- तेरापंथ के भक्तों ने अपने आराध्य का किया भव्य अभिनन्दन
- लगभग 9 कि.मी. का आचार्यश्री ने किया विहार, पहुंचे तेरापंथ भवन
- निच्छल भक्ति आत्मा के लिए हो सकती है कल्याणकारी : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण
26.11.2022, शनिवार, मेड़ता सिटी, नागौर (राजस्थान)। भारतीय संस्कृति संतों, महात्माओं और भक्तों की प्रधानता लिए हुए है। शनिवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अपने भक्तों के आराध्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विहार करते हुए भारतीय संस्कृति में भगवान के अनन्य भक्तों उच्चस्थान रखने वाली मीराबाई की जन्मभूमि मेड़ता सिटी में पधारे तो यहां के भक्तों ने अपने आराध्य पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ अभिनंदन किया। श्रद्धालु भक्त अपने आराध्य के दर्शन और स्वागत के लिए नगर से बाहर ही उपस्थित हो गए थे। नेतड़ियां से शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातःकाल मेड़ता सिटी के लिए मंगल प्रस्थान किया। अपने आराध्य के अभिनन्दन मंे मेड़तावासी पलक पांवड़े बिछाए खड़े थे। नगर के प्रवेश द्वार से पहले ही बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति थी। कृष्णभक्ति के रस में डुबी मीराबाई की नगरी मानों आज भी भक्ति के अणुओं से प्रभावित नजर आ रही थी। तभी तो पूरा नगर एक राष्ट्र संत की अगवानी में तत्पर नजर आ रहा था। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही मेड़ता सिटी के मुख्य द्वार के निकट पधारे, श्रद्धा और भक्ति का सैलाब उमड़ आया। बुलंद जयघोष, मंगल वाद्ययंत्रों के माध्यम से पूरा वातावरण गुंजायमान हो रहा था। इस तरह अपने आराध्य का अभिनंदन करते हुए श्रद्धालु जुलूस रूप में आचार्यश्री के चरणों का अनुगमन करने लगे। नगर के लोगों को दर्शन देते, लोगों की भक्ति की भावना को स्वीकार करते हुए आचार्यश्री नगर में नवनिर्मित तेरापंथ भवन में पधारे। इसके साथ ही इस नवनिर्मित भवन का लोकार्पण भी हो गया।
प्रवास स्थल से कुछ दूरी पर बने भक्ति समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को श्रद्धालुओं को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने भक्तिमान श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते कराते हुए कहा कि मनुष्य के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। कभी आक्रोश तो कभी क्षमा, कभी अहंकार तो कभी निरहंकार, कभी छल-कपट तो कभी ऋजुता, कभी लोभ तो कभी संतोष, कभी भय तो कभी अभय की वृत्ति देखने को मिल सकती है। भय भी एक वृत्ति है। आदमी स्वयं भी डरता है और दूसरों को भी डराने का प्रयास करता है। अभय में न स्वयं डरना और न किसी दूसरों को डराने की बात होती है। दुनिया में अनेक प्रकार के दान चलते हैं, इनमें अभयदान को श्रेष्ठ दान बताया गया है। अभय की भावना अहिंसा की चेतना के जागरण से आ सकता है। आदमी के भीतर भक्ति की भावना हो तो भी अभयता की बात हो सकती है। किसी भी संकट की स्थिति हो और भक्तिमान व्यक्ति अपने ईष्ट के साथ तादात्मय जोड़ लेता है तो वह मानों अभय हो जाता है।
आज हम मीराबाई से जुड़े क्षेत्र में आए हैं। भक्ति व्यक्तिपरक भी हो सकती है और सिद्धांतपरक भी हो सकती है। भक्ति अहंकार के भाव का नाश करने वाली होती है। भक्ति जैसे तत्त्व से शक्ति की जागरणा भी हो सकती है। भक्ति में बिना किसी शर्त के समर्पण की भावना होती है। भक्ति निर्मल और निच्छल हो तो आत्मा के लिए कल्याणकारी हो सकती है। भक्ति भावना से यह ओतप्रोत स्थान है। यहां के लोगों में खूब धार्मिक भावना बनी रहे, मंगलकामना।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त भक्ति से ओतप्रोत श्रद्धालुओं ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति भी दी। नगरपालिका चेयरमेन श्री गौतमचंद टांक, सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता श्री केसी बोकड़िया, स्थानीय तेरापंथी सभा के मंत्री श्री धरमीचन्द बोथरा, स्थानकवासी समाज के श्री पुखराज मेहता, श्री दिनेश सिंघी व श्री मयंक भण्डारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व कन्या मण्डल, जैन श्राविका मण्डल, श्रीमती आशा बोथरा व प्रांजल जैन बालिका मण्डल ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान किया।