- आगमवाणी में वर्णित चार शिक्षाओं को आचार्यश्री ने किया वर्णित
- मुमुक्षु ऋजुल को साध्वी दीक्षा प्रदान करने की आचार्यश्री ने की घोषणा
- पुणे की जनता की ओर से आज भी आचार्यश्री के स्वागत में हुई अनेक प्रस्तुतियां
31.03.2024, रविवार, पुणे (महाराष्ट्र) । तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में पुणे शहर में विराजमान हैं। आचार्यश्री के मंगल पदार्पण से पुणे शहर का वातावरण आध्यात्ममय बना हुआ है। पुणे की जनता पूरे दिन आचार्यश्री के दर्शन सेवा का लाभ तो उठाती ही है, साथ ही साथ आचार्यश्री की प्रतिदिन होने वाली मंगल प्रवचन के माध्यम से जीवन के गूढ़ सूत्रों को ग्रहण कर अपने जीवन को आलोकित कर रही है।
रविवार को सिमंधर समवसरण में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने पावन प्रवचन में कहा कि आगमवाणी के एक श्लोक में चार शिक्षाएं दी गई हैं- पहली बात बताई गई कि बिना पूछे मत बोलो। जीवन में वाणी एक ऐसा साधन है, जिसके द्वारा प्राणी अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। विचार और भाव वाणी रूपी रथ पर आरूढ़ होकर बाहर जाते हैं। विचारों को फैलाने का माध्यम भाषा, वाणी होती है। भाषा पशुओं के पास भी होती है। मनुष्यों के पास जो भाषा है, वह व्यापक और विकसित है। दुनिया में अनेक भाषाएं चलती हैं। देश-विदेश में कितनी-कितनी भाषाएं हैं। मेरा मानना है कि यदि दुनिया में एक ही भाषा होती, एक ही भाषा में सारे शास्त्र, साहित्य आदि होते तो कितनी सुविधा होती। एक विद्यार्थी को कितनी-कितनी भाषाएं सीखनी पड़ती है। उसमें कितना समय लगाता है। मूल चीज तो विषय होता है, भाषा तो माध्यम बनती है, विषय को जानने के लिए। आदमी का साध्य विषय है। एक ही भाषा होती तो कितना समय बच जाता। पूरे विश्व में एक ही भाषा होती तो अनुवाद की आवश्यकता ही नहीं होती। वह भाषा ज्यादा उपयोगी होती है, जो आदमी के उपयोग में आती है। आदमी लेखन के रूप में तथा बातचीत और भाषण आदि के रूप में भाषा का प्रयोग करता है। मनुष्य जगत में अनेक भाषाएं विकसित हैं।
भाषा की शक्ति का मिलना भी विशेष बात होती है। कितने बच्चे अथावा बड़े ऐसे भी होते हैं, जो न सुन पाते हैं और न ही स्पष्ट बोल पाते हैं। भाषा की शक्ति का होना भी अपने आप में एक विशेष बात होती है। भाषा का प्रयोग कैसे, कब और किस रूप में करें, इसका विवेक भी होना चाहिए। इस संदर्भ में शास्त्रकार ने बताया कि आदमी को बिना पूछे नहीं बोलना चाहिए। बोलना भी बड़ी बात नहीं, मौन करना भी बड़ी बात नहीं, कहां बोलना और कहां नहीं बोलने का विवेक होना बड़ी बात होती है। बोलने और नहीं बोलने का विवेक होना बड़ी बात होती है।
आदमी जो भी बोले, वह सच बोले और झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु को तो झूठ बोलने का त्याग होता है। आदमी भी सामान्य रूप से झूठ न बोले। न्यायालय आदि में भी झूठी गवाही न दी जाए। किसी को फंसाने के लिए झूठा आरोप लगाने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने गुस्से को विफल करने का प्रयास करना चाहिए। चौथी बात बताई गई कि प्रिय और अप्रिय स्थितियों में समत्व भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी वाणी को सारभूत बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने मुमुक्षु ऋजुल की प्रार्थना को स्वीकार कर भाद्रव शुक्ला नवमी (12 सितम्बर 2024) को साध्वी दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। साथ ही आचार्यश्री ने मुमुक्षु को साध्वी प्रतिक्रमण सीखने की अनुज्ञा भी प्रदान की। ऐसी घोषणा को सुनकर पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। साध्वी मंगलप्रज्ञाजी ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद ने गीत का संगान किया। पूना ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल ने पुराने तत्त्वज्ञान के गीत का संगान किया। श्री तनसुख बैद ने अपनी कृति पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित की।