नई दिल्ली। भारतीय राजनीति के इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की दोस्ती हमेशा याद की जाएगी। मित्रता के इस मीठे संबंध में महत्वकांक्षाओं की कोई जगह नहीं थी। कुछ मुद्दों पर मतभेद हुए, लेकिन मनभेद कभी नहीं हुए। दोनों की उम्र में तीन साल का फासला था। आने वाले समय में 7 दशकों की इस दोस्ती की मिसाल दी जाती रहेगी।
वाजपेयी और आडवाणी, दोनों का स्वभाव एक दूसरे के विपरीत था लेकिन फिर भी दिल में एक-दूसरे के प्रति काफी सम्मान था। पार्टी में दोनों के अपने-अपने वफादार और करीबी थे। दोनों के अपने-अपने कैंप थे। राजनीतिक सफर में ऐसे ढेरों मौके आए जब दोनों की राय एक-दूजे से जुदा थी। दोनों के तौर-तरीके अलग होने के कारण दोनों की राजनीतिक यात्राएं भी काफी हद तक अलग-अलग रहीं।
वाजपेयी और आडवाणी, दोनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से राष्ट्रीय राजनीति में आए थे। दोनों की छवि एक समय में हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर थी। दोनों की रुचि साहित्य, पत्रकारिता और सिनेमा में थी। 1951 में जब जनसंघ की स्थापना हुई तब आरएसएस ने अपने होनहार कार्यकर्ताओं को इस राजनीतिक पार्टी से जोड़ा। आडवाणी और वाजपेयी जनसंघ में शामिल हुए और दोनों ने देश में इसके पांव जमाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई।
जेल में एक साथ वक्त बिताया
आपातकाल के दिनों में दोनों एक साथ जेल में रहे। दोनों ने जनसंघ का विलय जनता पार्टी में करने का फैसला किया। उनकी इस रणनीति ने कांग्रेस की कमर तोड़ दी। 1977 में जब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया और आडवाणी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री।
इसके बाद दोनों ने जनता पार्टी से अलग होकर 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बनाई। वाजपेयी बीजेपी के पहले अध्यक्ष बने। 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ दो सीटें मिली थीं। 1986 में पार्टी ने अपने सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को अध्यक्ष पद से हटा दिया।
पार्टी में आडवाणी की बढ़ती लोकप्रियता के बीच दोनों करते रहे एक दूसरे का सम्मान
80 के दशक में पार्टी में आडवाणी का प्रभाव काफी बढ़ गया। आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी ने हिंदुत्व की विचारधारा पर सवार होकर देश भर में पांव पसारने शुरू किए। इस दौरान अटल बैकसीट पर थी और आडवाणी फ्रंट सीट पर। अटल अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्षधर थे लेकिन वह आक्रामक व कट्टर हिंदुत्व की राजनीति को सही नहीं मानते थे। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को लेकर वह कभी सहज नहीं थे। ये वो दौर था जब लाल कृष्ण आडवाणी पार्टी के ध्वजवाहक बन गए थे।
आडवाणी जन नेता नहीं थे। पर हिमाचल के पालमपुर में 1988 में अयोध्या आंदोलन में शामिल होने का फैसला और फिर सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के कार्यक्रम से मिली लोकप्रियता ने उन्हें संघ और पार्टी की नजर में अटल से आगे कर दिया। 1984 में दो सीटों पर सिमट गई भारतीय जनता पार्टी को 1996 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी तक लाने का श्रेय आडवाणी को दिया जाता है।
1995 में और मजबूत हो गई दोनों की दोस्ती
लेकिन साल 1995 में वो घटना हुई जिसके चर्चे भारतीय राजनीति के इतिहास में हमेशा होते रहेंगे। 1995 में मुंबई में बीजेपी का बड़ा अधिवेशन हुआ। सभी को तय था कि अगले साल बीजेपी लाल कृष्ण आडवानी को अपना चेहरा बनाकर चुनाव में उतरने वाली है। लेकिन 12 नवंबर 1995 को हुए इस रैली में जब लाल कृष्ण आडवाणी मंच पर बोलने आए तो उन्होंने कहा- अब समय आ गया है जब बीजेपी के अध्यक्ष के नाते मैं यह बोलूं कि अबकी बारी अटल बिहारी। आडवाणी ने घोषणा कर दी कि 1996 में बीजेपी वाजपेयी को अपना प्रधानमंत्री बनाकर चुनाव लड़ेगी।
वाजेपयी ने मंच पर आडवाणी की बात काटने की कोशिश की थी लेकिन आडवाणी ने साफ बोला कि बतौर अध्यक्ष इस बात की घोषणा मैं कर चुका हूं।
जब 1999 में एनडीए की सरकार बनी तो सरकार की ज्यादतर ताकत वाजपेयी और आडवाणी के हाथों में ही रही। अटल बिहारी वाजपेयी के नेत़ृत्व वाली सरकार में आडवाणी केंद्रीय गृहमंत्री बने थे। और फिर इसी सरकार में उन्हें 2002 में उप-प्रधानमंत्री पद का दायित्व भी सौंपा गया था। सरकार में रहते हुए भी दोनों के बीच कई बार विभिन्न मामलों पर मतभेद हुए लेकिन दोनों ने कभी अपना आपा नहीं खोया। दोनों की दोस्ती पक्की रही। साल 2004 में आम चुनाव में बीजेपी की हार के बाद उन्होंने गिरती सेहत के चलते राजनीति से संन्यास ले लिया।
आडवाणी अकसर करते रहे अटल की तारीफ
दोनों के राजनीतिक रिश्तों की मधुरता इस बात से पता चलती है कि आडवाणी ने खुद कई-कई बार मंचों से अटल की जमकर तारीफे कीं। आडवाणी ने अटल से एक बार कहा था – ‘मुझे हज़ारों की भीड़ के सामने आपकी तरह भाषण देना नहीं आता।’ आडवाणी के मुताबिक अटल अभी तक के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री हुए हैं।
कमला आडवाणी ने भी निभाई अहम भूमिका
कुछ किताबों में इस बात का जिक्र है कि वाजपेयी और आडवाणी की दोस्ती के बीच आडवाणी की पत्नी कमला आडवाणी ने अहम भूमिका निभाई। जब कभी दोनों के बीच मुनमुटाव होता तो कमला आडवाणी वाजपेयी को डिनर पर घर बुला लिया करती थीं। और इस बहाने से वाजपेयी और आडवाणी के गिले शिकवे दूर हो जाया करते थे।
साथ लिया करते थे चाट का मजा
वाजपेयी और आडवाणी अकसर पुरानी दिल्ली की चाट खाने साथ जाया करते थे। दोनों ने साथ में कई फिल्में भी देखीं।
याद किए जाते रहेंगे अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की दोस्ती के किस्से
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