कांदिवली तेरापंथ भवन में माँ-बेटी, सास-बहु सेमिनार का आयोजन हुआ

मुंबई। तेरापंथ घर्म संघ के सरताज आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमलकुमार जी व शासन श्री साध्वी सोमलता जी के सान्निध्य में विराट रूप में ”  मां – बेटी ” सेमिनार आयोजित हुआ। जिसमें सैकड़ो मां बेटियां लाल रंग की चुनड़ी व पिंक कलर की ड्रेस में आकर्षक का केन्द्र बनी हुई थी। कार्यक्रम दो चरणों में हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमलकुमार जी के द्वारा नमस्कार महामंत्रोच्चारण से हुआ। उसके पश्चात सैकड़ो भाई – बहिनों ने भक्तामर के पाठ से आदिनाथ भगवान की स्तुति की गई।  प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग व तत्व ज्ञान की जानकारी भी दी गई।
द्वितीय चरण बोरीवली की मां – बेटियों की मधुर स्वर लहरियों से प्रारम्भ हुआ। कांदिवली महिला मण्डल व कन्या मंडल ने ” बेटी को मां की सीख ” परिसंवाद के माध्यम से जीवन की अंधेरी राह में भटकती बेटियों को कलात्मक जीवन जीने की रोशनी दी।  मलाड़ की सास – बहूओं ने व मीनाक्षी और संगीनी ने मां – बेटी पर गीत गाकर श्रोतागण को भाव विभोर कर दिया।  स्वागत भाषण कांदिवली की संयोजिका की सुशीला मादरेचा ने किया।
मुख्य वक्ता आशुकवि युगराज जी जैन ने अपने अनुभवों और शेर शायरियों के माध्यम से मां – बेटी को जीवन जीने के रहस्यात्मक सूत्रों को बताते हुए कहा – वर्तमान की ज्वलंत समस्याओं का समाधान एक ही है यदि मां बचपन से बेटी को अनुशासन में जीने का संस्कार दे।
शासन श्री साध्वी सोमलता जी ने ह्रदय स्पर्शी ,  मधुर व ओज पूर्ण वाणी में कहा – आज सर्वप्रथम मां – बेटी को सुसंस्कारों का सिंचन देना अति आवश्यक है क्योंकि वही परिवार की मूल जड़ है। मां अपनी बेटी को सीख दे कि ससुराल में सबके साथ अपनत्व का भाव जोड़ने के लिए स्वभाव को शीतल बनाना जरुरी है और विनम्रता  का आभूषण पहनना  जरुरी है। आपने मां – बेटी, सास – बहू की समस्याओं का निराकरण करते हुए कहा – सास – बहू के सामंजस्य से घर स्वर्ग बनता है। इसलिए प्रत्येक सास – बहू को पराई न समझकर स्वग्रह जैसा प्यार और दुलार दे।  बहू अपनी सास को पूरा आदर और सम्मान दे। सास – बहू परस्पर अनुबंधित होकर रहेगी तो घर स्वतः मंदिर बन जायेगा और उसमें शान्ति के दीप जगमगा उठेंगे।
उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमलकुमार जी ने ओजस्वी वाणी में कहा – परिवार में सुख चैन तभी आ सकता है जब प्रत्येक सदस्य एक – दूसरे के भावों को जानने की कोशिश करे।  आपने कहा – यदि एक – दूसरे के विचारों में विपरीत ताल मेल की बिमारी लग जाये तो मौन की औषधि ले लेनी चाहिए ताकि अन्य बिमारीयां घर में प्रवेश नहीं करे।  मुनि अमन कुमार जी , साध्वी शकुंतला कुमारी जी व जाग्रतप्रभा जी की भी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन साध्वी संचित यशा , रक्षित – यशा ने किया। आभार ज्ञापन मालाड़ संयोजिका गौमती  जैन ने किया।

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