- खमतखामणा कर वैर की भावनाओं को दूर करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
- आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित कालूयशोविलास का वाचन क्रम भी बढ़ा आगे
11.08.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। भारत के महाराष्ट्र राज्य की राजधानी, भारत की आर्थिक राजधानी, पश्चिमी देशों के लिए भारत का प्रवेश द्वारा के नाम से विख्यात मुम्बई नगरी वर्तमान समय में अध्यात्म की नगरी से भी मानों प्रसिद्धि को प्राप्त कर रही है। हो भी क्यों न, जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, सम्पूर्ण विश्व को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करने वाले, जन-जन में अहिंसा की चेतना को जागृत करने वाले शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2023 का चतुर्मास मुम्बई की धरा पर कर रहे हैं। इस चतुर्मास से मुम्बईवासी ही नहीं, देश व विदेश से आने वाले श्रद्धालु भी लाभान्वित हो रहे हैं। यातायात की सुविधा के कारण श्रद्धालु की अच्छी उपस्थिति हो रही है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में नित नवीन कार्यक्रमों की समायोजना भी हो रही है तो अनेक कीर्तिमान भी स्थापित हो रहे हैं।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी को मुम्बईवासियों की ओर से तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में पहली बार इक्कीसरंगी तपस्या की भेंट समर्पित की गई तो पहली बार पूज्य सन्निधि में विदेशी धरती के 200 से अधिक श्रद्धालु भी अपने आराध्य की अभिवंदना को उपस्थित हुए।
ऐसे कीर्तिधर, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा के पालन के लिए हिंसा को जानना भी आवश्यक होता है। भगवती सूत्र में वैर भाव से की गई हिंसा से नो पुरुषों के वैर से भी स्पृष्ट हो जाता है। वैर का अर्थ किसी से दुश्मनी के भाव रखना और इस कारण किसी का वध भी आदमी कर देता है। हिंसा के कार्य और वैर की भावना का भी अनुबंध होता है। यह वैर की परंपरा इस अनुबंध के कारण आगे के अनेक जन्मों तक भी चल सकती है। किसी को मारने के बाद उससे जुड़े हुए लोग भी वैर की भावना से कभी न कभी उसको मारने का प्रयास करेंगे और फिर उसकी अगली पीढ़ी भी ऐसा भाव रख सकती है। इतना ही नहीं, वैर भाव का अनुबंध मानों आगे के कई जन्मों तक भी चल सकता है।
वैर की भांति ही प्रेम, स्नेह व मित्रता का अनुबंध भी होता है। प्रेम, स्नेह, मित्रता का अनुबंध आदमी के साथ कई जन्मों तक चल सकता है। इस प्रकार वैर हो या प्रेम जन्म-जन्मांतर तक चल सकता है। किसी को देख कर बहुत प्रसन्नता होती है तो किसी को देखकर प्रसन्नता नहीं होती। भगवती सूत्र में हिंसा-वैर के अनुबंध को व्याख्यायित करते हुए बताया गया कि आदमी को वैर-विरोध और द्वेष और हिंसा की भावना को छोड़कर उससे खमतखामणा कर लेने का प्रयास करना चाहिए। वर्ष में एक बार तो खमतखामणा कर वैर-विरोध के भावों को एक बार के लिए तो समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। एक-दूसरे से खमतखामणा कर लेने से चेतना की निर्मलता हो सकती है। आदमी को किसी से वैर-विरोध नहीं, बल्कि क्षमा देकर और क्षमा प्राप्त किया जा सकता है। इतना ही नहीं, राजनैतिक पार्टियां भी आपसी मतभेद को भुलाकर आपस में खमतखामणा कर आपसी वैर भाव को मिटा लेने का प्रयास करना चाहिए। वैर भाव को समाप्त कर आदमी अपनी आत्मा को हल्का बना सकता है तथ अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित ‘कालूयशोविलास’ के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। साध्वी काव्यलताजी ने आचार्यश्री ने अठाई की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। प्रज्ञाचक्षु श्री शांतिलाल चोरड़िया ने गीत का संगान किया। श्री तनसुलाल बैद ने पूज्यप्रवर के समक्ष स्वरचित ‘आचार्यांजलि’ पुस्तक को लोकार्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। श्रीमती अरुणा मादरेचा ने 31 व श्री प्रकाश परमार ने 41 की तपस्या पूज्य सन्निधि में सम्पन्न की।