मुंबई। महाराष्ट्र के सहकारिता आंदोलन और मुंबई स्थित बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) ने भारत की आर्थिक प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सहकारिता ने जहाँ राज्य के ग्रामीण इलाकों में आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया, वहीं बीएसई ने देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मानचित्र पर एक पहचान दिलाई। ये दोनों संस्थाएँ साझेदारी, भागीदारी, और आपसी सहयोग की महत्ता को दर्शाती हैं, जो आज के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक हैं।
महाराष्ट्र का सहकारी आंदोलन, विशेषकर चीनी कारखानों, दुग्ध उत्पादन और ग्रामीण बैंकिंग क्षेत्रों में सफलता के आदर्श स्थापित कर चुका है। इस आंदोलन का सिद्धांत यह हैं कि सामूहिक भागीदारी व्यक्तिगत लाभ से अधिक सशक्त होती है। इसी प्रकार, बीएसई में भी निवेशकों को साथ लाने का एक मंच प्रदान किया गया हैं, जहाँ हर शेयरधारक कंपनी के लाभ और हानि का समान भागीदार बनता है। इस प्रकार की साझेदारी का ही रूप महाराष्ट्र के सहकारी समाजों में देखने को मिलता है, जहाँ किसान, मजदूर और छोटे व्यापारी अपनी पूंजी और मेहनत को मिलाकर एक सशक्त इकाई बनाते हैं।
इस वर्ष भारत में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। 26 से 30 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली के भारत मंडपम में होने वाले इस सम्मेलन में सहकारी नेताओं का वैश्विक मंच पर एकत्र होना, सहकारिता में उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व की आवश्यकता को रेखांकित करेगा। इस सम्मेलन का मुख्य विषय, “उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व का पोषण – व्यक्ति और संस्थाएँ,” सहकारी संगठनों के नेतृत्व में पारस्परिक विकास और सामूहिक सशक्तिकरण पर केंद्रित रहेगा।
यह आयोजन महाराष्ट्र के सहकारी आंदोलन और बीएसई जैसे प्लेटफार्मों के सिद्धांतों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने में सहायक होगा। साझेदारी और भागीदारी के सिद्धांतों पर आधारित यह आंदोलन भारत को आत्मनिर्भरता और समृद्धि की ओर ले जाने में एक सशक्त भूमिका निभा सकता है, जो आने वाले समय में वैश्विक आर्थिक विकास का आधार बनेगा।
सहकारिता और साझेदारी: अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन से देश आत्मनिर्भरता की ओरः भरतकुमार सोलंकी, वित्त विशेषज्ञ
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