– प्रज्ञापुरुष श्रीमज्जयाचार्य के 220वें जन्मदिवस पर आचार्यश्री ने किया अपनी श्रद्धा का अर्पण
– आचार्यश्री ने चारित्रात्माओं को ज्ञान, दर्शन और चारित्र विकास करने की दी प्रेरणा
– बदला मौसम का मिजाज, फिर बादलों ने की रिमझिम बरसात
08.10.2022, शनिवार, छापर, चूरू (राजस्थान) : कहते हैं ना कि संत स्वयं में तीर्थ होते हैं। जहां-जहां संतों के चरण पड़ते हैं वहां मंगल ही मंगल होता है। इसका स्पष्ट अहसास छापरवासियों को हो रहा है। 74 वर्षों बाद जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ छापर कस्बे में जब से चतुर्मास के लिए पधारे हैं, मानों छापरवासियों जीवन में मंगल ही मंगल हो रहा है। अक्टूबर तक सूर्य के आतप को झेलने वाले छापरवासियों को इस वर्ष उस तपन से मुक्ति-सी मिल गई तो साथ ही फसलों की बुआई भी ज्यादा हुई तो जाहिर-सी बात है कि पैदावार की उम्मीद भी ज्यादा हो गई। इतना ही नहीं, आत्मा के कल्याण के लिए भी आचार्यश्री का प्रतिदिन मंगल प्रवचन वह भी एक विख्यात आगम के माध्यम से प्राप्त हो रहा है जो उनके जीवन के धार्मिक उन्नयन का भी मार्ग प्रशस्त कर रहा है। गत दो दिनों से आसमान में छाए बादलों ने सूर्य के ताप को रोकने के साथ ही रिमझिम बरसात कर मौसम को परिवर्तित कर दिया है। शनिवार को भी प्रातः आसमान से रिमझिम बरसात हो रही थी तो वहीं चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने प्रवचन पंडाल से आचार्यश्री महाश्रमणजी की आगमवाणी की वर्षा से छापरवासी निहाल हो रहे थे।
नित्य की भांति आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से आचार्यश्री ने तात्त्विक प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि जीव घटते-बढ़ते हैं या अवस्थित रहते हैं? भगवान महावीर ने कहा कि जीव न घटते हैं और न बढ़ते हैं, जीव अवस्थित हैं। अनंतकाल से दुनिया में एक भी नया जीव न बढ़ा है और घटा है और आगे भी घटेंगे या अथवा बढ़ेंगे, यह लोक स्थिति है, मर्यादा है। फिर प्रश्न हो सकता है कि तब आबादी की चिन्ता क्यों होती है? परिवार नियोजन की बात क्यों की जाती है? उत्तर में यह कहा जा सकता है कि यह बात मनुष्यों की घटती-बढ़ती संख्या के संदर्भ में है। मनुष्यों की संख्या घट-बढ़ सकती है, लेकिन लोक में जीवों की संख्या स्थिर है। जैसे हमारे धर्मसंघ में आचार्यश्री तुलसी के समय साधु की संख्या जितनी थी, उस हिसाब से आज कम है और आचार्य कालूगणी के अंतिम समय के साधुओं की संख्या से आज की संख्या ज्यादा है।
आज आश्विन शुक्ला चतुर्दशी है। आज से 219 वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य का एक शिशु के रूप में जन्म हुआ था। आचार्यश्री ने कहा कि मैं अतीत के तीन आचार्यों में कुछ समानताएं देखता हूं। प्रथम परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु, चतुर्थ परम पूज्य श्रीमज्जयाचार्य और नवम परम पूज्य गुरुदेव तुलसी। ये तीनों आचार्य मारवाड़ से हुए और अब तक तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में तीन ही आचार्य मारवाड़ से हुए। वर्तमान में तेरापंथ की तीन शताब्दी के प्रारम्भ में ये तीन ही आचार्य थे। परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु ने तो तेरापंथ की स्थापना की तो इस शताब्दी के आचार्य हुए। दूसरी शताब्दी के प्रारम्भ में श्रीमज्जयाचार्य तेरापंथ के आचार्य थे और तीसरी शताब्दी के शुभारम्भ के समय गुरुदेव तुलसी आचार्य थे, इसलिए इन तीनों आचार्यों को शताब्दी पुरुष भी कहा जा सकता है। इन तीनों ही आचार्यों ने ज्ञान के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। राजस्थानी भाषा में कितनी अच्छी साहित्यों का सृजन किया। भिक्षु स्वामी के ग्रन्थ को देखें, श्रीमज्जयाचार्य के ग्रंथों को देखें या आचार्यश्री तुलसी के साहित्य को देखें। ये तीनों ही आचार्य धर्मसंघ में नवीनता लाने वाले आचार्य हुए।
आज परम पूज्य श्रीमज्जयाचार्य का 220वां जन्मदिवस है। उन्हें तो महामना आचार्य भिक्षु का भाष्यकार भी कहा गया है। वे ज्ञानमूर्ति थे। उनकी प्रज्ञा इतनी जागृत थी कि उन्हें प्रज्ञापुरुष भी कहा जाता है। वे बालावस्था में धर्मसंघ को प्राप्त हुए थे। बाद में इतनी प्रज्ञा का विकास हुआ, इतना ज्ञान समृद्ध हुआ और वे हमारे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य भी बने। हमारे बालमुनि और साध्वियां भी उनकी तरह अपने ज्ञान और प्रज्ञा का विकास करें। आज के अवसर पर सभी में तत्त्वज्ञान, ज्ञान, साधना, सेवा आदि के विकास का आयास-प्रयास होता रहे।
चतुर्दशी तिथि होने के कारण आचार्यश्री के आसपास मंच पर चारित्रात्माओं की भी उपस्थिति थी। आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को अनेक प्रेरणाएं प्रदान करने के साथ-साथ उनसे अनेक प्रश्न भी किए और उनके उत्तर आदि भी प्रदान कर उन्हें उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित शिविरार्थियों को भी आचार्यश्री ने तेरापंथ के शासन, मर्यादा और सिद्धांतों की जानकारी देते हुए आशीर्वाद प्रदान किया।
आचार्यश्री की अनुज्ञा से नवदीक्षित साध्वियों ने सविधि संतों को वंदन किया तो संतों की ओर से मुनिश्री धर्मरुचिजी ने साध्वियों को उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री ने इस अवसर पर शासनमता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की 7वीं मासिक पुण्यतिथि के संदर्भ में उनका स्मरण करते हुए वर्तमान साध्वीप्रमुखाजी को शुभाशीष प्रदान किया।
आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि आगमकुमारजी व मुनि अर्हम्कुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। तदुपरान्त उपस्थित सभी साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने इच्छुक लोगों को सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) भी प्रदान की। लोगों ने आचार्यश्री को सविधि वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।