– वापी से पूर्व आचार्यश्री का अम्भेटी में पावन पदार्पण, 12 कि.मी. का किया विहार
– जवाहर नवोदय विद्यालय में पूज्यचरणों से हुआ पावन
20.05.2023, शनिवार, अम्भेटी, वलसाड (गुजरात)। गुजरात की धरा को अपने चरणरज से पावन बना रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को अपनी अणुव्रत यात्रा संग वापी से पूर्व अम्भेटी में स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय के प्रांगण में पधारे। आचार्यश्री के आगमन से नवोदय विद्यालय के शिक्षकों में उत्साह देखने को मिल रहा था। शिक्षकों आदि प्रबन्धन कार्य से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
शनिवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नानापोंढ़ा स्थित श्री स्वामीनारायण स्कूल से मंगल प्रस्थान किया। आज का विहार मार्ग घुमावदार और आरोह-अवरोह से युक्त था। आसपास पहाड़ों की स्थिति से मार्ग भी पहाड़ीनुमा ही नजर आ रहा था। मार्ग में आने वाले राहगीरों व अन्य श्रद्धालुओं पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर गतिमान थे। मार्ग के दोनों ओर स्थित छायादार सघन वृक्ष राहगीरों को सूर्य के किरणों से बचा रहे थे। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अम्भेटी में स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय में पधारे तो विद्यालय के प्रबन्धन व शिक्षण कार्य से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभरा अभिवादन किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में समुपस्थि जनता को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म की साधना और व्यवहार में भी समता का महत्त्व है। समता का भाव न हो तो तपस्या का भी कोई विशेष महत्त्व नहीं होता। अध्यात्म की साधना को चरम पर पहुंचाने के लिए समता भाव का होना परम आवश्यक होता है। छेदोपस्थानीय चारित्र का पावन करने वाले साधु समता के बिना पंच महाव्रतों का पूर्ण निष्ठा से पालन करने में कैसे संभव हो सकते हैं। समता की साधना होती है तो सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अचौर्य और अपरिग्रह का सम्यक्तया पालन हो सकता है। अर्थात् यह कहा जाए कि समता अध्यात्म की साधना का मूल है। समता रूपी मूल को अच्छा सिंचन प्राप्त होता है तो साधना की अन्य शाखाएं भी हरी-भरी रह सकती हैं। इसलिए आदमी को अपने भीतर समता के भावों को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
पंच महाव्रतों की साधना समता भाव से संभव है, इसलिए समता को धर्म कहा गया है। मुनि को समता को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा-प्रशंसा व जीवन-मरण जैसी अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों में समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। समता की साधना अच्छी है तो यह आत्मा के साथ-साथ व्यवहार जगत को अच्छा बनाने वाली होती है। गृहस्थ भी अपने जीवन में समता भाव को रखे तो परिवार और व्यापार में भी अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री के आगमन से हर्षित विद्यालय के प्रिंसिपल श्री गजेन्द्र भाई ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। अम्भेटी के सरपंच श्री योगेश भाई आदि ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त कर विद्यालय के शिक्षकों आदि ने तीनों प्रतिज्ञाओं को स्वीकार कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।