मुंबई। अणुव्रत एक सेतु है जो सभी वर्ग जाती संप्रदाय को जोड़ता है। अणुव्रत जीने की कला है वह कला जो जीवन को सुव्यवस्थित के साथ साथ स्वर्णिम भी बना देता है। गुरुदेव श्री तुलसी ने देश में भ्रष्टाचार ,अनैतिकता के बढ़ते प्रवाह को रोकने के लिए अणुव्रत का शंखनाद किया। आचार्य श्री तुलसी ने स्वयं पूर्व से पश्चिम , उत्तर से दक्षिण तक की पद यात्रा कर देश के कोने कोने मे अणुव्रत की चेतना का जागरण किया। अनुव्रत प्रदर्शन का नहीं आत्मदर्शन का मार्ग है।आचार्य श्री तुलसी मानवता के मसीहा थे। उनका जीवन मानवता के लिए समर्पित था। अणुव्रत की परिभाषा है- अहिंसा, साधन- शुद्धि। अणुव्रत का प्रबल और पवित्र संकल्प है -मानवता को पुनः जीवंत बनाना तथा नैतिक मूल्यों का जागरण। अणुव्रत का लक्ष्य है सद्भाव की वृद्धि।
कार्तिक शुक्ला दूज के पावन दिन उनका जन्म हुआ और मानवता के मसीहा के जन्म दिवस को हम अणुव्रत दिवस के रूप में मना कर मानो मानवता का वर्धापन कर रहे है। हम अणुव्रत की साधना से जीवन में नैतिक मूल्यों की जागरणा का प्रयास करे। स्वयं को भावित करते हुए जीवन में इन्द्र धनुषी भर उसे सुनहरा बनाए।
मुनि भरत कुमार जी ने कहा- अणुव्रत राष्ट्रा के शांति अमन की सौगात है। अणुव्रत जन- जन में शांति की मिसाल कायम रखती है। अणुव्रत भव्य कला होता है सबका भला।
बाल संत जयदीप कुमार ने कहा है- अनुव्रत GPS की तरह होता है जीवन की सही दिशा का मार्गदर्शन करता है।
अणुव्रत समिति ने सुमधुर कंठों से सम्मान किया।
दिल्ली से कुलदीप जी अमन जी हेमलता बुच्चा ने गुरुदेव तुलसी के प्रति आस्था से अपनी भव्याभिव्यक्ति दी। महावीर पाटनी ने कहा- आज हम जैन धर्म का जो भव्य स्वरूप देख रहे है वह सिर्फ आचार्य तुलसी की ही देन है। सुरेश दरक ने कहा – भारतीय संस्कृति को सही तटयों मे उजागर करने वाला कोई तत्व है तो सिर्फ अणुव्रत है।
विकास जी साहूजी ने कहा- अणुव्रत यदि जन-जन के जीवन में उतर जाये तो देश में शांति को विश्व की कोई ताकत प्रभावित नहीं कर सकती।
मनीषा भंसाली ने कहा- आचार्य श्री तुलसी देश के ही नहीं विश्व की तकदीर थे। रूपाजी धोखा ने कुशल संचालन किया। आभार व्यक्त कविता मरलेचा ने किया। मुनिश्री के मंगल पाठ द्वारा कार्यक्रम का समापन हुआ।
“अणुव्रत- दिवस” अणुव्रत प्रदर्शन का नहीं आत्मदर्शन का मार्ग- मुनि श्री अर्हत कुमार जी
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