– कीर्तिधर आचार्यश्री महाश्रमण की ‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ म्युजियम का नन्दनवन में शुभारम्भ
– एनआरआई समिट में शामिल श्रद्धालुओं ने गुरुमुख से स्वीकार की गुरुधारणा
– साध्वीप्रमुखाजी व साध्वीवर्याजी ने भी उपस्थित श्रद्धालुओं को किया उद्बोधित
06.08.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की दृढ़ संकल्पशक्ति ने तेरापंथ धर्मसंघ में कितने-कितने कीर्तिमान उद्घाटित किए हैं। इसलिए आचार्यश्री महाश्रमणजी को श्रद्धालुजन कीर्तिधर आचार्य भी कहते हैं। आचार्य बनने के उपरान्त विश्व व्यापक अहिंसा यात्रा के साथ पहले तेरापंथ के आचार्य के रूप में हिमालय की गोद में बसे विदेशी धरती नेपाल की यात्रा हो, हिमालय जैसे सर्वोच्च शिखर वाले पर्वतों की यात्रा, 2015 में काठमाण्डू में आए भयानक भूकंप में भी अकंप रहने का मनोबल हो, भारत के 20 राज्यों की यात्रा के दौरान सुदूर पूर्वोत्तर भाग में स्थित असम, मेघालय, नागालैण्ड का स्पर्श हो, भूटान में प्रथम प्रवेश हो, या दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान हिन्द महासागर के तट बसे कन्याकुमारी का स्पर्श हो या छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में भी पूर्ण निर्भयता की यात्रा के दौरन किए गए मानवता के कार्य दृढ़संकल्पी आचार्यश्री महाश्रमणजी को कीर्तिधर आचार्य बनाते हैं।
वर्तमान समय में आचार्यश्री महाश्रमण दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष चल रहा है। इस संदर्भ में तेरापंथ धर्मसंघ की संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा ने अपने आराध्य की अभिवंदना में नन्दनवन परिसर में रविवार को प्रातः साढ़े सात बजे ‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ नामक भव्य म्युजियम का शुभारम्भ आचार्यश्री के श्रीमुख से मंगलपाठ के श्रवण कर तथा आचार्यश्री के संसारपक्षीय अग्रज श्री सुजानमल दूगड़ के हाथों फीता काटकर किया गया। इस भव्य म्युजियम का आचार्यश्री ने विस्तार से अवलोकन किया।तीर्थंकर समवसरण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्राधारित अपने पावन प्रवचन में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि आराधना कितने प्रकार की होती है? उत्तर देते हुए कहा गया कि आराधना तीन प्रकार की प्रज्ञप्त है-ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना। ये अध्यात्म जगत के मानों तीन रत्न हैं। दुनिया में अनेक प्रकार के रत्न होते हैं, किन्तु दुनिया में तीन रत्न बताए गए हैं- जल, अन्न और सुभाषित। यहां शास्त्रकार ने ज्ञान दर्शन और चारित्र को रत्न बताते हुए कहा कि आदमी के जीवन में यदि सम्यक् ज्ञान की आराधना, आसेवन, अभ्यास और आत्मसात का प्रयास हो तो ज्ञानाराधना अच्छी फलित हो सकती है। तेरापंथ धर्मसंघ में ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों को धार्मिक-आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान का अच्छा कार्य किया जाता है। ज्ञान अथाह है, इसलिए आदमी को अपने जीवन में सारभूत ज्ञान को ग्रहण करते हुए ज्ञानाराधना करने का प्रयास करना चाहिए।
दर्शनाराधना में बताया गया कि आदमी में सच्चाई के प्रति श्रद्धा, निष्ठा रहे। देव, गुरु और धर्म के प्रति आस्था, श्रद्धा का भाव रहे सम्यक् दर्शन अच्छा रह सकता है और दर्शनाराधना पुष्ट बन सकती है। आदमी को अपने जीवन में चारित्र की आराधना को पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। साधुत्व जीवन स्वीकार कर आजीवन चारित्र की आराधना किया जाता है। गृहस्थ भी अपने जीवन में चारित्र की आराधना के सामायिक आदि के माध्यम से प्रयास करते हैं। श्रावक कहीं भी हो, देश में रहे या अथवा विदेश में सामायिक की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ आदमी के जीवन में अहिंसा, संयम और तप हो, भोजन नॉनवेज से मुक्त हो, नशा से दूरी हो, सामायिक, उपवास, व्रत, जप का क्रम चलता रहे तो चारित्राराधना अच्छी हो सकती है। इन तीनों आराधना मानों मोक्ष की दिशा आगे बढ़ने का मार्ग है। ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना के माध्यम से अपने जीवन को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
द्विदिवसीय एनआरआई समिट में भाग लेने वाले अप्रवासी भारतीय श्रद्धालुओं ने गुरुमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) स्वीकार की और अपने आराध्य को सविधि वंदन किया तो आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को पावन पाथेय, प्रेरणा और आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि महासभा द्वारा एनआरआई समिट के रूप में अच्छा कार्य किया जा रहा है। इससे दूर देश में रहने वाले श्रद्धालु भी अपने देव, गुरु धर्म के साथ निकटता से जुड़े रह सकते हैं।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन और पाथेय के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी और साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी समुपस्थित जनता को अभिप्रेरित किया। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने ‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ म्युजियम के संदर्भ में अवगति प्रस्तुत की। लन्दन के अप्रवासी श्रद्धालुओं द्वारा एक पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। इस संदर्भ में भी आचार्यश्री ने उन्हें मंगल संबोध प्रदान किया। इस संदर्भ में हांसूभाई जैन, राजू जैन व श्री जितेन्द्र ढेलड़िया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।
वर्तमान समय में आचार्यश्री महाश्रमण दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष चल रहा है। इस संदर्भ में तेरापंथ धर्मसंघ की संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा ने अपने आराध्य की अभिवंदना में नन्दनवन परिसर में रविवार को प्रातः साढ़े सात बजे ‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ नामक भव्य म्युजियम का शुभारम्भ आचार्यश्री के श्रीमुख से मंगलपाठ के श्रवण कर तथा आचार्यश्री के संसारपक्षीय अग्रज श्री सुजानमल दूगड़ के हाथों फीता काटकर किया गया। इस भव्य म्युजियम का आचार्यश्री ने विस्तार से अवलोकन किया।तीर्थंकर समवसरण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्राधारित अपने पावन प्रवचन में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि आराधना कितने प्रकार की होती है? उत्तर देते हुए कहा गया कि आराधना तीन प्रकार की प्रज्ञप्त है-ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना। ये अध्यात्म जगत के मानों तीन रत्न हैं। दुनिया में अनेक प्रकार के रत्न होते हैं, किन्तु दुनिया में तीन रत्न बताए गए हैं- जल, अन्न और सुभाषित। यहां शास्त्रकार ने ज्ञान दर्शन और चारित्र को रत्न बताते हुए कहा कि आदमी के जीवन में यदि सम्यक् ज्ञान की आराधना, आसेवन, अभ्यास और आत्मसात का प्रयास हो तो ज्ञानाराधना अच्छी फलित हो सकती है। तेरापंथ धर्मसंघ में ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों को धार्मिक-आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान का अच्छा कार्य किया जाता है। ज्ञान अथाह है, इसलिए आदमी को अपने जीवन में सारभूत ज्ञान को ग्रहण करते हुए ज्ञानाराधना करने का प्रयास करना चाहिए।
दर्शनाराधना में बताया गया कि आदमी में सच्चाई के प्रति श्रद्धा, निष्ठा रहे। देव, गुरु और धर्म के प्रति आस्था, श्रद्धा का भाव रहे सम्यक् दर्शन अच्छा रह सकता है और दर्शनाराधना पुष्ट बन सकती है। आदमी को अपने जीवन में चारित्र की आराधना को पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। साधुत्व जीवन स्वीकार कर आजीवन चारित्र की आराधना किया जाता है। गृहस्थ भी अपने जीवन में चारित्र की आराधना के सामायिक आदि के माध्यम से प्रयास करते हैं। श्रावक कहीं भी हो, देश में रहे या अथवा विदेश में सामायिक की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ आदमी के जीवन में अहिंसा, संयम और तप हो, भोजन नॉनवेज से मुक्त हो, नशा से दूरी हो, सामायिक, उपवास, व्रत, जप का क्रम चलता रहे तो चारित्राराधना अच्छी हो सकती है। इन तीनों आराधना मानों मोक्ष की दिशा आगे बढ़ने का मार्ग है। ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना और चारित्राराधना के माध्यम से अपने जीवन को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
द्विदिवसीय एनआरआई समिट में भाग लेने वाले अप्रवासी भारतीय श्रद्धालुओं ने गुरुमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) स्वीकार की और अपने आराध्य को सविधि वंदन किया तो आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को पावन पाथेय, प्रेरणा और आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि महासभा द्वारा एनआरआई समिट के रूप में अच्छा कार्य किया जा रहा है। इससे दूर देश में रहने वाले श्रद्धालु भी अपने देव, गुरु धर्म के साथ निकटता से जुड़े रह सकते हैं।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन और पाथेय के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी और साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी समुपस्थित जनता को अभिप्रेरित किया। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने ‘महाश्रमण कीर्तिगाथा’ म्युजियम के संदर्भ में अवगति प्रस्तुत की। लन्दन के अप्रवासी श्रद्धालुओं द्वारा एक पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। इस संदर्भ में भी आचार्यश्री ने उन्हें मंगल संबोध प्रदान किया। इस संदर्भ में हांसूभाई जैन, राजू जैन व श्री जितेन्द्र ढेलड़िया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।