स्वयंसेवी संगठन भारतीय बाल कल्याण परिषद (इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर) अपने स्तर पर 21 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार, 2018 देगा। दरअसल परिषद पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप हैं और दिल्ली हाईकोर्ट में केस चल रहा है। केंद्र सरकार ने इस बार पुरस्कार का नाम बदलकर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार कर दिया है। इसके लिए 26 बच्चे अलग अलग वर्ग जैसे इनोवेशन, सोशल सर्विस, स्कालेस्टिक, आर्ट एंड कल्चर, स्पोर्ट्स, बहादुरी में चुने गए हैं। बाल विकास मंत्रालय ने खुद को परिषद से अलग कर लिया है। परिषद के चुने 21 बच्चे गणतंत्र दिवस परेड में शामिल नहीं होंगे। प्रधानमंत्री पुरस्कार वाले 26 बच्चे परेड में शामिल होंगे। यह बात सामने आने पर परिषद ने शुक्रवार को प्रेस वार्ता कर अपनी बात रखी। परिषद की अध्यक्ष गीता सिद्धार्थ ने कहा कि भारतीय बाल कल्याण परिषद केवल बहादुरी के लिए पुरस्कार देती थी। जबकि सरकार द्वारा चयनित 26 बच्चों में सभी का चयन बहादुरी के लिए नहीं है।
आईटीओ स्थित भारतीय बाल कल्याण परिषद कार्यालय में 21 बहादुर बच्चों से मीडिया को रू-ब-रू करवाया गया। गीता का आरोप है कि केंद्र सरकार ने उन्हें अलग से राष्ट्रीय बाल पुरस्कार देने की जानकारी नहीं दी थी। वर्ष 1957 से परिषद ही देशभर में बहादुरी का काम करने वाले बच्चों के नामों का चयन करते हुए पुरस्कार देती थी। इसमें केंद्र सरकार सहयोग करती थी और गणतंत्र दिवस की परेड में उक्त बहादुर बच्चों को शामिल किया जाता रहा है। पिछले 61 सालों में 963 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
सरकार की ओर से गणतंत्र दिवस परेड से पहले होनहार बच्चों को राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से मिलने का मौका मिलता था। पुरस्कार पाने वाले बच्चों की पढ़ाई, ट्रेनिंग आदि का पूरा खर्चा परिषद ही देती थी, जिसमें कभी केंद्र सरकार से मदद नहीं मांगी गयी थी। राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार 2018 में खुद को अलग करने के फैसले के बाद से दिल्ली सरकार भी पीछे हट गयी है। शुक्रवार को उक्त छात्रों को उपराज्यपाल अनिल बैजल से मिलना था, लेकिन बाद में उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से तय कार्यक्रम रद्द कर दिया गया।
सरकार के सहयोग के बगैर भी देते रहेंगे पुरस्कार
गीता का कहना है कि केंद्र सरकार ने बेशक अदालत में वित्तीय अनियमतिता के केस के चलते राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार 2018 में खुद को अलग कर लिया है, लेकिन एनजीओ बहादुर बच्चों को यह पुरस्कार देता रहेगा। गीता से जब उनके एनजीओ पर वित्तीय अनियमितता का सवाल पूछा गया तो कहा उनका कहना था कि मामला अदालत में विचाराधीन है। इसलिए इस संबंध में मैं कुछ नहीं कह सकती हूं।
विवाद के बाद भी परिषद 21 बहादुर बच्चों को देगी राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार
भारतीय बाल कल्याण परिषद (एनजीओ) 21 बहादुर बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार 2018 से सम्मानित करने जा रहा है। यह राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार 2018 एनजीओ की ओर से दिया जाने वाला पुरस्कार होगा, जिसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी। भारतीय बाल कल्याण परिषद की अध्यक्ष गीता सिद्धार्थ ने शुक्रवार को बहादुर बच्चों के नामों की घोषणा की। इसमें जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से सीधा मुकाबला करने पर सेना के दो परिवारों के दो बच्चों गुरूगु हिमाप्रिया और सौम्यादीप जना को एनजीओ का सर्वोच्च भारत अवार्ड दिया जाएगा।
जबकि दिल्ली निवासी व मूलरूप से टिहरी गढ़वाल की मरणोपरांत नितिशा नेगी को गीता चोपड़ा अवार्ड, हिमाचल प्रदेश की मुस्कान और सीमा को मनचलों को सबक सिखाने, उत्तर प्रदेश स्थित बाराबंकी के कुंवर दिव्यांग सिंह को अपनी छोटी बहन से गुस्साए बैल से बचाने, दिल्ली निवासी व मूलरूप से गोरखपुर के रहने वाले मंदीप कुमार पाठक को सड़क पर छोटी बच्ची को दीवाली की रात पटाखों से झुलसने पर बचाने समेत अन्य को पुरस्कार 2018 दिया जा रहा है।
मंदीप कुमार पाठक : डॉक्टर बनकर आम लोगों को जीवनदान का सपना
दिल्ली स्थित उत्तम नगर में मंदीप कुमार पाठक (साढ़े 13 साल) अपने परिवार समेत रहते हैं, जबकि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कबीर नगर के रहने वाले हैं। मंदीप का परिवार 19 अक्तूबर 2017 को दीवाली पूजन की तैयारी कर रहा था। परिवार ने मंदीप को पटाखे न जलाने को कहा। इसी बीच मंदीप घर से बाहर सड़क पर घूमने लगा। उसने देखा कि एक आदमी ने सड़क पर पटाखा जलाया और चला गया। इसी बीच पास ही खड़ी छोटी बच्ची ने उस पटाखे को हाथ में उठा लिया। उसने बच्ची के हाथ से पटाखा छीना, लेकिन इसी बीच वह मंदीप के हाथ में फट गया। इसके चलते मुंह के साथ-साथ हाथ झुलस गया।
अस्पताल में मंदीप के हाथ की प्लास्टिक सर्जरी करनी पड़ी। मंदीप कहते हैं कि यदि मैं अपने बारे में सोचता तो बच्ची को बेहद ज्यादा चोट लगती। मेरा सपना है कि डॉक्टर बनकर आम लोगों की जिंदगी संवारू। दिल्ली सरकार के गवर्नमेंट ब्यॉयज सीनियर सेकेंडरी स्कूल में नौंवी कक्षा में पढने वाले मंदीप बेटियों की रक्षा के लिए मार्शल आर्ट भी सीख रहे हैं। ताकि यदि कभी जरूरत पड़ी तो बहन-बेटियों की सुरक्षा में उस आर्ट को प्रयोग करेंगे।
कुंवर दिव्यांश सिंह : डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा करने की चाहत
उत्तर प्रदेश स्थित बाराबंकी निवासी कुंवर दिव्यांश सिंह (साढ़े 12 साल) को अपनी छोटी बहन को बचाने के लिए पुरस्कार दिया जा रहा है। 31 जनवरी, 2018 को दिव्यांश अपनी पांच वर्षीय बहन समृद्धि के साथ स्कूल से घर लौट रहे थे। बस स्टॉप से घर आते समय एक गुस्साए बैल ने समृद्धि पर हमला कर दिया। इससे बच्ची घबरा गयी, इसी बीच बैल ने उसे लगभग नीचे गिरा दिया।
दिव्यांश ने चतुराई से स्कूल बैग से बैल को रोका और बहन को बचाया। इसी बीच बैल ने दिव्यांश को सड़क पर गिराया और भाग गया। इसके चलते दिव्यांश के दांए हाथ की हड्डी खिसक गयी और अन्य चोट भी आयीं। हालांकि चोट लगने के बाद भी दिव्यांश ने सुरक्षित अपनी छोटी बहन को अस्पताल पहुंचाया। दिव्यांश अपने पिता डॉ. डीबी सिंह, मां वनीता सिंह के साथ पुरस्कार लेने दिल्ली पहुंचे हैं।
प्रधानमंत्री से गणतंत्र दिवस परेड में शामिल करने की मांग
दिव्यांश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गणतंत्र दिवस परेड में पबहादुर बच्चों को शामिल करने की मांग रखी है। दिव्यांश का कहना है कि एनजीओ और सरकार के बीच जो भी विवाद हो, उसमें हमें शामिल न किया जाए। अब हम जब दिल्ली पहुंच चुके हैं तो हमें भी गणतंत्र दिवस परेड में शामिल करने का मौका दें।
मुस्कान और सीमा : मनचलों को हिमाचली बेटियों ने सिखाया सबक
कुल्लू निवासी मुस्कान (17) और सीमा (14) सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती थीं। इसी बीच घर आते हुए सूनसान सड़क पर मनचले उन पर फब्तियां कसते थे। आपत्तिजनक टिप्पणी से परेशान होकर बहादुर बेटियों ने सरकारी स्कूल कुल्लू की प्रधानाचार्य से शिकायत की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद भी लगातार मनचले बेटियों को परेशान करते रहे। 10 जुलाई 2017 को मुस्कान व सीमा अपनी तीन सहेलियों के साथ स्कूल जा रही थी तो दोबारा मनचलों ने परेशान किया। इसी बीच मुस्कान व सीमा ने मनचलों को सबक सिखाने के लिए उनकी पिटाई कर दी। इसी बीच मनचलों ने मुस्कान को ढलान से नीचे गिरा दिया। इससे मुस्कान को गंभीर चोट आई। सीमा व अन्य छात्राओं ने मुस्कान को बचाने के साथ-साथ मनचलों को पुलिस थाने तक भी पहुंचाया।
मुस्कान सेना में अधिकारी और सीमा पुलिस में जाना चाहती है। दोनों बहादुर बेटियों का कहना है कि चुप रहने से बदमाशों का लगता है कि लड़कियां डर गयीं। लेकिन एक बार हिम्मत करने से रोज-रोज की परेशानी से निजात मिल जाती है। इस घटना के बाद स्कूल में लड़कियों को ऐसे बदमाशों से डरने की बजाय आगे बढ़कर उनका मुकाबला करने की ट्रेनिंग दी जाती है। जबकि पुलिस भी अब सुनसान सड़कों पर नजर रखने लगी है।
नितिशा नेगी : मरणोपरांत गीता चोपडा अवार्ड
दिल्ली स्थित खिचड़ीपुर निवासी व मूल रूप से उत्तराखंड टिहरी गढवाल के रहने वाले परिवार की नितिशा नेगी (15) को तैरना नहीं आता था। लेकिन सहेली को बचाने के लिए पानी में उतर गयी। सहेली को तो बचा लिया पर अपनी सांसें खो बैठी। नितिशा नेगी की मां मीना नेगी, पिता पूर्ण सिंह व बहन शिवांगी नेगी पुरस्कार 2018 लेंगे। मां मीना नेगी ने बताया कि नितिशा दिल्ली सरकार के राजकीय सर्वोदय कन्या विद्यालय में 11वीं कक्षा में पढ़ती थी। अंडर 17 फुटबाल टीम के सदस्य के रूप में पेसिफिक स्कूल गेम्स में हिस्सा लेने के लिए आस्ट्रेलिया गई थी।
10 दिसंबर, 2017 को नितिशा नेगी अपनी सहेली के साथ बीच पर गई थी। इसी बीच बड़ी लहर के आने पर लड़कियां घबरा गईं और संतुलन बिगड़ गया। उन्हें बचाने के लिए नितिशा गहरे समुद्र में चली गई। मां मीना नेगी का कहना है कि मौत का इतना समय बीतने के बाद भी आज तक उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक नहीं मिली है। दिल्ली सरकार की ओर से टीम भेजी गई थी, लेकिन मुख्यमंत्री या शिक्षामंत्री ने कभी परिवार की सुध नहीं ली।
गुरूगु हिमाप्रिया : तीन घंटे तक आतंकियों को कमरे मे रोके रखा
जम्मू कश्मीर स्थित संजुवन सेना कैंप में दस फरवरी 2018 को आतंकी घूस आए थे। इसी बीच एक ग्रेनेड सेना के जवान के घर के अंदर तक पहुंच गया। हवलदार सत्यनारायण की तीन बेटियां व पत्नी पद्मावती घर पर थी। ग्रेनेड के हमले से पदमावती का हाथ पूरी तरह जख्मी हो चुका था, जबकि बच्चों के सिर पर आंतकी ने बंदूक तान रखी थी। हालांकि फौजी परिवार जानता था कि बाहर सेना के जवान आंतकियों को पकडने के लिए पहुंच गए है, इसलिए आतंकी को घर के अंदर रोके रखना जरूरी था।
इसीलिए पद्मावती दरवाजा पकड़कर खड़ी हो गईं। जबकि गुरूगु हिमाप्रिया (साढ़े आठ साल) आतंकी से बात करने लगी। आतंकी छोटी बच्ची से बातों में उलझ गया। करीब तीन घंटे तक बच्ची ने आतंकी से बातचीत जारी रखी। इसी बीच सेना को समय मिल गया और वे आतंकी को पकडने में कामयाब रहे। गुरूगु हिमाप्रिया सेना में अधिकारी बनना चाहती है, ताकि पिता की तरह देश की सेवा कर सके।
सौम्यदीप जना : सैन्य कैंप में तीन आंतकियों से लिया लोहा
जम्मू कश्मीर के संजुवन सैन्य कैंप में दस फरवरी 2018 को तीन से चार आतंकी घूस आए थे। अफरातफरी के बीच सौम्यदीप जना (साढ़े 13 साल) अपनी परवाह किए बगैर घर से बाहर निकला और मां व बहन का घर के अंदर सुरक्षित लिया। आतंकी घर के अंदर आने के लिए लगातार गोलियां बरसा रहे थे। इसी बीच सौम्यादीप दरवाजे बंद करके खड़ा रहा। इसी बीच बाहर से ए56 गन से गोली सीधे उसके सिर पर लगी।
सौम्यादीप तीन महीने तक कोमा में रहा और इस समय भी दिल्ली स्थित आरआर अस्पताल में भर्ती है। बोलने में असमर्थ सौम्यादीप व्हील चेयर पर है और अपना काम खुद नहीं कर पाता है। सौम्यादीप बड़ा होकर सेना में अधिकारी बनने का सपना देखता था, लेकिन इस घटना के बाद अब उसका सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा।