- आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के आधार पर श्रद्धालुओं को किया उद्बोधित
- कालूयशोविलास आख्यानमाला के श्रवण से जनता हुई लाभान्वित
07.08.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। मुम्बई की मानसूनी वर्षा में भले अब कमी आ गई हो, किन्तु अध्यात्म जगत के महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की कल्याणवाणी की वर्षा निरंतर जारी है। इस ज्ञान वर्षा से अभिस्नात होकर श्रद्धालु अपने जीवन को अध्यात्म से भावित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जैन आगमों के आधार पर नन्दनवन परिसर में बरसने वाली कल्याणी वाणी के श्रवण को श्रद्धालु खीचे चले आ रहे हैं।
सोमवार को नन्दनवन में बने भव्य तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन दर्शन में छह द्रव्य बताए गए हैं- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय। इनमें एक है पुद्गलास्तिकाय। माइक, प्रमार्जनी आदि पुद्गल हैं। अर्थात् जो मूर्त और अजीव हैं, वे पुद्गल होते हैं। भगवती सूत्र में जीव को भी पुद्गल बताया गया है। 32 आगमों में एकमात्र भगवती सूत्र ऐसा है, जिसमें जीव को भी पुद्गल बताया गया है। सामान्य भाषा में जीव अमूर्त और पुद्गल मूर्त होते हैं। भगवती सूत्र में जीव को पुद्गल और पुद्गली भी कहा गया है। इन्द्रियों के कारण जीव को पुद्गली कहा गया है। जो संसारी प्राणी हैं, वे पुद्गली होते हैं। सिद्ध आत्माएं भी पुद्गल हैं। पुद्गल और पुद्गली में इन्द्रियों का अंतर होता है।
पांच प्रकार की इन्द्रियों का वर्णन किया गया है- श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय। इन पांच इन्द्रियों में श्रोत्रेन्द्रिय और चक्षुरेन्द्रिय के माध्यम से आदमी कितना ज्ञान प्राप्त कर सकता है। कानों से सुनकर आदमी ज्ञान को प्राप्त करता है। श्रवण की हुई बात को आदमी यदि आंखों से देख ले तो ज्ञान और पुष्ट हो सकता है। आंखों के द्वारा आदमी कितने-कितने आगम आदि का अध्ययन कर ज्ञान प्राप्त कर सकता है। बाकी अन्य इन्द्रियों के माध्यम से भी अनेक प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। इन्द्रियों के माध्यम से विभिन्न विषयों का ज्ञान हो सकता है। इन्द्रियों के आधार पर जीव को पुद्गली कहा जाता है।
वह जीव की परम अवस्था होती है, जब वह इन्द्रियों से मुक्त हो जाता है। सिद्धावस्था में इन्द्रियां नहीं होती हैं। इसलिए मनुष्य को साधना के द्वारा इन्द्रियातीत बनने का प्रयास करना चाहिए। संवर-संयम की साधना करके आदमी कुछ अंशों में इन्द्रियातीत बन सकता है। आदमी पूर्णतया इन्द्रियातीत न बने तो प्रयास यह करे कि इस जीवन के बाद पुद्गली तो न बने।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी द्वारा विरचित आठवें आचार्यश्री कालूगणी के जीवनवृत्त ‘कालूयशोविलास’ की आख्यानमाला को आगे बढ़ाते हुए सरसशैली में वाचन किया। श्री प्रकाश परमार ने 38 व श्रीमती सारिका बड़ाला ने 28 की तपस्या का प्रत्यख्यान किया।