- भगवती सूत्र के द्वारा माया, छल, वंचना से बचने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
- कलहमुक्त और संस्कारयुक्त परिवार बनाएं बेटियां : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
20.08.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करने वाले, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि यह दुनिया आकाश में स्थित है। जैन दर्शन के अनुसार आकाश का कोई ओर-छोर नहीं है, वह अनंत है। आकाश को दो भागों में बांटा जाता है- लोकाकाश और अलोकाकाश। इस अनंत अलोकाकाश में लोकाकाश एक छोटे-से टापू के रूप में स्थित है। अलोकाकाश में कोई पुद्गल आदि नहीं होता। लोकाकाश के चारो ओर अलोकाकाश है। लोकाकाश में स्वर्ग, नरक, पृथ्वी ही नहीं सिद्ध क्षेत्र में जाने वाली आत्माएं भी इसी लोकाकाश में हैं।
जीवों को धर्मास्तिकाय के कारण गति मिलती है और ठहराव की स्थिति अधर्मास्तिकाय के सहायता से प्राप्त होती है। आकाश ठहरने के लिए स्थान देता है। काल का कार्य बीतना होता है। कोई भी कार्य करने के लिए काल अर्थात समय की आवश्यकता होती है। जो आंखों से दिखाई दे रहा, वे सभी पुद्गल हैं। परमाणु रूप में भी पुद्गल होते हैं, जिन्हें सामान्य आंखों से नहीं देखा जा सकता। जहां छहों द्रव्य हों, वह लोक होता है। जीव और पुद्गल का सम्बन्ध होता है। वे एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। भगवती सूत्र में माया, छलना, वंचना के संदर्भ में बताया गया है कि माया पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और चार स्पर्श वाली होती है। माया में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होता है।
कोई आदमी अपने जीवन में माया-धोखाधड़ी करता है तो पापचार में प्रवृत्त हो जाता है। माया आत्मा को पाप कर्मों का बंध कराने वाली होती है। वर्तमान में संसारी आत्मा कर्मों से बंधी हुई होती है। आदमी माया का व्यवहार करता है। आदमी इसी माया के कारण व्यापार, व्यवहार, समाज आदि में धोखाधड़ी करता है। दूसरों को ठगता है तो कभी टैक्स की चोरी आदि का भी प्रयास कर लेता है। कहीं झूठ बोलकर किसी को फंसा देना, झूठ बोलकर किसी का धन हड़प लेना, यह सबकुछ मायाचार होता है। झूठ, चोरी, छल, कपट और धोखाधड़ी से कमाया हुआ पैसा अशुद्ध होता है तथा न्याय नीति और श्रम से कमाया हुआ धन शुद्ध होता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में मायाचार से बचने और जीवन में सरलता, ऋजुता, सच्चाई, ईमानदारी और प्रमाणिकता जैसे सद्गुणों का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
गृहस्थ जीवन में पैसे की आवश्यकता हो तो न्याय और नीति के साथ शुद्ध धन को अर्जित किया जा सकता है। गृहस्थ आदमी भी माया को छोड़कर शुद्ध और सरलतायुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। व्यापार एक तरह से जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होता है तो दूसरी ओर व्यापारी जनता से प्राप्त धन से अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। गृहस्थ जीवन में माया-धोखाधड़ी न आए, ऐसा प्रयास करना चाहिए। टैक्स आदि की चोरी भी माया रूपी पाप का भागीदार बनाती है। आदमी को अपने जीवन में प्रमाणिकता रखने का प्रयास करना चाहिए और अपनी आत्मा को पापों से बचाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनमेदिनी को उद्बोधित किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय ‘बेटी तेरापंथ की’ के प्रथम सम्मेलन की कच्छ-भुज से संभागी बेटियों व मध्यप्रदेश से समागत बेटियों ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री से बेटियों को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में द्विदिवसीय अच्छा कार्यक्रम चला। बेटियां जहां भी रहें अपने जीवन में अहिंसा, संयम और तप के प्रभाव को बनाए रखें। जहां तक संभव हो, दूसरों को भी धार्मिक-आध्यात्मिक सहयोग दें। अपने परिवार को कलहमुक्त और संस्कार से युक्त बनाने का प्रयास करें। कार्यक्रम में श्रीमती प्रीति कोठारी ने स्वलिखित पुस्तक ‘मां, पिता व गुरु’ को पूज्यचरणों में लोकार्पित करते हुए अपनी भावनाओं को व्यक्त किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। श्री सुरेश तातेड़ ने 51 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।