- उमरगाम को पावन बनाने को आचार्यश्री ने किया 7 कि.मी. का विहार
- लोगों ने किया भव्य स्वागत, स्वागत में उमरगामवासियों ने दी अपनी अभिव्यक्ति
- 8.15 बजे ज्योतिचरण के चरणरज से पावन होगी महाराष्ट्र की धरा
वलसाड (गुजरात)। 19 फरवरी 2023 को गुजरात के अम्बाजी से गुजरात धरा में मंगल प्रवेश करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदेश की राजधानी गांधीनगर, अहमदाबाद, डायमण्डसिटि सूरत आदि सहित कई जिलों और अनेकानेक गांवों, कस्बों और नगरों को अपनी चरणरज से पावन बनाते हुए शनिवार को गुजरात राज्य के इस बार की यात्रा के अंतिम गांव उमरगाम में पधारे तो उमरगामवासियों ने शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का भावभीना स्वागत किया। वहीं आचार्यश्री के स्वागत के लिए उत्साहित महाराष्ट्रवासी भी बड़ी संख्या में अगवानी को पहुंच गए थे। हालांकि आचार्यश्री 28 मई को करीब 8.15 बजे महाराष्ट्र की सीमा में मंगल प्रवेश करेंगे।
शनिवार को अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने संजान से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। आसमान में बादलों की अठखेलियों के कारण सूर्य का प्रभाव थोड़ा कम रहा, किन्तु समुद्र से निकटता के कारण उमस बनी हुई थी। यह उपस लोगों को पसीने से भींगोने के लिए काफी थी। प्राकृतिक प्रतिकूलता-अनुकूलता से विरत आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। मार्ग में दर्शन करने वाले लोगों पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री उमरगाम के निकट पधारे तो आचार्यश्री की प्रतीक्षा में तत्पर उमरगामवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री उमरगाम में स्थित श्री एम.के. मेहता इंग्लिश स्कूल में पधारे तो स्कूल प्रबन्धन से जुड़े लोगों आदि ने भी आचार्यश्री का सादर स्वागत किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में दो प्रकार की विचारधाराएं चलती हैं। एक विचारधारा आस्तिक होती है जो पाप-पुण्य, पुनर्जन्म आदि सिद्धांतों को मानने वाले होती है और नास्तिक विचारधारा पाप-पुण्य और पुनर्जन्म को नहीं मानने वाले होते हैं। अध्यात्म की साधना का मुख्य आधार ही पुनर्जन्म है। आत्मा का अस्तित्व अनादिकाल में थी, वर्तमान में है और आगे भी रहेगी। पदार्थ और अथवा अणु भी पहले से ही मौजूद हैं। अणु भी घटते-बढ़ते नहीं है, बस उनका पर्याय परिवर्तन होता है।
शनिवार को अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने संजान से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। आसमान में बादलों की अठखेलियों के कारण सूर्य का प्रभाव थोड़ा कम रहा, किन्तु समुद्र से निकटता के कारण उमस बनी हुई थी। यह उपस लोगों को पसीने से भींगोने के लिए काफी थी। प्राकृतिक प्रतिकूलता-अनुकूलता से विरत आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। मार्ग में दर्शन करने वाले लोगों पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री उमरगाम के निकट पधारे तो आचार्यश्री की प्रतीक्षा में तत्पर उमरगामवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री उमरगाम में स्थित श्री एम.के. मेहता इंग्लिश स्कूल में पधारे तो स्कूल प्रबन्धन से जुड़े लोगों आदि ने भी आचार्यश्री का सादर स्वागत किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में दो प्रकार की विचारधाराएं चलती हैं। एक विचारधारा आस्तिक होती है जो पाप-पुण्य, पुनर्जन्म आदि सिद्धांतों को मानने वाले होती है और नास्तिक विचारधारा पाप-पुण्य और पुनर्जन्म को नहीं मानने वाले होते हैं। अध्यात्म की साधना का मुख्य आधार ही पुनर्जन्म है। आत्मा का अस्तित्व अनादिकाल में थी, वर्तमान में है और आगे भी रहेगी। पदार्थ और अथवा अणु भी पहले से ही मौजूद हैं। अणु भी घटते-बढ़ते नहीं है, बस उनका पर्याय परिवर्तन होता है।
पुनर्जन्म आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है। साधना सिद्धि को प्राप्त कर चुकी आत्माएं मोक्ष को प्राप्त कर लेती हैं तो वे परम आत्माएं जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती हैं। जिस प्रकार आदमी पुराने कपड़ों को छोड़कर नए कपड़े पहन लेता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर का त्याग कर नये शरीर को धारण कर लेती है। आत्मा का शरीर परिवर्तन ही पुनर्जन्म होता है।
क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी कषायों से लिप्त आत्मा बार-बार जन्म लेती है और मृत्यु को प्राप्त होती है। कषाय आत्मा के साथ लगे होते हैं तो आत्मा एक भव से दूसरे भव में जाती रहती है। इसलिए आदमी को बुरे कामों से बचते हुए अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि आत्मा का कल्याण हो सके और आत्मा कभी कषायों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सके। कषायों को साधना के द्वारा क्षीण कर मोक्ष के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार आदमी पुनर्जन्म के सिद्धांतों से पापों से बचने की प्रेरणा ली जा सकती है।
आचार्यश्री ने उमरगाम आगमन के संदर्भ में कहा कि आज यहां आना हुआ है। इस बार की गुजरात यात्रा का यह अंतिम गांव है। गुजरात की जनता में धार्मिकता का खूब अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री ने महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश के संदर्भ में कहा कि लगभग 8.15 बजे महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश हो सकेगा। आचार्यश्री के श्रीमुख से यह सुनकर उपस्थित जनता हर्षविभोर हो उठी।
मुनि अक्षयप्रकाशजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए तो आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के स्वागत में श्री सुनील बोहरा, श्री पवन चोरड़िया, श्री अभय बैद, स्कूल के ऑनर श्री संजय मेहता, श्रीमती जीतू भण्डारी, श्रीमती संतोषदेवी चौपड़ा, श्रीमती खुशबू कोठारी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल, चन्दनबाला महिला मण्डल, श्रीमती वीणा मेहता, तेरापंथ की कन्याएं, श्री कार्तिक भंसाली व श्री ध्रुव परमार ने अपने-अपने स्वागत गीतों का संगान किया।