भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई को आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न बनाने के लिए अपनी धवल सेना के साथ मुम्बई में चतुर्मास प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रतिदिन आगमवाणी के माध्यम से अध्यात्मक की गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। सागर तट पर प्रवाहित होने वाली यह निर्मल ज्ञानगंगा जन-जन के मानस के संताप का हरण करने वाली है। इस ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने के लिए मुम्बईवासी ही नहीं, देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तपस्याओं की अनुपम भेंट भी श्रद्धालुओं ने इस प्रकार चढ़ाई हैं, जिसने तेरापंथ धर्मसंघ में एक नवीन कीर्तिमान का सृजन कर दिया है। इसके अतिरिक्त अनेकों प्रकार की तपस्याओं में रत श्रद्धालु अपने आराध्य से नियमित रूप से तपस्याओं का प्रत्याख्यान कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं।
युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से ज्ञानगंगा को प्रवाहित करते हुए कहा कि भगवान महावीर की मंगल देशना के बाद श्रमणोपासिका जयंती उनके पास पहुंचती है और प्रश्न करती है कि जीवों की आत्मा किन कर्मों से भारी बनती है? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए 18 चीजों को वर्णित किया, जिसके कारण जीव की आत्मा कर्मों का बंध कर भारी हो जाती है और अधोगामी बन जाती है। 18 चीजें अर्थात् अठारह पापों के कारण जीव की आत्मा गुरुता को प्राप्त करती है और पापकर्मों से भारी बनी आत्मा अधोगति की ओर जाती है। पापों से भारी आत्मा अधोगति और हल्की आत्मा ऊर्ध्वारोहण करती है। इसलिए आदमी को इन पापों से विमरण करते हुए अपनी आत्मा को हल्का बनाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा जितनी हल्की होगी, उतनी अच्छी सुगति की प्राप्ति हो सकती है। साधु तो सर्व सावद्य योगों का त्याग करने वाले होेते हैं, किन्तु श्रमणोपासक और श्रमणोपासिका बारहव्रत, संयम, नियम आदि का स्वीकरण के द्वारा भी अपनी आत्मा को पापों के भार से बचाने का प्रयास कर सकते हैं। गृहस्थावस्था में पूर्ण विरमण भले न हो पाए, किन्तु आत्मा जितनी हल्की होगी, उतनी ही अच्छी बात हो सकती है। कई बार त्याग-तपस्या, नियम, व्रत व संयम के द्वारा श्रमणोपासक भी एक ही जन्म के बाद मोक्षश्री का भी वरण कर सकता है। इस प्रकार भगवान महावीर ने संयमयुक्त जीवन जीने और अपनी आत्मा को पापों से बचाने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाते हुए परम पूज्य कालूगणी के भीलवाड़ा से कष्टप्रद स्थिति में विहार करते हुए गंगापुर में चतुर्मास में पधारने और वहां सेवा में रत रहने वाले संतों को न्यारा में भेजने के प्रसंगों का सरसशैली में वर्णन किया। अपने सुगुरु की वाणी से अपने पूर्वाचार्य के इतिहास का श्रवण कर श्रद्धालुजन मंत्रमुग्ध नजर आ रहे थे। अनेक तपस्वियों को आचार्यश्री ने उनकी धारणा के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान कराया।
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