कलाकारः सपना चौधरी, विक्रांत आनंद, जुबेर खान, अंजू जाधव, खुशी आनंद, नील मोटवानी, साई भल्ला
निर्देशकः हादी अली अबरार, अवधिः 2 घंटा 11 मिनट, स्टारः 2
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बिग बॉस फेम हरियाणवी लोक गायिका व डांसर सपना चौधरी की फिल्म ‘दोस्ती के साइड इफेक्ट्स’ रिलीज हो गई। सपना के बड़े पर्दे पर आने की खबर के बाद से ही उनके फैन्स काफी उत्साहित थे लेकिन बॉक्स ऑफिस पर सपना शायद वह जलवा ना दिखा पाएं जो वे अपने लाइव परफार्मेंस में दिखाती रही हैं। कुल मिलाकर सपना चौधरी की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म ‘दोस्ती के साइड इफेक्ट्स’ अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं रही है।
कहानीः फिल्म चार बचपन के दोस्तों की कहानी है जो बचपन में किसी न किसी वजह से बिछड़ जाते हैं और उनकी दोबारा मुलाकात तब होती है जब वे कॉलेज पहुंच जाते हैं। कॉलेज में मिलने के बाद सभी काफी खुश होते हैं। मस्ती करते हैं और अपने-अपने सपने बताते हैं। एक अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहती है तो एक अपने पिता को ही मिट्टी में मिलाने का ठाने अपने मंजिल की ओर बढ़ता है। इनमें से एक करोड़पति से शादी करके सेटल होना चाहती है तो एक देश के लिए कुछ करना चाहता है। हालांकि देश के लिए कुछ करने को लेकर सभी सहमत हैं। इस बीच कॉलेज में इलेक्शन होता है, जिसे लेकर इनके आपसी दोस्ती में दरार पड़ जाती है और फिर से बिछड़ जाते हैं और अपनी-अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हैं। इस बीच सपना आईपीएस अफसर बन जाती है दूसरे दोस्त भी अलग-अलग तरह से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हैं। अचानक एक मेडिकल स्कैम उस कॉलेज में होता है जिसमें सपना की मां प्रिंसिपल होती है। और फिर चारों दोस्त मिलते हैं। इस तरह उलझी कहानी के बीच ‘दोस्ती के साइड इफेक्ट्स’ को समझना है तो एक बार थिएटर जरूर जाएं।
अभिनयः अगर आप पुलिस अफसर के रूप में सपना चौधरी में जबरदस्त दबंगई की उम्मीद कर रहे हैं तो यह कुछ ज्यादा कर रहे हैं। हालांकि सपना को करने के लिए काफी कुछ था लेकिन वे अभिनय के क्षेत्र में वह जलवा नहीं दिखा पाई हैं जो अपने स्टेज शो में दिखाती रही हैं। बाकी कलाकारों में विक्रांत आनंद, जुबेर खान, अंजू जाधव, खुशी आनंद, नील मोटवानी, साई भल्ला भी अपने किरदारों में कुछ खास नहीं कर पाए। हालांकि इनसे बहुत कुछ करवा सकते थे। फिर भी सपना के फैन उऩ्हें कॉलेज स्टूडेंट, पुलिस और फिर जिगरी दोस्त के रूप में देखने थिएटर जा सकते हैं।
निर्देशनः ‘दोस्ती के साइड इफेक्ट्स’ में निर्देशन काफी कमजोर कड़ी लगी है। इफेक्ट्स की भरमार है लेकिन उसको प्रभावी बनाने में निर्देशक हादी अली अबरार नाकायमाब रहे हैं।
संगीतः गानों में भी कोई ऐसा नहीं बन पाया जिसे गुनगुनाते हुए आप थिएटर से निकलें। सपना का एक आयटम नंबर भी है लेकिन वह भी प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं हुई है।