कोर्ट के मुताबिक इन सभी तथ्यों के आधार पर यह संभावना हो सकती है कि आरोपी को गलत तरीके से इस क्राइम में खींचा गया हो। घटना के 20 साल बाद एफआईआर दर्ज कराने पर कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 376 (रेप) और 377 (अप्राकृतिक यौन अपराध) के लिए केस दर्ज कराने की कोई समय-सीमा नहीं है लेकिन इस मामले में ऐसे भी कोई रिकॉर्ड नहीं हैं जो साबित कर सकें कि आरोपी आलोकनाथ ने नंदा को केस दर्ज न कराने को लेकर धमकाया हो। बता दें कि नंदा ने अक्टूबर 2018 में मीटू मूवमेंट के दौरान ऐक्टर आलोकनाथ पर आरोप लगाए थे कि 19 साल पहले उन्होंने उनके साथ रेप किया था।
पीड़िता के मेडकल टेस्ट की जरूरत नहीं: कोर्ट
कोर्ट ने कहा, चूंकि आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों ही शादी-शुदा (अलग-अलग) हैं इसलिए पीड़िता का मेडिकल टेस्ट कराने का कोई मतलब नहीं है। इसके अलावा घटना शिकायतकर्ता के घर पर हुई ऐसे में आरोपी द्वारा सबूत मिटाने की भी कोई संभावना नहीं है। वहीं देर से एफआईआर दर्ज कराने को लेकर शिकायतकर्ता ने कोर्ट को बताया है कि उन्होंने इस बारे में अपने दोस्तों से सलाह ली थी लेकिन उन्होंने आरोपी के बड़े ऐक्टर होने की बात कही और बताया कि उनकी ‘कहानी’ पर कोई भी यकीन नहीं करेगा। इस वजह से वह केस फाइल नहीं कर सकीं।
आलोकनाथ की कस्टोडियल इंटरोगेशन से कोर्ट का इनकार
कोर्ट ने आलोकनाथ को राहत देते हुए यह भी कहा कि मामले की जांच के लिए ऐक्टर के कस्टोडियल इंटरोगेशन की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने शिकायतकर्ता की दो एफआईआर कॉपियों में भी भिन्नता पाई। इस पर जवाब देते हुए नंदा के वकील ने कहा कि पहला एफआईआर सिर्फ एक कवर लेटर था जिसके साथ 8 अक्टूबर 2018 का वह फैसबुक पोस्ट भी अटैच किया गया था जिसमें उन्होंने आलोकनाथ पर आरोप लगाए थे।
कोर्ट ने कहा, ‘गलत तरीके से फंसाए गए हो सकते हैं आलोकनाथ’
मुंबई:राइटर-डायरेक्टर विंता नंदा के साथ कथित बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहे बॉलिवुड ऐक्टर आलोकनाथको कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मामले में आलोक नाथ को अग्रिम जमानत देने वाले 15 पेज के ऑर्डर में सेशन कोर्ट ने कहा है कि इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोपी को गलत तरीके से इस अपराध में फंसाया गया है। यह बात ध्यान देने वाली है कि नंदा को पूरी घटना के बारे में पता है लेकिन उन्हें यह बात याद नहीं कि यह घटना किस महीने और किस तारीख को घटी।
मीटू मूवमेंट के दौरान लगे आरोप
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