– शांतिदूत आचार्यश्री ने सेवा के महत्त्व को किया व्याख्यायित
-दीक्षा से पूर्व श्री धनराज बैद ने स्वलिखित पुस्तकों को श्रीचरणों में किया लोकार्पित
-अणुव्रत समिति द्वारा जीवन विज्ञान पुरस्कार का किया गया आयोजन
20.11.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। सोमवार को नन्दनवन परिसर में बने तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगाम के आधार पर पावन सम्बोध प्रदान करते हुए कहा कि आभ्यान्तर तप के छह प्रकारों में से एक है वैय्यावृत्त अर्थात् सेवा। सेवा को ग्रन्थों में परम धर्म बताया गया है जो योगियों के लिए अगम्य होता है। सेवा चाहे साधु समुदाय में हो, परिवार में हो, समाज में हो, राष्ट्र में हो, विश्व में हो अथवा प्राणी जगत के लिए हो, सेवा रूपी धर्म परम गहन है। मानव जीवन में सेवा का परम महत्त्व बताया गया है।
सेवा धर्म के भी दस प्रकार बताए गए हैं। सबसे पहले आचार्यों की सेवा का विधान आता है। कई बार आचार्य सेवा के योग्य न भी हों, फिर भी उन्हें व्यवस्था की दृष्टि से संघ का प्रमुख होने के नाते सेवा का विधान है। आचार्य स्वयं गोचरी न करें, उनके लिए साधु-साध्वियां गोचरी-पानी करें, उनकी व्यवस्था ठीक रहे। इसी प्रकार उपाध्याय जो ज्ञान देने वाली होते हैं, उनकी भी सेवा बताई गई है। वृद्ध की सेवा, तपस्वी की सेवा, रोगी की सेवा, शैक्ष की सेवा भी साधु समुदाय में बताई गई है।
22 नवम्बर को दीक्षा ग्रहण करने तो तत्पर वयोवृद्ध मुमुक्षु श्री धनराज बैद ने स्वलिखित पुस्तक ‘द डिवाइन विस्परर्स के दो भाग व अध्याय अध्यात्म के भाग-1 को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। अणुव्रत समिति की ओर से चेन्नई के श्री राकेश खटेड़ को जीवन विज्ञान पुरस्कार प्रदान किया। पुरस्कार के प्रशस्ति पत्र का वाचन श्रीमती माला कातरेला ने किया। पुरस्कार प्राप्तकर्ता ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। मुनि योगेशकुमारजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।