- मानव को संस्कारित करने में गीतों की भूमिका महत्वपूर्ण
मुंबई। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई के बैनर तले “मनुष्य जीवन के सुख-दु:ख में साथ निभाते श्रेष्ठ साथी ‘गीत’ ” के अनूठे विषय पर अकोला में आयोजित संगोष्ठी विभिन्न अतिथिगणों की रोचक वैचारिक अभिव्यक्तियों और विभिन्न कलाकारों की प्रभावशाली प्रस्तुतियों की बदौलत सभी के लिए यादगार बन गई।
रविवार, 29 सितम्बर, 2024 को अकोला के तोषनीवाल विज्ञान महाविद्यालय के सभागार में आयोजित इस संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए विभिन्न अतिथियों ने कहा कि मानव को संस्कारित करने में गीतों की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है। विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि ऐसा नहीं है कि समाज के विविध क्षेत्रों में हज़ारों व्यक्तियों से घिरे रहने वाले जीवन में लोग कभी कहीं अकेले पड़ते ही नहीं। केवल वही लोग, जो अपने जीवन में काव्य, गीत और संगीत को अपना सच्चा साथी बनाते हैं, उन्हें कभी कहीं कोई अकेला नहीं कर सकता। फिर चाहे वे बीहड़ों में रहें या कारागार में रहें। घर के कामों को समर्पित गृहिणी हो अथवा समुद्र में घर से सैकडों कोस दूर जाता नाविक। चाहे माॅं की गोद में सोया शिशु हो या भारत माता के लिए काला पानी काटता स्वतंत्रता सेनानी, सभी का साथ गीतों और संगीत ने बखूबी निभाया है। महाराष्ट्र राज्य गीत से प्रारम्भ हुई इस संगोष्ठी में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य श्याम प. शर्मा ने प्रस्तावना रखी। संगोष्ठी का उद्घाटन बुलडाणा जिले के हिन्दी साहित्य कला मंच के अध्यक्ष मदन राठी ने किया। स्वागताध्यक्ष एडवोकेट मोतीसिंह मोहता का स्वागत महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के वरिष्ठ सदस्य डाॅ. प्रमोद शुक्ल ने किया। इसी दिन सुविख्यात कवि और अकोला के सीताबाई कला महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य रामकृष्ण श्रीवास्तव की पुण्य तिथि पर संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि डाॅ. रामप्रकाश वर्मा ने उनकी स्मृति में उनकी व्यंग्य रचना और एक गीत प्रस्तुत किया। काव्य और गीतों को समर्पित इस संगोष्ठी में जोधपुर की माटी में पली- बढी डाॅ. कुमुदिनी बर्डे ने राजस्थानी लोकगीत प्रस्तुत किया।
उन्होंने प्रा. नाना भडके के साथ संयुक्त प्रस्तुति का बेहतरीन प्रयोग सिध्द किया। संगोष्ठी में डाॅ. शैलेंद्र दुबे, डाॅ.अशोक राठी, कृष्णकुमार शर्मा और सुश्री शारदा बियाणी द्वारा हिंदी के विख्यात कवियों की कविताओं एवं गीत-संगीत के सहारे सुरीली प्रस्तुतियॉं पेश की गईं। संगोष्ठी के दौरान विजय कौशल, अध्यक्ष, विदर्भ साहित्य संघ, नवल अग्रवाल, मोहिनी मोडक, निशाली पंचगाम, दिनेश शुक्ल, प्रा. जायसवाल, सगणे निंबालकर एवं डाॅ. प्रिया केसवानी, लालाजी शर्मा, कमल वर्मा, विजय जानी, डाॅ. राजीव बियाणी डाॅ. हेडाजी, एडवोकेट सत्यनारायण जोशी, प्रा. केसवानी, अनुराग मिश्र, विजय चौधरी, नीमाजी झुंझुनवाल, निशा पांडे, सौ.दर्शन लहरिया, प्रा. सारिका अग्रवाल, महेश पांडे, अखिलेश शुक्ल, चारुदत्त शेळके और सुरेश खंडेलवाल सहित विभिन्न साहित्य प्रेमियों से सभागृह खचाखच भरा रहा। आभार प्रदर्शन प्रा. नाना भडके ने किया। अंत में राष्ट्र गीत के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।