-एक महीने तक महातपस्वी ने केरल में बहाई ज्ञानगंगा, प्रभावक साबित हुई यात्रा
– तमिलनाडु में आचार्यश्री का पुनरागमन, कन्याकुमारी जिले की धरती हुई पावन
-विवेकानंद मै.हा.से.स्कूल से आचार्यश्री मैत्री भावना का दिया मंगल संदेश
वैकुन्दपुरम, कन्याकुमारी (तमिलनाडु): परकल्याण के साथ स्वकल्याण के लिए उत्साह के साथ निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता अपनी अहिंसा यात्रा के साथ एक महीने तक चालीस से अधिक नदियों वाले प्रदेश केरल में ज्ञानगंगा प्रवाहित कर मानव मात्र को मानवीय मूल्यों का अभिसिंचन प्रदान कर महातपस्वी के ज्योतिचरण अब भारत के दक्षिणी छोर अर्थात् कन्याकुमारी की ओर बढ़ चले हैं। भौगोलिकता के अनुसार आचार्यश्री भारत के वर्ष के दक्षिणी छोर कन्याकुमारी का स्पर्श करेंगे। वह पल और अधिक अविस्मरणिय बन जाएगा जब हिन्दुस्तान का आखिरी छोर भी ज्योतिचरणों से ज्योतित हो उठेगा। एक महीने की केरल यात्रा की प्रभावक सुसम्पन्नता के उपरान्त आचार्यश्री का तमिलनाडु की धरती पर पुनरागमन हुआ। तमिलनाडु की धरा महापुरुष के चरणस्पर्श का फिर से स्पर्श पाकर मानों निहाल हो उठी। आचार्यश्री कन्याकुमारी नामक स्थान पर भले ही 25 मार्च को पहुंचेंगे, लेकिन कन्याकुमारी जिले की सीमा में गुरुवार को ही मंगल प्रवेश कर लिया।
शुक्रवार को आचार्यश्री ने अपनी अहिंसा यात्रा के साथ मारतण्डम स्थित हिन्दू विद्यालय से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री के कोमल कदम जैसे-जैसे हिन्दुस्तान के अंतिम छोर की ओर बढ़ते जा रहे हैं, श्रद्धालुओं को उस दृश्य को देखने की आतुरता भी बढ़ती जा रही है। आतुरता और उत्साह तो इतना है कि उसके पीछे सूर्य की तपन भी पीछे छूट जा रही है। दिन-प्रतिदिन बढ़ती गर्मी लोगों का हाल बेहाल कर रही है, किन्तु समताभावी आचार्यश्री के गतिमान चरण तो मानवता के कल्याण को निरंतर गतिमान हैं। आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर वैकुन्दपुरम स्थित विवेकानन्द मैट्रिकुलेशन हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे। स्कूल परिसर के ठीक सामने की ओर स्थापित श्रीरामजानकी मंदिर में हुए किसी कार्यक्रम के आयोजन के कारण पूरे परिसर को केले के फल लगे हुए वृक्षों से सजाया गया था और इसी परिसर में आचार्यश्री का मंगल प्रवचन आयोजित था। एक अनूठे ढंग से सजे इस परिसर में आचार्यश्री प्रवचन हेतु पधारे।
आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में मैत्री का बहुत बड़ा महत्त्व है। मैत्री सभी प्राणियों के लिए कल्याणकारी होती है। मैत्री भावना की अनुप्रेक्षा भी बताई गई है। आदमी यह अनुप्रेक्षा करे कि मेरी आत्मा में सभी प्राणियों के प्रति मैत्री की भावना हो। मैत्री की भावना अहिंसा से जुड़ी हुई है। मैत्री की भावना मन में हो तो आदमी हिंसा से भी बच सकता है। आदमी को अपना विरोध करने वाले के प्रति भी मैत्री की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। विश्व मैत्री की भावना पुष्ट हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर स्थापित मैत्री की भावना कभी शत्रुता रखने वाले के भीतर भी मैत्री की चेतना का संप्रेषण करने वाली हो सकती है। आदमी को इस मैत्री की भावना से अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
विद्यालय की वाइस प्रिंसिपल श्रीमती पुष्पारानी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन पाथेय के साथ मंगल आशीष प्रदान की।