नई दिल्ली:जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता जा रहा है। लांसेट जर्नल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सन 2000 से 2017 के बीच में विश्व में करीब 15.70 करोड़ अतिरिक्त लोग भयंकर गर्मी के कारण जोखिम के दायरे में आ गए। यह आंकड़ा 2016 की तुलना में भी 1.8 करोड़ ज्यादा है। बढ़ती गर्मी से इन लोगों के स्वास्थ्य, रहन-सहन एवं कामकाज के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत पूरी दुनिया में बढ़ते तापमान से तमाम किस्म के दुष्प्रभाव अब सामने आने लगे हैं। यूरोप और पूर्वी भूमध्यसागरीय इलाके में खासतौर से गर्मी के जोखिम के मुहाने पर हैं। इन स्थानों पर 65 साल से अधिक उम्र के 42 फीसदी लोग गर्मी से होने वाले नुकसानों का सामना कर रहे हैं। बढ़ती गर्मी बुजुर्गो के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है।
कृषि उत्पादन में कमी
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 30 देशों में कृषि उत्पादन में गिरावट का रुझान शुरू हो गया है। यह एक दशक पहले दुनिया में उत्पादन में वृद्धि के रुख के ठीक विपरीत है। मौसम की चरम स्थितियों के साथ-साथ अधिक तीव्र होने के कारण दुनिया के हर क्षेत्र में कृषि उत्पादन में गिरावट आने का अनुमान है।
शहरों में गर्मी का प्रकोप
गर्मी से शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण की तीव्रता और बढ़ जाती है। खासकर तब जब निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के 97 प्रतिशत शहरों में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी वायु की गुणवत्ता संबंधी दिशा- निर्देश का पालन नहीं किया जा रहा है।
कोयला प्रदूषण से 16 फीसदी मौतें
रिपोर्ट में पहली बार वायु प्रदूषण के कारण मौतों को उनके प्रदूषण के स्रोत के हिसाब से भी देखा गया है। इसके अनुसार दुनिया में करीब 16 फीसदी मौतें कोयला जनित प्रदूषण के कारण हो रही हैं।
डेंगू के मामले बढ़े
रिपोर्ट के अनुसार बैक्टर बार्न जनित बीमारियों में बढोतरी हो रही है। डेंगू के मामलों में 1950 की तुलना में करीब 9.3 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसी प्रकार मच्छर जनित अन्य बीमारियां और हैजा के संक्रमण में भी बढ़ोतरी देखी गई है।
लांसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ के सह अध्यक्ष प्रोफेसर ह्यूज मोंटगोमरी के अनुसार, हीट स्ट्रेस बहुत मुश्किलें खड़ी कर रहा है, खासकर शहरी क्षेत्र के निवासी बुजुर्ग लोगों के साथ-साथ दिल की बीमारियों, मधुमेह या गुर्दे की गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए। उच्च तापमान वाली परिस्थितियों में खुले में काम करना, खासकर खेती-बाड़ी में नुकसानदेह हो गया है।
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिस एबी ने कहा कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाएगा, मृत्यु दर में वृद्धि होती जाएगी। इस बात के अनेक सुबूत हैं कि मानव समुदाय गर्मी की आवृत्ति, तीव्रता और अवधि में वृद्धि के लिये तैयार नहीं है। ऐसे में फौरन हरकत में आने की जरूरत है। गर्मी के लिए पूर्व चेतावनी देने का तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।
धरती पर गर्मी बढने से 15 करोड़ लोगों पर असर : रिपोर्ट
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