नई दिल्ली: गरीब परिवारों को मुफ्त में रसोई गैस देने की उज्जवला योजना का यह तीसरा साल है। इस योजना को उत्तर प्रदेश, पंजाब विधान सभा चुनावों के कुछ महीने पहले लागू किया गया था और जब उत्तर प्रदेश में भाजपा ने भारी बहुमत से विजय हासिल की तो इसके लिए उज्जवला योजना को भी श्रेय दिया गया। अब जबकि आम चुनाव का बिगुल बज चुका है और भाजपा की तरफ से सरकार की प्रमुख केंद्रीय योजनाओं का जम कर प्रचार प्रसार किया जा रहा है तो यह जरुरी है कि इस योजना की परख की जाए।
पेट्रोलियम मंत्रालय की तरफ से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक 22 मार्च, 2019 तक देश के 716 जिलों में 7.18 करोड़ से ज्यादा परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिया जा चुका है।
उज्जवला योजना की अहमियत यह है कि इसने गांवों, दूर दराज के इलाकों में रहने वाले उन लोगों को भी साफ स्वच्छ एलपीजी कनेक्शन देने की व्यवस्था कर दी जो कभी इसके बारे में सोचते नहीं थे। इनमें से अधिकांश लोग लकड़ी या कोयले पर खाना पकाते थे जो ना सिर्फ पर्यावरण के लिहाज से काफी हानिकारक था बल्कि खाना पकाने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी काफी खतरनाक साबित होता रहा है।
अनुमानित तौर पर माना जाता रहा है कि सालाना तकरीबन पांच लाख लोग लड़की के धुंए के कारण बीमार पड़ते थे और अधिकतर की असामयिक मौत भी होती थी।
गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले इन लोगों पर कोई बाहरी आर्थिक दबाव पड़े इस योजना ने उन्हें एलपीजी कनेक्शन देने का रास्ता साफ किया। कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ ही महीने में इसके बेहद सकारात्मक असर को देखते हुए आम बजट 2018-19 में वित्त मंत्री ने इस आठ करोड़ परिवारों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा। अगले कुछ ही महीनों केंद्र सरकार ने एक अहम फैसला करते हुए हर तरह के गरीबों को इस योजना के तहत शामिल करने का ऐलान किया।
ग्रामीण गरीबों में अधिकांश परिवारों में अनुसूचित जाति, जनजाति या अल्पसंख्यक वर्ग से हैं, लिहाजा इस योजना ने इस वर्ग की महिलाओं के जीवन पर खासा असर डाला। अब तक के लाभान्वितों में 44 फीसद अनुसूचित जाति के हैं, यह आंकड़ा इस योजना की सफलता को समझने के लिए काफी है।
हालांकि उज्जवला योजना को लेकर शुरुआती अनुभव बताता है कि एक गरीब परिवार के लिए हर महीने या दो महीने पर 900 रुपये का सिलेंडर खरीदना आसान नहीं होता। लिहाजा लगभग 50 फीसद लाभार्थी रीफिल नहीं करा रहे थे। यह भी बात याद रखना चाहिए कि शुरुआत में सरकार की तरफ से दिए गए गैस चूल्हे और पहले सिलेंडर की डिपॉजिट राशि नहीं देनी होती है, लेकिन उसे बाद में किस्तों में चुकाना होता है।
बहरहाल, अब सरकार की तरफ से इस तरह के कई कदम उठाये गये ताकि लोग दोबारा सिलेंडर लें और इसका असर दिखाई देने लगा है। पेट्रोलियम मंत्रालय का दावा है कि उज्जवला योजना के तहत कनेक्शन लेने वालों में से 80 फीसद से ज्यादा लोगों ने दोबारा रीफिल करवाया। कनेक्शन लिया है।
देश में एक परिवार सालाना 7.2 एलपीजी सिलेंडर का इस्तेमाल करता है जबकि उज्जवला ग्राहकों का रिकार्ड बता रहा है कि वे 4 सिलेंडर से ज्यादा साल में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके साथ ही सरकार की तरफ से बहुत सारे कदम ऐसे भी उठाये गये जिससे गरीब परिवारों की दिक्कतों को दूर करने में मदद मिली। मसलन, पांच किलो का छोटू सिलेंडर लांच करने से इन परिवारों के लिए एक सिलेंडर रिफिल करवाने की लागत काफी कम हो गई। इसकी कीमत 14.2 किलो वाले सिलेंडर के मुकाबले आधे से भी काफी कम होती है।
जिन गांवों में हफ्ते में एक बार गैस एजेंसी की तरफ से गैस सिलेंडर से भरे ट्रक भेजे जा रहे थे वहां अब दो बार इन वाहन पहुंचने लगे। इसलिए जो लोग सिलेंडर नहीं मिलने की दिक्कत को देखते हुए इसका कम इस्तेमाल करते थे उनमें इसकी उपलब्धता को लेकर भरोसा बढ़ा। साथ ही तेल कंपनियों की तरफ से ग्रामीण महिलाओं में एलपीजी से खाना बनाने के लाभ से अवगत कराने का अभियान चलाया गया जिसका भी असर दिखाई दे रहा है।
उज्जवला योजना एक तरह से किसी भी समस्या को दूर करने की सरकार की सोच को भी बताती है। वर्ष 2010 में यूपीए सरकार के तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने इसी से मिलती जुलती योजना लांच की लेकिन उसे सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका। वर्ष 2015 तक देश की 75 फीसद आबादी तक एलपीजी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था] लेकिन सिर्फ 55 फीसद तक ही पहुंचा जा सका था। अब देश की 92-93 फीसद परिवारों तक एलपीजी पहुंच चुकी है।
उज्जवला लागू करने से पहले राजग सरकार ने ‘पहल’ योजना लागू की जिससे हर एलपीजी ग्राहक को बैंक खाते से संबंधित किया गया और सब्सिडी को सीधे उनके बैंक खाते में डालने की परंपरा शुरु की गई। इसके बाद ‘स्टार्ट अप’ शुरु किया गया जिसके तहत लाखों लोगों ने स्वयं ही एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी। इन दोनो योजनाओं के लागू होने के बाद उज्जवला को लागू किया गया।
आंकड़े साफ करते हैं कि अब इस योजना की स्वीकार्यता बढ़ रही है, लेकिन इससे कितना सामाजिक असर पड़ता है या गरीब परिवारों के जीवन स्तर में कितना सुधार होता है, इसे जानने के लिए अभी कुछ इंतजार और करना पड़ेगा।