वर्तमान समय में ऐसे मुद्दों पर फ़िल्म बन रही है जिसे पहले कोई बनाने की सोच भी नहीं सकता था। जैसे दो लड़कियों की प्रेम कहानी, बुढ़ापे में बच्चा पैदा करना, चुड़ैल का डर और अब लिव इन रिलेशनशिप पर बनी फिल्म ‘लुका छिपी’। सभी की कहानियां कुछ अलग ढर्रे पर बनी है। फ़िल्म में कुछ ड्रामा और हंसाने वाले कुछ पंच से ही फिल्मों में जान आ जाती है। यदि निर्देशक की चतुराई के साथ सही कलाकार मिल जाये तो फ़िल्म की गति को कोई नहीं रोक सकता। ऐसे ही एक अलग मुद्दे को दर्शाती फ़िल्म लुका छुपी की कहानी है।
फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह है, मथुरा की गलियों में रहने वाला रिपोर्टर गुड्डू शुक्ला की है जो निजी केबल चैंनल के लिए रिपोर्टिंग करता है, अपनी रिपोर्टिंग करने की अलग स्टाइल के कारण मथुरा में प्रसिद्ध है। उसका दोस्त अब्बास (अपारशक्ति खुराना) कैमरामैन होता है। संस्कृति रक्षा मंच के नेता विष्णु त्रिवेदी (विनय पाठक) हैं, जिनका दबदबा पूरे प्रदेश में है। एक फ़िल्म स्टार नाजिम खान द्वारा लिव इन की बात उजागर होने के बाद उनकी पार्टी को नया मुद्दा मिल जाता है। उनका मोर्चा हर प्रेमी जोड़े के खिलाफ है और उन्हें प्रताड़ित भी करता है। विष्णु की बेटी रश्मि (कीर्ति सेनन) दिल्ली जा कर पत्रकार बनना चाहती है पर विष्णु चाहता है कि उसकी बेटी रश्मि उनके पास में ही रहे इसलिए वह गुड्डू के ही प्रेस में काम करने के लिए रश्मि को मना लेता है। एक साथ काम करते-करते गुड्डू और रश्मि को प्यार हो जाता है। गुड्डू उससे शादी करना चाहता है पर रश्मि प्यार में एक बार धोखा खा कर डर गई है। वह पहले गुड्डू को अच्छी तरह जान लेने के बाद ही उससे शादी करना चाहती है। इस परेशानी को दूर करने के लिए अब्बास उन्हें लिव इन में रहने की सलाह देता है। दोनों तैयार हो जाते हैं और रिपोर्टिंग के लिए ग्वालियर जाकर वही लिव इन में रहना शुरू कर देते हैं। पड़ोसी उन पर शक ना करें यह सोचकर वे अपनी झूठी शादी का नाटक करते हैं। तभी गुड्डू की भाभी का भाई बाबूलाल (पंकज त्रिपाठी) उनकी चोरी पकड़ लेता है और यह खबर पूरे परिवार को बता देता है। दोनों के परिवार के सदस्य उन्हें शादीशुदा मानकर थोड़ी नोक झोंक के बाद अपना लेते हैं। लेकिन बिना शादी के विवाहित की जिंदगी बिताने पर उन्हें अपराधबोध होता है और अपनी गलती को छुपाने और अपराधबोध से बचने के लिये वे शादी करने की कोशिशें करते हैं और हर बार नए मुसीबत में फंस जाते हैं। वे कैसे अपनी सच्चाई परिवार को बताएंगे और कैसे इस मुसीबत से छुटकारा पाएंगे यह फ़िल्म देखने पर और मजेदार लगेगा।
फ़िल्म का निर्देशन तो अच्छा है लेकिन कहानी का कॉन्सेप्ट कंफ्यूज़ करता है कि वो शादी के पक्ष में है या लिव इन के। कलाकारों ने भी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की है। संदली और कोकाकोला सांग पहले से ही हिट थे, पोस्टर लगवा दो भी फेमस था। फ़िल्म में गानों में नयापन नहीं है, हिट गीतों को ही उनके असली रूप में ही रखा है। फ़िल्म के डायलॉग और पंच अच्छे हैं।
युवावर्ग को फ़िल्म का गीत और कार्तिक – कीर्ति की जोड़ी पसंद आ सकती है।
– गायत्री साहू
फिल्म समीक्षाः लुका छुप्पी (3 स्टार)
Leave a comment
Leave a comment