– आचार्यश्री ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा को बढ़ाया आगे
– पर्युषण महापर्व का चौथा दिन वाणी संयम दिवस के रूप में हुआ समायोजित
– साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी के उद्बोधन व गीत आदि से भी जनता हो रही लाभान्वित
15.09.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में वर्ष 2023 का पंचमासिक चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पर्युषण महापर्व आध्यात्मिक रूप में समायोजित हो रहा है। अष्टदिवसीय इस महापर्व में चतुर्विध धर्मसंघ धर्म, ध्यान, साधना, स्वाध्याय, जप व तप की विशेष आराधना में जुटा हुआ नजर आ रहा है। सूर्योदय से पूर्व ही श्रद्धालु जनता अर्हत् स्तुति, वंदना, उपासना के बाद प्रेक्षाध्यान साधना में संलग्न होती है। तदुपरान्त चारित्रात्माओं द्वारा 25 बोल पर आधारित तात्त्विक विश्लेषण किया जाता है। इसके बाद आगम स्वाध्याय फिर आचार्यश्री की मंगलवाणी के श्रवण के साथ-साथ साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी द्वारा वर्णन, गीत आदि के साथ-साथ अन्य चारित्रात्माओं के भी व गीत का संगान होता है। दोपहर में जप, आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आगम वाचन, अनुप्रेक्षा, आध्यात्मिक संबोध के बाद सायं में गुरु वन्दना, प्रतिक्रमण, अर्हत् वंदना और फिर रात्रि व्याख्यान से जुड़कर जनता पूरे दिन धर्म-आराधना में रत बनी हुई है।
पर्युषण महापर्व का चौथा दिन वाणी संयम दिवस के रूप में समायोजित हुआ। प्रातः नौ बजे तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी तीर्थंकर समवसरण के मंच पर विराजे। मुनि ध्रुवकुमारजी ने भगवान शांतिनाथ का जीवनवृत्त प्रस्तुत किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने सत्य धर्म पर आधारित गीत का का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने सत्य धर्म की व्याख्या की। साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने वाणी संयम दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने वाणी संयम दिवस के संदर्भ में उपस्थित जनता को प्रतिबोध प्रदान किया।
महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण महापर्व के अंतर्गत ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ को आगे बढ़ाते कहा कि परम आराध्य भगवान महावीर की आत्मा तीसरे भव में मरीचिकुमार के रूप में पहुंची। भगवान ऋषभ की प्रेरणा मिली और मरिचीकुमार ने साधु दीक्षा स्वीकार कर ली। मानव जीवन में साधुपन का प्राप्त होना भी सौभाग्य की बात होती है। दीक्षा के बाद मरीचिकुमार ने ग्यारह अंगों का अध्ययन आरम्भ किया। आचार्यश्री ने इस माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु को आगम के स्वाध्याय का तो विशेष प्रयास करना चाहिए। चारित्रात्माओं को आगम जितना कंठस्थ हो, मुखस्थ हो, बहुत अच्छी बात हो सकती है। दसवेआलियं के साथ-साथ अन्य आगमों को भी पढ़ने और उन्हें यथासंभव याद करने का प्रयास होना चाहिए। कंठस्थ न भी हो तो भी आगमों को पढ़ने का प्रयास करना चाहिए। स्वाध्याय से ज्ञान और निर्जरा दोनों का लाभ प्राप्त हो सकता है। सुबह-सुबह आगम का जितना स्वाध्याय हो जाए, वह अच्छा होता है। सुबह अन्य पुस्तक, अखबार आदि में समय लगाने के बजाय आगमों के अध्ययन में लगे।
मरीचिकुमार को धूप, गर्मी आदि के कारण प्यास बरदास्त नहीं होती और वह जैन साधुचर्या को छोड़कर एक अलग रूप में त्रिदण्ड, छत्र आदि धारण कर लेता है।
आचार्यश्री ने वाणी संयम दिवस के अवसर पर उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि वाणी का संयम करना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। कितने-कितने लोग घंटे, दो-चार घंटे या उससे ज्यादा समय तक भी मौन की साधना कर लेते हैं। उसका अपना महत्त्व भी हो सकता है। बोलना अथवा न बोलना बड़ी बात नहीं होती, बोलने और न बोलने का विवेक होना बड़ी बात होती है। आदमी को बोलने अथवा न बोलने का विवेक होना चाहिए। बोलने से पहले आदमी को तोलने का प्रयास करना चाहिए।