- पावन धाम से लगभग 12 कि.मी. का आचार्यश्री ने किया मंगल विहार
- अध्यापकों व विद्यार्थियों ने राष्ट्र संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का किया भावभीना स्वागत
- हाथ-पैर रूपी नौकर रहें मजबूत और स्वस्थ, अच्छे कार्यों में उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
02.12.2022, शुक्रवार, चावण्डिया कलां, पाली (राजस्थान)। जैतारण के श्री मरुधर केसरी पावन धाम को पावन बनाकर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया तो उससे पूर्व श्रमण संघीय प्रवर्तक मुनिश्री सुकनमलजी महाराज ने अपने शिष्यों के साथ आचार्यश्री के सम्मुख विदा करने को पहुंचे। दोनों संत के आध्यात्मिक मिलन के पश्चात आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। मार्ग के दोनों ओर के खेतों में यदा-कदा कोई फसल दिखाई दे रही थी। जिन खेतों में फसलें लहलहा रही थीं, उनकी छटा ही अलग थी, वहीं सूखे पड़े खेत विरान-से नजर आ रहे थे। तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्यश्री भिक्षु की जन्मभूमि, दीक्षा भूमि, अभिनिष्क्रमण भूमि और निर्वाणभूमि की ओर गतिमान आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर चावण्डिया कलां गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। आचार्यश्री के आगमन से हर्षित विद्यालय के शिक्षकों व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य को पांच ज्ञानेन्द्रियां प्राप्त होती हैं तो पांच कर्मेन्द्रियां भी प्राप्त हैं। ज्ञानेन्द्रियां ज्ञान का माध्यम बनती हैं तो कर्मेन्द्रियों से कितना कार्य किया जाता है। संसार में नौकर रखने की बात भी सामने आती है। किसी को करने के लिए कोई नौकर रखता है, किन्तु देखा जाए तो प्रत्येक मनुष्य को चार नौकर प्रारम्भ से ही प्राप्त होते हैं। इन चारों से आदमी को खूब कार्य लेने का प्रयास करना चाहिए, किन्तु इनका उपयोग न कर कितने आदमी नौकर भी रखते हैं। आदमी को प्राप्त चार नौकर उसके दोनों हाथ और दोनों पैर होते हैं। आदमी को इनका भरपूर उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। इनका अच्छा उपयोग हो तो अच्छा कार्य निष्पादित हो सकता है। आदमी को अपना कार्य स्वयं से करने का प्रयास करना चाहिए। आलस्य और अहंकार के कारण आदमी स्वयं का कार्य स्वयं से नहीं करता है। आलस्य को शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। स्वयं का कार्य करने में कोई बुराई की बात नहीं होती।
आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि प्रकृति से उस प्राप्त अपने चार नौकरों यथा हाथ और पैर का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। ये चारों नौकर सशक्त हों, स्वस्थ हों तो कोई भी कार्य सहजतया किया जा सकता है। आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों और शिक्षकों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि विद्यालय में बच्चों को शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी देने का प्रयास हो तो उनका जीवन अच्छा हो सकता है। विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार का अच्छा विकास हो।
आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित विद्यार्थियों व शिक्षकों ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री के स्वागत में विद्यालय के एक छात्राओं के समूह ने स्वागत गीत का संगान किया तो बालिकाओं के एक समूह ने गुरुवन्दना की। विद्यालय के शिक्षक श्री ओमप्रकाश सिंह तथा प्रधानाचार्य श्री कर्ण सिंह ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री ने मुनि अनिकेतकुमारजी के अचानक देहावसान के संदर्भ में उपस्थित परिजनों को आध्यात्मिक संबल भी प्रदान किया।