हम सबके आसपास ऐसे लोगों की लंबी फौज होती है, जो हमें सलाह देते रहते हैं। अपनी सलाहों से वे हमें बदलना चाह रहे होते हैं। कुल मिलाकर वे हमें, जैसे बाकी सब हैं, वैसा बनाने में जुट जाते हैं। नतीजा, हम खुद के प्रति सहज नहीं हो पाते।
15 थिंग्स यू शुड गिव अप टु बी हैपी नामक चर्चित किताब की लेखिका ल्यूमिनिटा डी. सेवियुक कहती हैं कि हम जीवन में कई ऐसे लोगों से मिलते हैं, जो हमें बताते हैं कि हमें अपने में कुछ बदलाव करने चाहिए। ज्यादातर लोगों को इस तरह के सुझाव या दखलअंदाजी अखरती है। इनकी वजह से हम खुद के प्रति रक्षात्मक हो जाते हैं और ऐसा व्यवहार करने लगते हैं, जैसे हम कुछ गलत काम कर रहे हों और हमें अपना रवैया या तौर-तरीका सुधारने की बहुत आवश्यकता है। यहां पर यह कहना सही नहीं होगा कि दूसरों के नजरिये या सुझाव में सत्य की मौजूदगी बिल्कुल नहीं होती। पर, दूसरों के द्वारा अपना विश्लेषण किए जाने पर कैसा लगता है, यह जानना भी जरूरी है।
भीड़ से अलग होना
एक क्षण के लिए सोचें कि हम जीवन को लेकर अलग तरीके से व्यवहार करते हैं, हमारी शुरुआत अलग होती है और हमारे जीवन के अनुभव भी अलग ही होते हैं।
सलाह देना बन रहा चलन
लोगों को बदलाव की सलाह देना आजकल का चलन बनता जा रहा है। जरूरत से ज्यादा भावनाएं दर्शाने पर आप पर ठप्पा लग सकता है, ज्यादा गुस्सा करने पर गुस्सैल का ठप्पा, ज्यादा हंसमुख होने पर जोकर या हंसोड़ का ठप्पा। और मेरे मामले में दुखी व्यक्ति का ठप्पा।
दूसरों के लिए बदलने का क्या मतलब
हमारी आदत है कि हम प्रोत्साहन को देखकर प्रतिक्रिया करते हैं। सांस्कृतिक स्वीकृति वह मंत्र है, जिसे देखकर हम अपने फैसले करते हैं। वर्ष 2011 में एक शोध हुआ कि कैसे समाज में सक्रिय लोग अपने व्यवहार में बदलाव लाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो लोग इस बात को लेकर ज्यादा परेशान रहते हैं कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। मनोविज्ञान की विद्यार्थी होने के नाते मेरा ज्ञान कहता है कि जो लोग अवसाद में होते हैं, वे अपने बारे में ज्यादा बेहतर जानते हैं, बजाय उनके जो अवसादग्रस्त नहीं हैं।
सबसे अलग होने का तोहफा
खुद को बदलना रातोंरात संभव नहीं होता, ना तो यह नए हेयर स्टाइल से संभव है और न ही वजन घटाने से या मस्तमौला दिखने से। बेशक इन बातों से हमें अच्छा महसूस हो सकता है, लेकिन हमारी आदतें और जीवनशैली वही रहेंगी और रह-रह कर तब तक उभर कर सामने आती रहेंगी, जब तक हम उन पर पूरी तरह से काबू नहीं पा लेते।
ईश्वर का उपहार है हमारा अनूठापन
दूसरे हमें स्वीकार करें, इस दिशा में प्रयास करते हुए कई बार हम यही नहीं समझ पाते कि ऐसा करके हम तनाव में आ रहे हैं या राहत महसूस करते हैं? हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि अपनी बेहतरी के लिए कोई प्रयास ही नहीं करें। हम जिस तरह से अनूठे हैं, वह एक तरह से ईश्वर का हमें दिया उपहार है। इसे भी संजोएं।