– युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इन्द्रियों का संयम करने की दी पावन प्रेरणा
– प्रकृति से प्राप्त संपदा का अनावश्यक न हो दोहन : अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण
– उपस्थित विद्यार्थियों ने आचार्यश्री से स्वीकार किए तीन संकल्प
– आचार्यश्री ने जैन विश्व भारती को बताया उपयोगी और आश्रयदायिनी संस्था
29.09.2022, गुरुवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि छापर में वर्ष 2022 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में वर्तमान में मानों आयोजनों की झड़ी-सी लगी हुई है। गुरुवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के साथ नवाह्निनक आध्यात्मिक अनुष्ठान, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत, पर्यावरण विशुद्धि दिवस व जैन विश्व भारती संस्था का वार्षिक अधिवेशन के कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ। इन सभी कार्यक्रमों को चरणबद्ध रूप में समायोजित होना समय के साथ विभिन्न आयोजनों के प्रबन्धन का मूल मंत्र भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि से प्राप्त हुआ।
नित्य की भांति गुरुवार को भी आचार्यश्री मंचस्थ हुए। मंगल महामंत्रोच्चार के पश्चात लगभग आधे घंटे तक श्रद्धालुओं को मंत्र जप का प्रयोग कराया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न किया गया कि क्या केवली इन्द्रियों के द्वारा जानते और समझते हैं? उत्तर दिया गया कि यह अर्थसंगत बात नहीं है। केवली तो अतिन्द्रिय ज्ञान से सम्पन्न होते हैं। उन्होंने इन्द्रियों का उपयोग करने की अपेक्षा नहीं होती। केवली के लिए तो इन्द्रियां अनुपयोगी हो जाती हैं। जो छदमस्थ जीव अर्थात् साधारण मनुष्य इन्द्रियों के द्वारा ही जानता और समझता है।
आदमी को अपनी इन्द्रियों के प्रयोग में सावधानी रखने का प्रयास करना चाहिए। गांधीजी के तीन बंदरों की बात कि बुरा सुनो मत, बुरा बोलो मत और बुरा देखो मत और मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि बुरा सोचो भी मत। अगर आदमी बुरा सोचेगा ही नहीं तो उसे बुरा कहने, बुरा सुनने और बुरा देखने की आवश्यकता ही नहीं होगी। आध्यात्मिक, ज्ञानवर्धक बातों का श्रवण हो, अच्छी चीजों अर्थात् गुरुओं और साधुओं के दर्शन का प्रयास हो। नाक से श्वास आदि के साथ प्राणायाम करने का प्रयास हो। इस प्रकार आदमी और विद्यार्थियों को अपनी इन्द्रियों का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। विद्यार्थी खाने-पीने में संयम रखे। उसका समय पढ़ने, लिखने, याद करने और पुनरावृत्ति में लगना चाहिए। परिश्रम अंक पाने के लिए ज्ञान का अर्जन करने के लिए होना चाहिए। विद्यार्थियों को अपनी इन्द्रियों का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत पर्यावरण विशुद्धि दिवस के अवसर पर प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पर्यावरण की शुद्धि आवश्यक है। हमारे आसपास पानी, मिट्टी, वनस्पति, आकाश, वायु हैं। इस धरती पर तीन रत्न बताए गए हैं- जल, अन्न और सुभाषित (अच्छी वाणी)। पानी न हो तो जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। आदमी बिना घर और कपड़े के रह सकता है, लेकिन बिना भोजन के वह कैसे रह सकता है? इसलिए अन्न भी एक रत्न है। अच्छी वाणी अर्थात् सुभाषित को भी एक रत्न कहा गया है। आदमी अपने जीवन में जल का अपव्यय न करे। वृक्षों को अनावश्यक नहीं काटना चाहिए। विद्युत का अनावश्यक उपयोग न हो। अहिंसा और संयम की दृष्टि से भी इन रत्नों के संरक्षण का प्रयास होना चाहिए। इस संदर्भ मंे आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों को विशेष परिस्थिति के सिवाय वृक्षों का उन्मूलन न करने, आजीवन आत्महत्या नहीं करने और द्वेषवश किसी की हत्या नहीं करने का भी संकल्प भी कराया। अणव्रत समिति-छापर के अध्यक्ष श्री प्रदीप सुराणा व श्रीमती माला कातरेला ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
एक दिन पूर्व अर्थात् बुधवार को आचार्यश्री ने समण श्रेणी में दीक्षा की पुनः घोषणा तथा विदेशों में स्थित सेंटरों को गतिमान बनाए रखने की घोषणा की तो इससे मानों धर्मसंघ में नवीन ऊर्जा का संचार हो गया। इस संदर्भ में समणी नियोजिका समणी अमलप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। समणीवृंद ने पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में गीत का संगान कर अपने हर्षित भावों को अभिव्यक्त किया। साध्वीवर्याजी, साध्वीप्रमुखाजी और मुख्यमुनिश्री ने इस संदर्भ में तथा जैन विश्व भारती के अधिवेशन के संदर्भ में उपस्थित लोगों को उद्बोधित किया।
जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री मनोज लूणिया व महामंत्री श्री प्रमोद बैद ने अपनी अभिव्यक्ति दी। श्री सुरेन्द्र कांकरिया ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री ने जैन विश्व भारती के 51 वें वार्षिक अधिवेशन के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन विश्व भारती तेरापंथ समाज की बहुत महत्त्वपूर्ण, उपयोगी और आश्रयदायिनी संस्था है। जो अनेक कार्य करती है। इसे कामधेनु और जयकुंजर के नाम से भी जाना जाता है। यह और अधिक अपना विकास करे। आचार्यश्री ने प्रत्येक संस्थाओं की तरह जैन विश्व भारती के अंतर्गत स्थित पारमार्थिक शिक्षण संस्था के भी वार्षिक अधिवेशन का आयोजन हो, इस संदर्भ में मंगल मार्गदर्शन प्रदान करते हुए इसमें अध्ययनरत मुमुक्षुओं के विकास का प्रयास करने, उनकी अर्हता को उन्नत बनाने के लिए उत्प्रेरित किया।