- हर्षित सोजत वासियों ने अपने आराध्य का किया भव्य अभिनन्दन
- भक्तों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री ने करीब 7 कि.मी. का किया विहार
- भवसागर को तरने में सहायक बने शरीर रूपी नौका : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
05.12.2022, सोमवार, सोजत रोड, पाली (राजस्थान)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी सोमवार को सोजत रोड की धरा पर उदित हुए तो मानों पूरे सोजत रोड में आध्यात्मिकता का आलोक फैल गया। दस वर्षों बाद अपने गांव में अपने आराध्य के दर्शन कर श्रद्धालु हर्ष विभोर बने हुए थे। उनकी श्रद्धाभिव्यक्ति उनके बुलंद जयघोष से प्रदर्शित हो रही थी। साथ ही उनकी अव्यक्त भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए पूरे नगर में लगे बैनर, होर्डिंग्स और तोरण द्वार माध्यम बन रहे थे। भव्य स्वागत जुलूस में उमड़ा जनसैलाब मानवता के मसीहा का अभिनंदन कर रहा था। मंगल वाद्य यंत्रों की ध्वनि से पूरा सोजत रोड गुंजायमान हो रहा था। ऐसे भव्य स्वागत जुलूस के साथ पूरे सोजत रोडवासियों पर आशीषवृष्टि करते और अपनी मंगल आभामण्डल से जन-जन के मानस को आलोकित करने वाले तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी नगर स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।
इसके पूर्व सोमवार को प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री ने बगड़ी नगर से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री की पाली जिले की यात्रा का पूरा क्षेत्र मानों तेरापंथ के उदय के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। आचार्यश्री बगड़ी से विहार किया तो सबसे पुनः महामना आचार्य भिक्षु के अभिनिष्क्रमण स्थली, प्रथम प्रवास स्थली पर पधारे और कुछ क्षण ध्यान का प्रयोग किया। लगभग सात किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ सोजत रोड में पधारे। यह नगर भी आचार्य भिक्षु से जुड़ा हुआ है। यहां के श्रद्धालु भी वर्तमान आचार्य में आचार्य भिक्षु के दर्शन कर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे थे।
तेरापंथ भवन से कुछ सौ मीटर की दूरी पर बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित जनमेदिनी को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि इस संसार को एक सागर कहा गया है। इस भवसागर से पार उतरने के लिए शरीर रूपी नौका आलम्बन बनती है और जीव उसका नाविक होता है। जो महर्षि लोग होते हैं, इसे भवसागर से पार पा सकते हैं। भवसागर को तरना है तो शरीर रूपी नौका को निश्छिद्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी तपस्या करे और संवर की साधना कर अपने कर्मों की निर्जरा कर ले तो शरीर रूपी नौका से इस भवसागर को तरा जा सकता है। जब तक शरीर सक्षम हो आदमी को धर्म करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने सोजत रोड में एक बार के आगमन के प्रसंग को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि जब हम सिंवाची मालाणी क्षेत्र की यात्रा कर इस सोजत रोड में गुरुदेव तुलसी के दर्शन किए थे तो उन्होंने पूरे सभा के बीच एक प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा था कि महाश्रमण तुम सुविधावाद का त्याग कर देना। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।
आचार्यश्री के अभिनंदन में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री सुकनराज परमार, स्थानकवासी समाज की ओर से श्री कुशल गुन्देचा, मंदिरमार्गी समाज की ओर से श्री अमृतलाल गुललिया व एक दिवसीय प्रवास व्यवस्था के संयोजक श्री विमलकुमार सोनी तथा स्थानीय सरपंच श्रीमती लक्षमीदेवी कछवा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया।