धर्मसंघ की आधार स्तम्भ हैं मर्यादाएं : महातपस्वी महाश्रमण

  • 159वें मर्यादा महोत्सव के दूसरे दिन मुख्यमुनिश्री ने भी जनता को किया उद्बोधित
  • संघ की सेवा में स्वयं को नियोजित करने हेतु आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
  • अपने आराध्य की अभिवंदना में आज भी श्रद्धालुओं ने दी अपनी अभिव्यक्ति

27.01.2023, शुक्रवार, बायतू, बाड़मेर (राजस्थान)। बाड़मेर जिले की मरुधरा में स्थित बायतू में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में आयोजित 159वें मर्यादा महोत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को इस महाकुम्भ में भारत के दूर-दूर क्षेत्रों से श्रद्धालु पहुंचे।
निर्धारित समयानुसार आचार्यश्री अपनी धवल रश्मियों के साथ मंचासीन हुए और मंगल महामंत्रोच्चार किया। मर्यादा महोत्सव के संदर्भ में मुमुक्षु बहनों ने गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने समुपस्थित जनता को देव, गुरु और धर्म के प्रति आस्था, विश्वास और श्रद्धा को पुष्ट बनाए रखने हेतु उत्प्रेरित किया।
तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मर्यादा महोत्सव के दूसरे दिन समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मर्यादा महोत्सव का आज दूसरा दिन है। तेरापंथ धर्मसंघ में एक वर्ष में अनेक कार्यक्रम होते हैं, किन्तु मर्यादा महोत्सव की अपनी महिमा है। यह एक वार्षिक समारोह है। इसमें दूर-दूर चतुर्मास करने वाले साधु-साध्वियां भी संभागी बन जाते हैं।
हमारे धर्मसंघ के आद्य आचार्यश्री भिक्षु को जब लगा कि क्रांति की अपेक्षा है तो उन्होंने क्रांति की और तेरापंथ के रूप में राजपथ प्राप्त हो गया। वैसे तो आदमी को शांति से रहने का प्रयास करना चाहिए, किन्तु जब लगे कि क्रांति की अपेक्षा है तो क्रांति होनी चाहिए। क्रांति में भी शांति रहे, ऐसा प्रयास होना चाहिए। व्यावहारिक जगत में निमित्त का प्रभाव होता है, किन्तु उपादान का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।
मर्यादाएं धर्मसंघ की आधार स्तम्भ हैं। मर्यादाएं ऐसी सुरक्षा चक्र है, जो सुरक्षा करने वाली है। श्रावक समाज भी जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं और नियमों का पालन भी अच्छे रूप में कर सकते हैं। हमारे धर्मसंघ में आचार्य सर्वोपरि होते हैं। उनकी आज्ञा के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। आचार्य की आराधना करने वाले होते हैं और कार्यों में साधु-साध्वियों का सहयोग मिलता है तो संघ का अच्छा कार्य हो सकता है। संघ हम सभी के लिए शरण है, संघ की आराधना करने का प्रयास करना चाहिए। स्वयं को संघ की सेवा में नियोजित करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का पदाभिषेक दिवस है। वे परम सौभाग्यशाली थे, कि उनका पदाभिषेक स्वयं उनके गुरु ने किया था। वे विलक्षण आचार्य थे। मुझे उनके सान्निध्य में लम्बे समय तक रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनका ज्ञान कितना समृद्ध था। मैं ऐसे गुरुदेव के प्रति अपनी भावांजलि, श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं।
कार्यक्रम में मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री गौतम छाजेड़ उपाध्यक्ष श्री सोहनलाल बालड़, श्री शांतिलाल सांड, तेरापंथ महिला मण्डल की मंत्री श्रीमती अनिता बावचा व सुश्री निधि सालेचा नें अपनी-अपनी अभिव्यक्ति दी। विकास परिषद के सदस्य श्री पदमचंद पटावरी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। बायतू तेरापंथ समाज ने मर्यादा महोत्सव के संदर्भ में गीत का संगान किया। कोषाध्यक्ष श्री मदन बालड़ व श्रीमती राधा बालड़ ने संयुक्त रूप से गीत को प्रस्तुति दी।

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