष बना दिया है, जिसका लोकसभा चुनावों में भारी फायदा मिल सकता है।
उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी लगातार पार्टी में परिवर्तन करते हुए युवा चेहरों को मौका दे रहे हैं, यह इसी कड़ी का हिस्सा है लेकिन कई बार मुंबई कांग्रेस में परिवर्तन की अटकलों के बीच अंततः संजय निरूपम को पद से हटाकर मिलिंद देवड़ा को अध्यक्ष बनाने का फैसला मुंबई कांग्रेस में नयी जान फूंकने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। जिसका फायदा आने वाले समय में पार्टी को मिलेगा। मिलिंद देवड़ा के पिता स्व. मुरली देवड़ा लगभग ढाई दशक तक मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और उनके कार्यकाल के दौरान मुंबई में पार्टी की स्थिति काफी मजबूत हुआ करती थी। उनके बाद पार्टी के दिवंगत नेता गुरुदास कामत अध्यक्ष बने, कृपाशंकर सिंह बने तदुपरांत जब जनार्दन चांदुरकर ने मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली तब भी कांग्रेस अच्छी स्थिति में रही।
शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में आए संजय निरूपम को जबसे मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी, कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई। चाहे वह बीएमसी का चुनाव हो, विधान सभा का या लोकसभा का। पार्टी का सभी चुनावों में लगातार निराशाजनक प्रदर्शन रहा है, साथ ही कार्यकर्ता भी नाराज होकर पार्टी से अलग होते रहे। हालांकि कई दरकिनार कर दिये लोग पार्टी में रहकर ही आवाज उठाते रहे लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं था। कहा तो यहां तक जाता है कि पार्टी में इतनी गुटबाजी व असंतोष कभी नहीं रहा, जितना संजय निरूपम के कार्यकाल में रहा। लगातार उन्हें हटाए जाने की मांग होती रही और आरोप लगाया जाता रहा कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके बाहरी लोगों को प्रमुख पदों पर बिठाया जाता रहा है। जिसके चलते पार्टी को पिछले कई सालों से भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है।
अब जब पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन कर दिया गया है, तब कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश व संतोष देखने को मिल सकता है साथ ही संभावना यह भी है निरूपम के नेतृत्व से नाराज होकर दूसरे पार्टियों का दामन थाम चुके कई लोग व कार्यकर्ता घर वापसी कर सकते हैं, लोकसभा चुनाव के इस माहौल में पार्टी के लिए संजीवनी का काम करेगा। हालांकि इसका आंकलन तो चुनावों के बाद ही किया जा सकता है, फिर भी जो माहौल दिख रहा है, अगर उस पर गौर करें तो पार्टी के लिए आने वाले समय में शुभ संकेत दिखाई दे सकते हैं।
लगातार कमजोर हुई कांग्रेस में मिलिंद के अध्यक्ष बनने से जगी आस, जोश में कांग्रेसी !
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