आनंद मोहन की रिहाई, और बिहार के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को क्या मिलेगा? कैसे एक दलित आईएएस को मारने वाले के लिए बदला कानून?

आनंद मोहन वह नाम जिसने बिहार की राजनीति में जमीन से आकाश तक पहुंचने का नया रास्ता बनाया वह रास्ता था जुर्म की दुनिया।
बात वर्ष 1994 की है जब एक घटना ने पूरे भारत की राजनीति से लेकर देश से लेकर गांव तक को हिला कर रख दिया था, बिहार उस समय आए दिन खून के होली खेल रहा था और बिहार के मानचित्र पर बाहुबलियों का दबदबा और आम आदमी के खून की छीटें पर नजर आ रही थी।
ऐसी ही एक तारीख थी 4 दिसंबर 1994 उस दिन एक खूंखार की हत्या कर दी जाती है नाम था छोटन शुक्ला आनंद मोहन का बेहद करीबी शुक्ला की लाश को लिए 5 दिसंबर को आनंद मोहन NH 28 पर नंगा नाच कर रहे थे तभी गोपालगंज के आईएएस जी.कृष्णैया मूल रूप से वह तेलंगाना के रहने वाले थे उस भीड़ से गुजर रहे थे उसी भीड़ से आवाज आई की की मारो बस आनंद मोहन के इशारों पर पलने वाले लोगों ने उस दलित अधिकारी को कनपटी में गोली मारकर हत्या कर दी।
ये वही आनंद मोहन है जो आरक्षण के घोर विरोधी रहे है और जिसने लालू यादव की पार्टी जोकि दलित और पिछड़ों की राजनीति कर रही थी उसके विरोध में सवर्णों की राजनीति करने के लिए (बिहार पीपुल्स पार्टी) की स्थापना की जिसे खुद आनंद मोहन ने तैयार की थी।
वहीं बिहार, उत्तरप्रदेश सहित दक्षिण भारत की राजनीति में यह बात आग की लपट जैसी भयावह रूप ले रही रही है। वहीं नीतीश कुमार पर OBC, SC, ST के लोगों द्वारा आरोप है की प्रधानमंत्री बनने के लिए एक दलित आईएएस के हत्यारे को रिहा कराने के लिए कानून बदल दिए।
वहीं बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ने इतना बड़ा रिस्क लेकर आनंद मोहन को जेल की काल कोठरियों से आजाद तो करवा लिया लेकिन जब आनंद मोहन से एक मीडियाकर्मी सवाल किया की 2024 के लोकसभा चुनाव में किस पार्टी को समर्थन देंगे तो आनंद ने कहा की हम अभी स्पष्ट नहीं कह सकते।
यहां बात नीतीश के लिए आनेवाले चुनाव में कहीं चुनौतीपूर्ण न साबित हो जाए।
वहीं बीजेपी भी और उनके लोग आनंद का स्पष्ट तरीके से विरोध नही कर रहे हैं। और बीजेपी भी आनंद को जघन्य अपराधी मानने को तैयार नहीं है, लोकसभा चुनाव नजदीक आ रही है तब आनंद के रिहाई होती है और यदि वो महागठबंधन में जाता है तो महागठबंधन को एक राजपूत समाज का स्टार प्रचारक के रूप में उपयोग हो सकता है। लेकिन जब सीमांचल और कोसी की जिक्र करते हैं तो एक और नाम सामने आता है और वो नाम है पप्पू यादव का
पूर्व में आनंद मोहन और पप्पू यादव के बीच क्या रिश्ता था वह सभी जानते हैं दोनों के गैंग के बीच हजारों गोलियां चलती थी लेकिन वर्तमान में इनके रिश्ते ठीक हैं। महागठबंधन के लिए कोसी और सीमांचल में पप्पू यादव और आनंद मोहन फैक्टर जरूर है।
वहीं पप्पू यादव आजकल बिहार सरकार में महागठबंधन के अखाड़े में लगातार नजर आ रहे हैं यह सभी समीकरण आनेवाले लोकसभा चुनाव के लिए बन रही है।
कुख्यात अपराधी आनंद मोहन की रिहाई करने से नीतीश और तेजस्वी में ये भ्रम हैं की वह राजपूत और भूमिहार समाज के कुछ प्रतिशत वोट प्राप्त कर लेंगे लेकिन वास्तविक बात यह है की नीतीश और तेजस्वी कुछ भी कर ले लेकिन राजपूत और भूमिहार वोट बैंक प्राप्त करने में असफल रहेंगे क्योंकि यह दोनों समाज कमल छाप पर से टस से मस नहीं होंगे।
अंततः बिहार और भारत के राजनीति में उन्हें जगह दी जाती है जिनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि खूनी खेल..खेल रखी हो।

1 Comment

  1. अच्छा है इसी तरह आगे बढ़ो मेरे भाई

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