नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली और फैसला सुरक्षित रख लिया। चर्चित लड़ाकू विमान राफेल सौदे के बाद केंद्र सरकार का यह दूसरा मामला है जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। तीन दिन तक चली सुनवाई के दौरान वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगाई, एसके कौल और केएम जोसेफ की पीठ के समक्ष अपनी दलीलें पेश की। इस पर सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने सीबीआई निदेशक की शक्तियों पर रोक लगाने से पहले चयन समिति की मंजूरी ले लेती तो कानून का बेहतर पालन हुआ होता। सरकार की कार्रवाई की भावना संस्थान के हित में होनी चाहिए।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ कॉमनकॉज के वकील से भी यह पूछा कि संसद ने सीवीसी एक्ट की धारा 6 में सीवीसी को सरकार को कार्यकाल और अनुशासनात्मक मामलों में सुरक्षा दी है लेकिन सीबीआई निदेशक को सिर्फ कार्यकाल की ही सुरक्षा दी गई है। अनुशासनात्मक मामलों में नहीं। वकील ने कहा कि सरकार को चयन समिति के परामर्श के बिना कोई कार्रवाई नहीं कर सकती।
कोर्ट की सुनवाई के दौरान आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन ने कहा कि मैं सीबीआई डायरेक्टर केवल विजिटिंग कार्ड पर हूं। मैं केवल पोस्ट को ही नहीं बल्कि ऑफिस को संभालना चाहता हूं। ट्रांसफर का मतलब सेवा न्यायशास्र में हस्तांतरण नहीं है, इसे अपने सामान्य अर्थ में देखा जाना चाहिए। यदि सीवीसी और सरकारी आदेश देखे जाते हैं, तो सभी कार्यों (सीबीआई निदेशक के) को हटा दिया गया है।
कार्रवाई मनमाना
वहीं, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से कहा गया कि निदेशक को छुट्टी पर भेजने की सरकार की कार्रवाई मनमाना थी। यह जांच एजेंसी की स्वायत्ता पर बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि चयन समित से परामर्श किए बिना सरकार सीबीआई निदेशक पर कार्रवाई नहीं कर सकती।
इससे पहले क्या कहा था
केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उसने आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच इसलिए दखल दिया कि वे बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे।
आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, मैं CBI डायरेक्टर केवल विजिटिंग कार्ड पर हूं
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