दिनेश कुमार चक्रवर्ती।।
4 स्टार
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राजेंद्र फिल्म्स द्वारा निर्मित देश के मशहूर स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त व आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जीवन पर बनी बायोपिक ‘वो जो एक था मसीहा मौलाना आजाद’ कल यानि 18 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। इससे पहले अंधेरी के फर्स्ट लुक प्रीव्यू थिएटर में इसकी स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई। फिल्म सभी को बेहद पसंद आई। पूरी फिल्म में कहीं भी दर्शकों के लिए बोर होने की स्थिति नहीं हुई। अच्छे लोकेशन व अच्छे कलाकारों से सजी इस फिल्म में कुछ चीजों की कमी खलती जरूर है लेकिन बेहतरीन निर्देशन और मौलाना के शानदार किरदार ने उन्हें हावी नहीं होने दिया है।
कहानीः अगर कहानी की बात करें तो यह मौलाना आजाद के जीवन पर आधारित है। सभी को पता है कि कलकत्ता में जन्मे मौलाना ने अपनी पूरी जिंदगी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई व देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए समर्पित कर दी थी। उनका वह डायलॉग वाकई में काफी प्रभावित करता है कि – ‘मैं एक बार स्वराज को त्याग सकता हूं लेकिन देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता को नहीं’। पूरी कहानी मौलाना के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें बचपन से देशप्रेम, पढ़ाई का शौक और देश के लिए कुछ कर गुजरने के उनके जज्बे, क्रांतिकारी अरबिंदों घोष के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकना, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू से उनकी करीबी, जेल में बिताए दिन और उस दौरान भी उनकी सक्रियता, पिता, पुत्र, भाई और पत्नी की अकाल मृत्य एवं अंत में उनके अस्वस्थ्य होने पर मृत्यु के पश्चात मौलाना के अंतिम विदायी को राजेंद्र गुप्ता ने बखूबी परदे पर उतारा है। कुल मिलाकर मौलाना अबुल कलाम आजाद के जीवन का कोई ऐसा पहलू नहीं बचा है, जिस पर फिल्म ने प्रकाश ना डाला हो।
एक्टिंगः फिल्म में मुख्य किरदार यानि मौलाना का किरदार निभा रहे लिनेश फणसे की तारीफ तो करनी ही पड़ेगी। उन्होंने मौलाना के जीवन को बेहद मजबूती से परदे पर निभाया है। बेहतरीन एक्टिंग की है। लुक से लेकर हाव, भाव, लहजा सभी को लिनेश ने अपने अभिनय के जरिए परदे पर उतार दिया है और यही मौलाना फिल्म की जान हैं। बाकी कलाकारों में जुलैखा के किरदार में सिराली, मोहम्मद खैरुद्दीन के रूप में सुधीर जोगलेकर, यासिन के लिए भानु प्रताप, फातिमा के रोल में काव्या, जैनब – दर्शना, बचपन के आजाद – साईदीप सहित अन्य कलाकार सामान्य रहे हैं। उन्होंने अपना बेहतर देने की कोशिश की है। महात्मा गांधी के रोल में डॉ. राजेंद्र संजय खूब जमे हैं जबकि सीआर दास के किरदार में आलोक गुप्ता ने भी अच्छा अभिनय किया है। फिल्म में वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र मिश्र सीतारमैया के रोल में हैं, उनके संवाद थोड़े हैं लेकिन अपनी अदायगी के चलते प्रभाव छोड़ते हैं। पत्रकार संतोष साहू भी छोटे से किरदार में हैं लेकिन उन्हें भी इग्नोर नहीं किया जा सकता। हालांकि लगभग सारे कलाकार अपने-अपने किरदारों को 100 पर्सेंट देने की कोशिश की है।
निर्देशन/लेखनः किसी भी फिल्म में निर्देशन उसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू होता है, खासकर बायोपिक में तो और भी अधिक। इस फिल्म में भी है और निर्देशक डॉ. राजेंद्र गुप्ता एवं संजय सिंह नेगी ने मिलकर अच्छा निर्देशन किया है। फिल्म को कहीं बहकने नहीं दिया है। चूंकि स्क्रीन प्ले व डायलॉग्स भी खुद डा. राजेंद्र गुप्ता ने ही लिखा है सो, तारतम्य बिठाने में और भी आसानी हुई है। दर्शक बिना पूरी फिल्म देखे सीट से नहीं उठेंगे।
संगीतः फिल्म का गाना ‘अबुल कलाम आजाद था, भारत का दुलारा..’ बेहतरीन गाना है। यदि आप संगीतप्रेमी हैं तो थिएटर से निकलते वक्त आप इस गाने को गुनगुनाते हुए जरूर निकलेंगे।
कुल मिलाकर मौलाना अबुल कलाम आजाद के जीवन पर बनी बायोपिक ‘वो जो एक था मसीहा मौलाना आजाद’ देश के एक सच्चे देशभक्त के जीवन की कहानी है, जिसे समझने के लिए यह फिल्म देखना बहुत जरूरी है। मौलाना आजाद को कम समय में जानने और समझने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि आप यह फिल्म जरूर देखें। सुरभि सलोनी की तरफ से ‘वो जो एक था मसीहा मौलाना आजाद’ को 4 स्टार।