- आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के माध्यम से कर्मबंध को किया व्याख्यायित
- कालूगणी की धरा पर कालूयशोविलास का गायन और आख्यान है जारी
05.10.2022, बुधवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के उद्देश्यों के साथ भारत सहित नेपाल और भूटान में लगभग 18 हजार किलोमीटर की महापदयात्रा करने वाले, करोड़ों लोगों को नशामुक्ति का संकल्प कराने वाले, जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी छापर में वर्तमान में चतुर्मास कर रहे हैं। यहां भी अपनी ज्ञानगंगा के माध्यम से श्रद्धालुओं के आंतरिक तृष्णा को समाप्त कर रहे हैं। बुधवार को छापर स्थित चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य आचार्यश्री कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को भगवती सूत्र के माध्यम से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि कोई यदि किसी पर मिथ्या दोषारोपण करता है तो उसे किस प्रकार के कर्मों का बन्ध होता है?
संसार में आदमी रहते हुए कई बार झूठ बोल देता है। दूसरों को फंसाने के लिए कई बार मिथ्या आरोप भी लगा देता है। जिसके कारण कई मामलों में आदमी को न्यायालय भी जाना पड़ सकता है और जेल भी जाना पड़ सकता है। घर, परिवार, समाज आदि में कई बार कुछ ऐसे मामले हो जाते हैं, जिससे समस्या पैदा हो जाती है। जितना संभव हो यदि परिवार का मामला है तो परिवार में ही समाहित हो जाए। इससे भी अच्छी बात हो सकती है, ऐसी कोई बात ही न आने पाए। हालांकि किसी मामले में न्यायालय जाना ही पड़े तो आदमी को यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी को फंसाने मात्र के लिए झूठा आरोप न लगाएं। न्याय पाने के लिए सच्चाई के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए।
भगवान महावीर ने प्रश्न का उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि जो जैसा आरोप लगाता है, उसे उसी प्रकार का फल भोगना होता है। जैसी करणी, वैसी भरणी वाली बात लागू हो जाती है। आदमी को अनावश्यक किसी पर झूठा आरोप लगाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। यदि कभी प्रमादवश आरोप लगा भी दिया हो तो उसे अपने पापों का प्रायश्चित्त करने का प्रयास करना चाहिए। मन में यदि सद्बुद्धि आ जाए तो अपनी बात को वापस लेते हुए सामने वाले से खमतखामणा कर लेना चाहिए। इससे बंधे हुए कर्मों की निर्जरा भी हो सकती है। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में लाडनूं के एक संत के घटनाक्रम का वर्णन किया। आदमी को अपने जीवन में किसी पर झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए और इससे बचने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने विजयादशमी के संदर्भ में कहा कि आज विजयादशमी है तो आत्म विजय की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। साध्वी गुरुयशाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने आचार्यश्री कालूगणी की जन्मभूमि कालूयशोविलास का संगान और आख्यान करते हुए कहा कि आचार्य कालूगणी ने साधु-साध्वियों को तीन शिक्षाएं ग्रहण कीं। दूसरी जगह जाकर चर्चा नहीं, किसी को मध्यस्थ नहीं मानना, दूसरी बात कि क्षमा रखना, गुस्से में नहीं आना और तीसरी बात कि एक बार में एक प्रमाण देना और अपेक्षा पड़ने पर ही दूसरा प्रमाण देने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में साध्वी अणिमाश्रीजी, साध्वी मंगलप्रज्ञाजी और साध्वी सुधाप्रभाजी के न्यातिलों ने (महादानी शुभकरण चोरड़िया) परिवार के पच्चीस सदस्यों ने एक साथ पचरंगी की तपस्या का प्रत्याख्यान किया और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।