- बोल बड़े अनमोल- साध्वी श्री पीयूष प्रभाजी
पालघर। आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री डॉ. पीयूष प्रभाजी ठाणा 4 के सान्निध्य में तेरापंथ भवन में पर्युषण पर्व का चौथा दिन वाणी संयम दिवस के रूप में मनाया। वाणी संयम दिवस पर संबोधित करते हुए साध्वी श्री पीयूष प्रभा जी ने मंगल उद्बोधन में कहा आत्मसाधना साधक का चरम लक्ष्य है। उसके करणीय प्रयोग में एक महत्वपूर्ण प्रयोग है वाणी का संयम। अनावश्यक नहीं बोलना ही वाणी का संयम है। जिसको हम मौन भी कहते हैं। मौन भीतर मे प्रवेश करने का प्रथम द्वार है। मौन से आत्मा की आवाज सुनाई देती है। मौन से विचारों का अल्पीकरण होता है। मौन प्रकृति के निकट पहुचाता है। मौन कि साधना से अनावश्यक व्यक्ति विवाद व कलह से बच जाता है।
साध्वी श्री भावना श्री जी ने अपने उद्बोधन में कहा मन से व्यक्ती सोचता है। वचन से बोलता है। काया से चेष्टा करता है। भाषा सत्य संयम व प्रियकर होनी चाहिए। वाणी की सभ्यता जीवन की भव्यता है।
साध्वी श्री दीप्तियशा जी ने अपने उद्धबोधन में कहा जिव्हा संभली तो जीवन संभला जिव्हा बिगड़ी जीवन बिगड़ा। प्रत्येक व्यक्ति को बोलने से पहले तोलना चाहिए। वाणी हितकारी, मितकारी व समय के अनुकूल होनी चाहिए। वाणी के असंयम से महाभारत हो जाता है। वाणी के संयम से घर परिवार स्वर्ग बन सकता है। साध्वी श्री सुधाकुमारी जी ने वाणी संयम दिवस पर सुंदर गीत का संगान किया। मंगलाचरण सभा सदस्यों द्वारा किया गया।
समाचार प्रदाता मीडिया प्रभारी योगेश राठौड़।