- महातपस्वी आचार्यश्री ने किया लगभग 11 कि.मी. का विहार
- पोर गांव में स्थित श्री नारायण ग्लोबल स्कूल पूज्यचरणों से बना पावन
- नशीले पदार्थों के साथ अत्याधुनिक यंत्रों के अनावश्यक प्रयोग से बचने की दी प्रेरणा
12.12.2024, गुरुवार, पोरगांव, वडोदरा (गुजरात)। गुजरात के वड़ोदरा जिले की सीमा में गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में कंडारी से मंगल विहार किया। गांव के लोगों ने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। मार्ग के अनेक स्थानों पर ग्रामीण जनता को आशीष प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पोर गांव में स्थित श्री नारायण ग्लोबल स्कूल में पधारे। स्कूल के संचालक आदि ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने पावन प्रवचन में उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि यात्रा दो प्रकार की होती है-अंतर्यात्रा और बहिर्यात्रा। अंतर्यात्रा अर्थात् भीतर की यात्रा। प्रेक्षाध्यान पद्धति का तो अंतर्यात्रा एक प्रयोग भी है। भीतर की यात्रा मानों संयम और साधना की यात्रा होती है। संयम की साधना में रमण करना भी अंतर्यात्रा है। इस अंतर्यात्रा को तो कोई अक्षम साधु भी कर सकता है, किन्तु बहिर्यात्रा तो भले ही सक्षम साधु या व्यक्ति करते हैं। बहिर्यात्रा करते हुए भी साधु अथवा जीव अंतर्यात्रा कर सकता है और इसे बिना विश्राम किए हुए भी किया जा सकता है।
बहिर्यात्रा यदि धर्म और अध्यात्म व धर्म की दृष्टि से होती है, वह यात्रा भी धर्मयात्रा हो सकती है। हमारी यह यात्रा वर्तमान में गुजरात प्रदेश में हो रही है। यात्रा में हम नैतिकता, सद्भावना व नशामुक्ति की भी बात बताते हैं, प्रतिज्ञाएं भी कराते हैं। इसलिए यह बहिर्यात्रा होते हुए भी इसे धर्म की यात्रा कहा जा सकता है। यहां धर्म की चर्चा भी होती है। हमारे चारित्रात्माएं अपने ढंग से धर्म और स्वाध्याय का कार्य भी करते हैं। यात्रा के द्वारा लोगों को नशामुक्ति की बात भी बताते हैं। कई लोग अनेक प्रकार के नशीले पदार्थों का प्रयोग करते हैं। शराब पीने वाले लोगों के विषय में बताया गया है कि उनका चित्त भ्रांत हो जाता है और वह पापाचार में चला जाता है और वैसे लोग दुर्गति की ओर आगे बढ़ जाते हैं। इसलिए आदमी को मद्यपान से बचने का प्रयास करना चाहिए। शराब पीने से आगे के जीवन में भी दुर्गति हो सकती है और वर्तमान जीवन में दुर्गति हो सकती है। नशे में धुत होकर कहीं गिर जाए, लोग उसका धन लूट लेते हैं आदि-आदि रूप में दुर्गति होती है। मुम्बई चतुर्मास के दौरान ड्रग्स आदि के संदर्भ में कार्यक्रम हुआ था। वर्तमान में आधुनिक यंत्र मोबाइल आदि-आदि उनका भी लोगों को मानों ऐसी आदत सी लग जा रही है। बच्चों में भी मोबाइल का अत्यधिक प्रभाव देखा जा रहा है। मोबाइल एक सीमा तक उपयोगी है तो उससे अधिक की स्थिति में सजा भी बन सकती है। मोबाइल फोन इन वर्षों में इतना तेजी से फैला है कि बच्चों के हाथ-हाथ में पहुंच गया है। इसकी कोई उपयोगिता भी है कि दूर बैठे बात हो सकती है, देखा भी जा सकता है, कुछ सुना भी जा सकता है। कोई चीज देखनी हो, समझनी हो तो तुरन्त जाना जा सकता है। आधुनिक यंत्रों का उजला पक्ष भी है तो उसका अंधेरा पक्ष भी है। डिजिटल डिटॉक्स के रूप में इनके अत्यधिक प्रयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से नशामुक्ति की बात चली। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के समय भी चली थी और वर्तमान में हमारे त्रिसूत्रीय कार्यक्रम में तीसरा सूत्र नशामुक्ति का है। इसके संदर्भ में प्रतिज्ञाएं दिलाई जाती हैं। आदमी उचित दिशा में पुरुषार्थ करे तो इन बुराईयों से बच सकता है।
आचार्यश्री ने विद्यालय परिवार को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। श्री नारायण ग्लोबल स्कूल के ट्रस्टी श्री अश्विनभाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-बड़ोदरा ने गीत का संगान किया।