आदित्य तिक्कू।।
अयोध्या विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को मध्यस्थों को सौंप दिया। मध्यस्थता की बातचीत फैजाबाद में होगी। जस्टिस फकीर मुहम्मद खलीफुल्ला मध्यस्थता पैनल की अध्यक्षता करेंगे। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर और वकील श्रीराम पंचू भी होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैनल 4 हफ्ते में मध्यस्थता के जरिए विवाद निपटाने की प्रक्रिया शुरू करे। 8 हफ्ते में यह प्रक्रिया खत्म हो जानी चाहिए। सदियों का विवाद चंद हफ्तों में निकल आये इससे सुखद और क्या हो सकता है।
कानून के दायरे में देखें तो यह मात्र जमीन के मालिकाना हक का विवाद है, लेकिन सच्चाई हम सब जानते है कि यह केवल जमीन के एक टुकड़े का मसला नहीं। इस पर आश्चर्य नहीं कि कुछ लोग अभी भी यह तर्क पेश कर रहे हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने के बजाय उसे मध्यस्थता के हवाले क्यों कर दिया? इस तर्क का अपना महत्व है, लेकिन सभी पक्षों से बात करके किसी सर्वमान्य हल पर पहुंचने के जो लाभ हैं, वे कहीं अधिक दूरगामी महत्व के हैं। यदि आपसी वार्ता से अयोध्या विवाद का हल निकल आता है तो किसी भी पक्ष को निराशा का सामना नहीं करना पड़ेगा। आपसी सहमति से हासिल समाधान न केवल संबंधित पक्षों में सद्भाव बढ़ाएगा, बल्कि देश में भी मैत्री की भावना का संचार करेगा।
अच्छी बात यह भी है कि मुकदमे के तीनों पक्ष- रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के वकीलों को भी संयम बरतने और इतिहास पर बहस न करने के लिए कहा गया है। वाकई, यह समय की मांग है कि इतिहास में जो गलतियां हुई हैं, उनसे निकलने के लिए आशंकाओं से पीछा छुड़ाते हुए संभावनाओं की दिशा में सोचा जाए। करीब सात दशक से यह विवाद देश में सांप्रदायिक तनाव और दूरियों की एक जिंदा वजह रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने अब एक नए अध्याय की शुरुआत की है। यह अध्याय तभी खुशनुमा मुकाम पर पहुंचेगा, जब हम अनावश्यक उत्तेजना से बचते हुए संयम व समझदारी का परिचय देंगे। मध्यस्थों की रिपोर्ट पर पूरे देश की निगाह रहेगी, लेकिन उस पर सुप्रीम कोर्ट को ही अंतिम निर्णय लेना है।
मध्यस्थता : अयोध्या विवाद की नई शुरुआत !
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